कश्मीर में तीन दिन में पांच हत्याएं, कायरतापूर्ण प्रहारों के निशान बार-बार एक ही सवाल पूछ रहे हैं……आखिर हमारा कसूर क्या था? घाटी में आतंकी उन लोगों को निशाना बना रहे हैं जिन्होंने 1990 में आतंकवाद के चरम पर भी अपनी जमीन नहीं छोड़ी थी। नादिमर्ग नरसंहार भी इन लोगों का हौसला नहीं तोड़ पाया था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से कश्मीरी पंडितों, सिखों और गैर कश्मीरी हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है। लोगों में दहशत का माहौल है। श्रीनगर में हो रहीं टारगेट किलिंग ने पुलिस के सामने सवाल खड़े कर दिए हैं।
आतंकियों की हताशा और बौखलाहट की मुख्य वजह है घाटी में कश्मीरी हिंदुओं की वापसी। पाकिस्तान आतंकी हमले कराकर ये अफवाह फैलाना चाहता है कि घाटी में हालात सही नहीं हैं। इसी साजिश के तहत उसने आतंकी संगठनों को हमलों की जिम्मेदारी दी है। हमलों को अंजाम देने के लिए आतंकी एके-47 के बजाय पिस्टल का प्रयोग कर रहे हैं। श्रीनगर में गुरुवार को दो शिक्षकों की हत्या ने एक बार फिर पुराने घावों को कुरेद दिया है।
साल 1990, यातनाओं का वो दौर जो कश्मीरी पंडितों को आज भी झकझोर देता है कश्मीर में 1989-90 में आतंकवाद चरम पर आते ही कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम शुरू हो गया था। बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित जान बचाकर घाटी से पलायन कर गए। फिर भी नादिमर्ग में कश्मीरी पंडितों के दस परिवार वहीं बने रहे। साल 1990 में आतंकियों का डेथ वारंट जारी करने वाले एक जज, वकील, कारोबारी समेत कई पंडितों को घर से निकालकर सरेआम गोली मार दी गई। किसी की आंखों के सामने भाई को मार दिया, तो किसी की बहू-बेटी की आबरू लूट ली गई। जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने पर आतंकियों ने एक नर्स को आरे से जिंदा चीर दिया। जान से मारने की धमकी के बाद घर में चावल के ड्रम में छिपे एक पंडित को गोलियों से भून दिया।
इसके बाद आतंकियों ने उनकी पत्नी को खून से सने चावल पकाकर खिलाए
इसके बाद आतंकियों ने उनकी पत्नी को खून से सने चावल पकाकर खिलाए। कश्मीर छोड़कर भाग जाने के लिए पंडितों के घरों के बाहर और सड़कों पर पोस्टर चस्पा कर दिए गए। 19 जनवरी, 1990 के दिन श्रीनगर में लाखों लोगों का जुलूस निकाला गया। नारे लगे- हम क्या चाहते आजादी, कश्मीरी पंडितों भाग जाओ, औरतों को छोड़ जाओ।
धार्मिक स्थलों से एक साथ अनाउंसमेंट होते हैं- पंडितों 24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहो दहशत भरे ऐसे माहौल में डरे सहमे पंडित घरों में दुबक गए थे। इसी रात करीब नौ बजे पूरे कश्मीर में धार्मिक स्थलों से एक साथ अनाउंसमेंट होते हैं- पंडितों 24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहो। पंडितों को लगा कि यहां अब मदद करने वाला कोई नहीं है। जान और आबरू बचाने के लिए रातों-रात पुरखों के घर-बार छोड़कर साढ़े तीन लाख लोग रोते-बिलखते घाटी से निकल आए। जिसने जो पहना था, उसी में बहू-बेटियों और बच्चों को लेकर भागा।
हर तरफ लाशें थीं, सारा गांव श्मशान बन चुका था 23 मार्च, 2003, स्थान नादिमर्ग: 23 मार्च, 2003 को गांव में दिन के समय आतंकी देखे गए। इसकी सूचना पुलिस को दी गई। बताया जाता है कि पुलिस मौके पर पहुंची ही नहीं थी। इसी रात हथियारों से लैस आतंकी गांव में घुसे। इसके बाद आतंकियों ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं। गांव के कश्मीरी पंडितों को कतार में खड़ा किया गया। जिसमें महिला, बच्चे और पुरुष थे। देखते ही देखते गोलियों की बौछार शुरू हो गई। हर ओर दिल दहला देने वाली चीखें थीं। थोड़ी देर बाद सन्नाटा पसर गया। हर तरफ लाशें थीं। सारा गांव श्मशान बन चुका था।