बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडाल में हुए हमले के बाद कई हिंदू मंदिरों और घरों पर हमले किए गए. तोड़फोड़ और हिंसा में सात लोगों की जान भी गई और बांग्लादेश में अभी जो कुछ हो रहा है, उस पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं.
मगर इन सबके बीच भारत का रवैया थोड़ा हैरान करने वाला है. पड़ोसी देश में हिंदू समुदाय के पूजास्थलों और घरों पर कई हमले होने के बावजूद भारत ने इस पर बिल्कुल नपी-तुली प्रतिक्रिया दी है.
अतीत में जब भी ऐसी घटनाएं हुई हैं, भारत ने पीड़ित हिंदुओं और अल्पसंख्यकों के साथ उनके साथ एकजुटता ज़ाहिर करने के लिए दूतावास के प्रतिनिधिनियों को भेजा है. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं किया गया.
इसके उलट भारत ने कहा है कि उन्हें हालात को काबू में करने के लिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के उठाए क़दमों पर भरोसा है.
भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि भारत को शायद लगता है कि ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को और ज़्यादा शर्मिंदा करना उचित नहीं होगा इसलिए वो एहतियात के साथ प्रतिक्रिया दे रहा है.
भारत का शेख़ हसीना में भरोसा
भारत का मौजूदा रवैए की तुलना अगर अतीत की ऐसी ही घटनाओं से करें तो यह काफ़ी अलग नज़र आता है. पहले जब नासिनगर, सिलहट या मुरादनगर में ऐसी घटनाएं हुई थीं, तब भारत ने इन पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी.
इतना ही नहीं, बांग्लादेश में भारतीय दूतावास के प्रतिनिधियों ने हिंसा प्रभावित जगहों का दौरा किया था और बांग्लादेश के हिंदुओं के अधिकारों के पक्ष में खुलकर अपनी बात रखी थी.
इनकी तुलना अगर पिछले हफ़्ते कुमिल्ला, चाँदपुर, फ़ेनी और चिटगाँव में हिंदू धर्मस्थलों और घरों पर हुए कई हमलों और हिंसा में मौतों के बाद भी भारत की प्रतिक्रिया बहुत सँभली हुई रही.
अब तक भारत ने एक देश के तौर पर इन हिंसा की घटनाओं पर सिर्फ़ एक टिप्पणी की है. पाँच दिन पहले भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा था, “हमने भी बांग्लादेश में पूजास्थलों पर हमले की परेशान करने वाली ख़बरें देखी हैं.”
इस बयान के ठीक बाद ही अरिंदम बागची ने याद दिलाया की बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने हिंसा के बाद पैदा हुई स्थिति को काबू में करने के लिए सुरक्षाबल तैनात किए हैं.
बागची ने कहा था, “सरकार और नागरिक समाज के पूरे सहयोग के साथ दुर्गा पूजा संपन्न हो गई है.”
वहीं, दूसरी तरफ़ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के सांसद बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमले के ख़िलाफ़ खुलकर बोल रहे हैं. वो इस बारे में सोशल मीडिया पर भी काफ़ी कुछ लिख रहे हैं लेकिन सरकार के स्तर पर इस बारे में नपी-तुली प्रतिक्रिया ही देखने को मिल रही है.