पितृपक्ष में तर्पण और पिंडदान करने का विशेष महत्व होता है. यह समय पूर्वजों की आत्माओं की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए समर्पित होता है. हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं और अपनी संतानों से तर्पण और श्राद्ध की अपेक्षा करती हैं.
पितरों का तर्पण उनके स्वर्गवास की तिथि के अनुसार किया जाता है. लेकिन किसी कारणवश ऐसा भी होता है कि हम अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहते हैं लेकिन हमें उनकी तिथि अज्ञात होती है. ऐसे में अज्ञात तिथि वाले सभी पितरों का श्राद्ध और तर्पण सर्व पितृ अमावस्या के दिन करने का विधान है.
इस दिन को महालय अमावस्या या पितृ अमावस्या और सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन गलती से छूट गए सभी पितरों का श्राद्ध और तर्पण हो जाता है. अगर किन्हीं कारणवश तिथि वाले दिन पितरों का श्राद्ध नहीं कर पाएं हैं तब भी उनका श्राद्ध और तर्पण सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जा सकता है. सर्व पितृ अमावस्या पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है. इस अमावस्या के साथ ही पितृपक्ष पर पितरों की विदाई हो जाती है.
सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करने का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर 2004, दिन बुधवार को है. इस दिन सुबह 11 बजकर 45 मिनट से लेकर 12 बजकर 24 मिनट तक कुतुप मुहूर्त रहेगा. इसके बाद, रोहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 34 बजे से लेकर दोपहर के 01 बजकर 34 बजे तक होगा.इस दिन पितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 21 मिनट से लेकर दोपहर के 03 बजकर 43 मिनट तक है.
सर्वपितृ अमावस्या पर इस विधि से करें पितरों का तर्पण
शुभ मुहूर्त
पितरों का तर्पण करने के लिए शुभ मुहूर्त का चुनाव करना चाहिए. शुभ समय में ही पितरों का तर्पण करना विशेष फलदायक होता है.
स्नान
तर्पण करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें और वहीं पितरों का तर्पण करें.
शुद्धि करें
जिस स्थान पर तर्पण कर रहे हैं उस स्थान की अच्छे से साफ सफाई करें और शुद्धि के लिए गंगा जल का छिड़काव करें.
दक्षिण दिशा
पितरों का तर्पण करने के समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए. इस दिशा को पूजा के लिए शुभ माना जाता है.
तस्वीर
जिनका तर्पण कर रहे हैं उन पूर्वज की तस्वीर स्थापित करें और दीपक व धूप जलाएं.
तर्पण का जल
तर्पण के लिए एक लोटे में जल लें और उसमें जौ, चावल काले तिल, कुश की जूडी, सफेद फूल, गंगाजल, दूध, दही और घी मिलाएं. जल के लोटे के साथ साथ तर्पण के लिए भोजन भी अलग से रखें.
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मंत्र जाप और तर्पण
दक्षिण दिशा की ओर मुख कर के जमीन पर घुटनों के बल बैठे. जल में कुश डुबोकर ॐ पितृ देवतायै नमः मंत्र का जाप करते हुए सीधे हाथ के अंगूठे से अर्पित करें. 11 बार तर्पण करें और पितरों को इस दौरान ध्यान करें. फिर पूर्व की ओर मुख करके चावल से देवताओं का तर्पण करें. इसके बाद उत्तर दिशा की ओर मुख करके जो लेकर ऋषियों का तर्पण करें.
पितरों का नाम लेकर करें तर्पण
पितरों का नाम और उनके गोत्र का नाम लेकर तर्पण करें. जिनका नाम मालूम नहीं है, उन्हें बस याद करके ही उन सबका तर्पण करें.
भोजन अर्पित करें
इसके बाद गाय के गोबर के उपले को जलाएं , इसमें भोजन जैसे खीर और पूड़ी अर्पित करें और अंगूठे से जल दें. इसके बाद भोजन के पांच अंश, देवताओं, गाय, कुत्ते, कौवे, चींटी के लिए निकालें. इन सभी को भोजन अर्पित करें.
ब्राह्मण को भोजन
पितरों का तर्पण करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और उसके बाद सामर्थ्य के अनुसार, ब्राह्मणों को वस्त्र और दक्षिणा आदि देकर विदा करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और घर में शुभ आशीर्वाद देते हैं.