COP26 जलवायु वार्ता से पूर्व जी-20 देशों ने सदी के अंत तक तापमान बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने पर सहमति तो प्रकट की है। लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उनके पास अभी भी ठोस रणनीति का अभाव है। लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी-20 देशों को कई मुद्दों पर स्पष्टता प्रकट करने की जरूरत थी जो कि उनके द्वारा नहीं की गई। जलवायु विशेषज्ञों के अनुसार जी-20 देशों की घोषणा में लक्ष्य एवं दृष्टि का अभाव साफ नजर आता है।
जी-20 देश वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के करीब 75 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए उनके द्वारा उठाए जाने वाले कदम जलवायु खतरों से निपटने में निर्णायक साबित होंगे। लेकिन जी-20 देशों की डेढ़ डिग्री पर सहमति की घोषणा लुभावनी है लेकिन वे इसका रास्ता नहीं बता रहे। सिर्फ यह कहा गया है कि सदी के मध्य तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल किया जाएगा। लेकिन इसमें 2050 की समय सीमा रखने से परहेज किया गया है क्योंकि चीन समेत कई देशों के लक्ष्य 2060 के हैं। इस प्रकार पूरा जोर दीर्घकालिक लक्ष्यों के निर्धारण पर रहा है। कम अवधि के 2030 के लक्ष्यों को लेकर स्पष्टता नहीं है।
कोयले से बनने वाली बिजली पर निर्भरता खत्म करने पर जोर
इसके अलावा जी-20 देशों ने निर्णय लिया है कि वे देश के बाहर कोयले पर निवेश नहीं करेंगे। लेकिन देश के भीतर निवेश पर रोक पर कोई पाबंदी नहीं है। इसी प्रकार जलवायु खतरों से निपटने के लिए कोयले से पैदा होने वाली बिजली पर निर्भरता खत्म करने पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन जी-20 देशों का घोषणापत्र इस मुद्दे पर चुप है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि वह शून्य कार्बन उत्सर्जन का ऐलान करते हैं तो उन्हें कोयले के इस्तेमाल को बंद करने की समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए। जो नहीं की गई है।