देश की राजनीति में मुसलमान एक बड़ा वोट बैंक है और सत्ता पर काबिज होने के लिए हर पार्टी को इस वोट बैंक की जरूरत पड़ती है और दशक दर दशक ये मजबूत ही हो रहा है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों पर नजर रखने वाली राजनीतिक पार्टियां उम्मीद कर रही हैं कि यूपी का मुस्लिम वोटर भी पश्चिम बंगाल की तरह एक ही पार्टी यानी सिर्फ उन्हें ही चुनेगा। उत्तर प्रदेश में बीते दो दशक के दौरान समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का वर्चस्व रहा है। आजम खान और नसीमुद्दीन सिद्दीकी राज्य से बड़े मुस्लिम नेता के तौर पर सामने आए हैं। वहीं बीजेपी के मुख्तार अब्बास नकवी इसी राज्य में मुस्लिम वोट बैंक का ज्यादा से ज्यादा फायदा अपनी पार्टी को दिलाने की कोशिश करते हैं। इनके अलावा मुस्लिम नेतृत्व के नाम पर बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी का अपना किरदार है। पहले दो चरण में पश्चिमी यूपी में चुनाव है, वेस्ट यूपी के हर चुनाव में गरम रहने वाली मुस्लिम सियासत एकदम बदली बदली दिख रही है। लेकिन इस बार के चुनाव में मुस्लिम चेहरे चुनावी दंगल से नदारद दिख रहे हैं। बीएसपी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री हाजी याकूब कुरैशी और मेरठ के पूर्व सांसद और मेयर शाहिद अखलाक का घर मुस्लिम राजनीति के केंद्र में रहता था। लेकिन इस बार दोनों ही परिवार चुनाव से दूर हैं।यूपी में 143 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोट असरदार हैं। करीब 70 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 20 से 30 फीसदी के बीच हैं। 43 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से ज्यादा हैं। यूपी में 36 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम प्रत्याशी अपने बूते पर जीत हासिल कर सकते हैं। यानी यूपी में करीब 100 सीटों पर या दूसरे शब्दों में कहे हर चौथी सीट पर मुस्लिम वोट एक निर्णायक फैक्टर है। साल 1951-52 में हुए पहले आम चुनाव में उत्तर प्रदेश विधानसभा में 9.5 प्रतिशत यानि 41 मुस्लिम विधायक जीते थे। 1962 के तीसरे चुनाव में 30 विधयकों की जीत के साथ और नीचे गिर कर महज़ 7 प्रतिशत रह गया।1974 के चुनाव में 25 विधायकों की जीत से ये फिर गिर कर 5.9 प्रतिशत पर पहुंच गया। साल 2012 में जब पहली बार एसपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो मुस्लिम प्रतिनिधित्व बढ़कर 17.1 हो गया और 69 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे। 24 विधायक 2017 के विधानसभा चुनाव में जीते थे और एक विधायक 2018 के उपचुनाव में जीता था।