भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार को तोड़कर बिहार में महागठबंधन सरकार बनाने के दो प्रमुख किरदार रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का सुर और ताल बिगड़ता दिख रहा है।
इंडिया गठबंधन की बैठक के लिए दिल्ली अलग जाना, अलग आना, उससे पहले और बाद लंबे समय तक ना नीतीश का लालू के पास जाना, ना लालू का नीतीश के पास जाना और दही-चूड़ा भोज में दस मिनट के लिए नीतीश का जाना और वहां भी पिछली दो बार की तरह लालू का नीतीश को दही का टीका नहीं लगाना। ये सब लक्षण हैं जो बता रहे हैं कि बड़े भाई और छोटे भाई की ट्यूनिंग गड़बड़ा चुकी है।
नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइडेड (जेडीयू) इंडिया गठबंधन की मुंबई मीटिंग के बाद 1 सितंबर से ही जल्द से जल्द सीट बंटवारा का इंतजार कर रही है। जबकि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू 17 जनवरी को भी किसी हड़बड़ी में नहीं दिख रहे हैं। लालू अब भी कह रहे हैं- एतना जल्दी हो जाता है, सब हो रहा है। अटकलें और चर्चा तमाम हैं लेकिन उसमें से किसी के भी सच या झूठ होने की गारंटी नीतीश कुमार के अलावा कोई नहीं दे सकता। इसलिए यहां उन बातों की चर्चा बेमानी है।
क्या पता सीट बंटवारा हो गया हो और आपको पता ना हो; तेजस्वी यादव का बड़ा बयान
सूत्रों का कहना है कि सीट बंटवारे को लेकर लालू का फॉर्मूला नीतीश को पसंद नहीं आ रहा है और सिटिंग सांसदों की 16 सीटें नहीं छोड़ने की जेडीयू की जिद आरजेडी को नहीं पच रही है। किसे कितनी सीट मिले और कौन किस सीट पर लड़ेगा जैसे मसलों पर महागठबंधन के दोनों बड़े दलों के बीच तनातनी है। कांग्रेस, माले, सीपीआई और सीपीएम ने कुल मिलाकर 25 सीटों पर दावा कर रखा है लेकिन कम से कम 9-10 सीट इन्हें चाहिए। कांग्रेस के हितों के रखवाले तो दिल्ली में भी हैं। लेकिन लेफ्ट को आशंका है कि लालू या नीतीश अपनी सीटों के चक्कर में उनकी कुर्बानी ना दे दें। इसलिए तीनों वामपंथी दलों के नेताओं ने दोनों नेताओं के दरबार में हाजिरी लगाकर सीटों की अपनी-अपनी डिमांड रख दी है।
कांग्रेस और लेफ्ट इस इंतजार में हैं कि आरजेडी और जेडीयू अपना मसला सुलझा लें क्योंकि लालू कुछ ऐसी सीटें मांग रहे हैं जहां जेडीयू के सिटिंग सांसद हैं। जेडीयू इस इंतजार में है कि आरजेडी पहले कांग्रेस, माले, सीपीआई और सीपीएम से तय-तमन्ना कर ले, फिर वो आरजेडी से बात करके फाइनल करे। उधर आरजेडी के नेता अलग लेवल पर चल रहे हैं। भाई वीरेंद्र कहते हैं कि बंटवारा हो गया है और ऐलान बाकी है। तेजस्वी तो आगे बढ़कर मजा ले रहे हैं। सीट बंटवारा पर सवाल पूछने वाले पत्रकारों से कह रहे हैं- क्या पता सीट बंट गया हो लेकिन आपको पता ही ना हो।
इस भ्रम की स्थिति में पूरी तस्वीर साफ की जेडीयू के सीनियर नेता और मंत्री विजय कुमार चौधरी ने। उन्होंने बुधवार को कहा कि राजद का कांग्रेस और लेफ्ट से पहले से गठबंधन है, जदयू बाद में आई। आरजेडी पहले कांग्रेस और लेफ्ट से बात करेगी और जब वो हो जाएगा तब जेडीयू से बात होगी। बिहार में महागठबंधन के सीट बंटवारे की बातचीत कहां तक पहुंची हैं, इसको लेकर इससे ज्यादा सटीक और स्पष्ट बयान अभी तक किसी नेता ने नहीं दिया है। और विजय चौधरी के बयान के बाद लालू का ये कहना कि ये सब इतनी जल्दी नहीं होता है, साफ करता है कि आरजेडी हड़बड़ी में नहीं है। जब हर तरफ लोकसभा चुनाव की तैयारी तेज है तो लालू सीट बंटवारे को लेकर इतनी बेफिक्री क्यों दिखा रहे हैं, ये एक पहेली है।
लोकसभा के साथ बिहार विधानसभा चुनाव की अटकलें क्यों? नीतीश और जेडीयू को क्या फायदा?
19 दिसंबर को दिल्ली में इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक के बाद सीट बंटवारे के तीन सप्ताह और हर हाल में एक महीने के अंदर हो जाने का दावा किया गया था। बिहार में उसकी कोई आहट नहीं है इसकी वजह गठबंधन की दोनों बड़ी पार्टियां आरजेडी और जेडीयू का बिगड़ता समीकरण है। नीतीश सितंबर से लगातार कह रहे हैं कि बीजेपी से लड़ना है, सीट जितना जल्दी बंट जाए, गठबंधन के लिए उतना अच्छा होगा।
लेकिन जल्दी सीट बंटवारे की बात कोई सुनता दिख नहीं रहा। पहले कांग्रेस ने दिसंबर तक सीट शेयरिंग को ठंडे बस्ते में डाला। अब खरमास खत्म हो चुका है लेकिन लालू और नीतीश की स्पीड और गियर में ताल-मेल नहीं है। क्या पता दोनों कैंप में मकर संक्रांति भोज के बाद राजनीतिक क्रांति का इंतजार हो रहा हो!