उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। सभी दल प्रत्याशियों की सूची तैयार करने में जुटे हैं और अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। इस बीच, एक आम वोटर से लेकर सियासी पंडितों तक की जुबान पर एक ही सवाल है कि मायावती कहां हैं? चुनावी विश्लेषक हो या उनके विरोधी भी ये समझ नहीं पा रहे हैं कि पिछले 3 दशकों में 4 बार यूपी को मुख्यमंत्री देने वाली बीएसपी इस बार के चुनाव में है कहां हैं। कभी यूपी में बीजेपी को 51 सीटों पर सिमेट देने वाली बीएसपी आज खुद सूबे की सियासत से गायब दिख रही है। जिसने राजनीतिक पंडितों से लेकर प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों को भी हैरान कर दिया है। ऐसे में एक बड़ा सवाल जो प्रखर रुप से सामने आ रहा है कि आखिर दलित वोट किस ओर रुख करेगा?वैसे तो बसपा कई राज्यों में चुनाव लड़ती है लेकिन उत्तर प्रदेश उसके लिए खासा मायने रखता है। जिसके पीछे की वजह है उसका अपना काडर जो दशकों से उसका कोर वोटर रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के बीच आम धारणा है कि मायावती की ‘अरुचि’ बसपा के कोर वोटरों का एक वर्ग कहीं और शिफ्ट हो सकता है। वैसे भी अन्य दावेदार यूपी में 21% मतदान आबादी वाले समुदाय को लुभाने के लिए पूरी कोशिश में लगे हैं। वैसे अगर पिछले तीन दशकों की राजनीति पर गौर करें तो दलितों ने पारंपरिक रूप से बसपा का समर्थन किया है। ऐसे दौर में जब बीजेपी के छिटकर कई ओबीसी नेता सपा की ओर रुख कर रहे हैं। गैर-यादव पिछड़ी जाति के मतदाताओं को साथ करने की कवायद परवान पर है। समुदाय के महत्व को भी अहमियत दी जा रही है।