प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में अपने भाषण के दौरान कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। गोवा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पीएम ने गोवा की आजादी के मुद्दे को फिर से उठाया। इसके साथ ही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर भी निशाना साधा। पीएम मोदी ने इस दौरान नेहरू के लाल किले से दिए भाषण का उल्लेख करते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री ने गोवा में सेना नहीं भेजने की बात कही थी। नेहरू ने 15 अगस्त 1955 में स्पीच दी थी जिसमें वो बातें थी कि जिनका जिक्र मोदी ने अपने भाषण में किया। एक अजीब बात है, कोई हमसे पूछे गोवा के मसले पर कि वो चाहते हैं हिन्दुस्तान में मिल जाए। हिन्दुस्तान में मिलने का सवाल क्या? क्या किसी ने हिन्दुस्तान का नक्शा नहीं देखा। क्या किसी ने देखा नहीं कि वो हैं कहा? वो हिन्दुस्तान का एक टुकड़ा है और कौन उसे अलग कर सकता है। हम आज आठ बरस मना रहे हैं आजादी का और दुनिया देखे की इन वर्षों में हमने कितने सब्र से काम किया। हमा चाहते है कि गोवा का सवाल शांति के तरीके से हल हो। नेहरू ने कहा था कि गोवा के मामले में हम कोई फौजी कार्रवाई नहीं करने वाले हैं। हम इसको शांति के तरीकों से हल करने वाले हैं। कोई इस धोखे में न रहे कि हम वहां फौजी कार्रवाई करेंगे। 1947 में भारत की आजादी के बाद भी गोवा में पुर्तगाल का झंडा लहरा रहा था। देश की आजादी के समय जब अंग्रेजों के साथ बातचीत हो रही थी तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से यह मांग रखी कि गोवा को भारत के अधिकार में दे दिया जाए। वहीं पुर्तगाल ने भी गोवा पर अपना दावा ठोक दिया। अंग्रेजों ने भारत की बात नहीं मानी और गोवा पुर्तगाल को हस्तांतरित कर दिया गया। 15 अगस्त 1955 को तीन से पांच हजार आम लोगों ने गोवा में घुसने की कोशिश की। लोग निहत्थे थे और पुर्तगाल की पुलिस ने गोली चला दी। 30 लोगों की जान चली गई। तनाव बढ़ने के बाद गोवा पर सेना की चढ़ाई की तैयारी की गई। 1 नवंबर 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। भारतीय सेना ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने के साथ आखिरकार दो दिसंबर को गोवा मुक्ति का अभियान शुरू कर दिया। जमीन से सेना, समुद्र से नौसेना और हवा से वायुसेना गई। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। दिसंबर 1961 को गोवा की तरफ सेना पहली बार बढ़ी। सेना जैसे-जैसे आगे बढ़ती लोग स्वागत करते। कुछ जगह पुर्तगाल की सेना लड़ी। लेकिन हर तरफ से घिरे होने की वजह से पराजय तय थी। वायु सेना ने आठ और नौ दिसंबर को पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की, थल सेना और वायुसेना के हमलों से पुर्तगाली तिलमिला गए। आखिर में 19 दिसंबर 1961 की रात साढ़े आठ बजे भारत में पुर्तगाल के गवर्नर जनरल मैन्यु आंतोनियो सिल्वा ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर पर दस्तखत किए।