कांग्रेस नेता अनिल चौधरी सोमवार को दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर अपने समर्थकों के साथ सड़क पर थे.
चौधरी कांग्रेस के कई दूसरे नेताओं की तरह संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से बुलाए गए ‘भारत बंद’ के प्रति समर्थन जताने आए थे.
किसान मोर्चा ने तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में जारी आंदोलन के एक साल पूरा होने पर भारत बंद का एलान किया था.
चौधरी जब सड़क पर धरना देने के लिए बैठे तो ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर मौजूद किसानों ने उनसे गुजारिश की कि वो ‘दिल्ली लौट जाएं.’
एक किसान नेता ने कहा, “ठीक है आप समर्थन कर रहे हैं. हमारे मंच पर आकर मीडिया का आप जो लाभ लेना चाह रहे हैं… प्लीज़ आपसे रिक्वेस्ट है, आप खड़े हो जाइए. आपका पूरा सम्मान है.”
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की कि वो किसानों से बात करें.
‘किसानों के कंधे पर बंदूक’
उधर, केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने भी किसान आंदोलन और भारत बंद को ‘राजनीति से प्रेरित’ बताया.
केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के सीनियर नेता मुख्तार अब्बास नक़वी ने आरोप लगाया कि कुछ नेता किसानों के जरिए अपने राजनीतिक हित साधना चाहते हैं.
समाचार एजेंसी एएनआई ने नक़वी के हवाले से कहा, ” असल में कुछ राजनीतिक दल किसानों के ट्रैक्टर पर बैठकर अपनी ऊसर ज़मीन की जुताई में लगे हुए हैं. उनको लगता है कि किसानों के ट्रैक्टर पर बैठकर ऊसर हो गई ज़मीन को वो उपजाऊ बना लेंगे.”
उन्होंने आगे कहा, “इसे कहते हैं किसानों के कंधे पर बंदूक और क्रिमिनल कॉन्सप्रेसी का संदूक. किसानों के मुद्दे का जहां तक प्रश्न है, हमारी सरकार ने कभी भी टकराव का रास्ता नहीं अपनाया, टॉक का रास्ता अपनाया. बातचीत का रास्ता अपनाया.”
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी किसानों के साथ बातचीत की पेशकश की और आंदोलन को राजनीति से दूर रखने की सलाह दी.
तोमर ने कहा, “किसान आंदोलन का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए. किसान सभी के हैं. सरकार ने किसानों के संगठन के साथ बेहद संवेदनशील तरीके से बात की है और आगे भी ऐसा करने को तैयार है.”
सरकार के दावों के उलट किसान संगठनों का कहना है कि ‘किसान तैयार हैं लेकिन सरकार बातचीत की कोशिश नहीं कर रही है.’
किसानों के संयुक्त मोर्चा ने सोमवार के बंद को कामयाब बताया और इसे सफल बनाने में लोगों के सहयोग के लिए आभार भी जताया.
किसान नेताओं ने सोमवार को भी ये दिखाने की कोशिश की कि इस आंदोलन में राजनीतिक दलों की कोई हिस्सेदारी नहीं है.
लेकिन पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक और महाराष्ट्र से लेकर बिहार तक राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता बंद को समर्थन देने के लिए सड़कों पर उतरे.
कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, वाम दल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल समेत कई विपक्षी दलों के कार्यकर्ता बंद के दौरान सड़कों पर दिखे.
इन पार्टियों के बड़े नेता सोशल मीडिया पर सक्रिय नज़र आए और बंद को समर्थन दिया.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा, “किसानों का अहिंसक सत्याग्रह आज भी अखंड है लेकिन शोषण-कार सरकार को ये नहीं पसंद है. इसलिए #आज_भारत_बंद_है.”
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने बंद को समर्थन देने के एलान के साथ दावा किया कि किसान आंदोलन ‘भाजपा के अंदर टूट का कारण’ बनने लगा है.
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी बंद को समर्थन दिया और बीजेपी पर किसानों को अनदेखा करने का आरोप लगाया.
हालांकि, तमाम दलों के समर्थन देने के बाद भी किसान संगठनों ने न तो राजनीतिक दलों से मिले सहयोग का ज़िक्र किया और न ही आभार जताया.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. ऐसे में सवाल ये है कि जब किसान अपने आंदोलन को राजनीति से दूर बताते रहे हैं तो तमाम राजनीतिक दलों के बीच उन्हें समर्थन देने की होड़ क्यों है?