अगर सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले वक्त में कैंसर से होने वाली मौतों में 50 फीसदी तक की कमी आ सकती है। अमेरिकी की राइस यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिकों की टीम को इस बारे में रिसर्च के लिए 45 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता मिली है।
इस पैसे से वैज्ञानिक सेंस एंड रिस्पांड इंप्लांट टेक्नोलॉजी डेवलप की जाएगी। राइस यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक समूह को दिया गया अनुदान सात अलग-अलग राज्यों से है। इसके चलते कैंसर के इलाज की दिशा में तेजी आएगी। इस रणनीति के साथ, डिम्बग्रंथि, अग्नाशय और अन्य विकृतियों जैसे मुश्किल से इलाज किए जाने वाले ट्यूमर वाले रोगियों के लिए इम्यूनोथेरेपी में काफी ज्यादा सुधार होगा।
इस शोध से जुड़े एक डॉक्टर ने इसके बारे में अहम जानकारी दी। रिसर्चर बायोइंजीनियर ओमिद वीसेज ने बताया कि अभी तक कैंसर मरीजों के इलाज में अस्पताल के बिस्तरों, आईवी बैग और बाहरी मॉनिटर से जोड़ा जाता है। नई तकनीक में हम छोटा उपकरण प्रत्यारोपित करने के लिए मिनिमम इनवेसिव प्रॉसेस इस्तेमाल में लाएंगे। इसमें इंसुलिन पंप और ग्लूकोज मॉनिटर के बीच रेगुलर कांटैक्ट शामिल है। टीम में इंजीनियर, हेल्थ स्पेशलिस्ट और सिंथेटिक जीव विज्ञान, सामग्री विज्ञान, इम्यूनोलॉजी, ऑन्कोलॉजी, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और एआई सहित विभिन्न क्षेत्रों के स्पेशलिस्ट्स की टीम शामिल है।
टेक्सास विश्वविद्यालय के एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर में स्त्री रोग संबंधी ऑन्कोलॉजी के असिस्टेंट रिसर्चर और प्रोफेसर डॉ आमिर जाजरी ने एक बयान में कहा कि कैंसर कोशिकाएं लगातार विकसित हो रही हैं और चिकित्सा के अनुकूल हैं। हालांकि, वर्तमान में उपलब्ध नैदानिक उपकरण, जिनमें रेडियोलॉजिकल टेस्ट, रक्त टेस्ट और बायोप्सी शामिल हैं। ऐसे में आज के उपचार कैंसर का इलाज करते हैं जैसे कि यह एक स्थिर बीमारी थी। हमारा मानना है कि थॉर ट्यूमर के वातावरण से वास्तविक समय के डेटा प्रदान करके यथास्थिति को बदल सकता है जो बदले में अधिक प्रभावी और बेहतर इलाज की राह खोल सकता है।