विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA में बीएसपी शामिल होगी या नहीं, इस बात को लेकर भ्रम अब भी बना हुआ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस चाहती है कि बसपा भी शामिल हो लेकिन एसपी इस बात पर सहमत नहीं है।
वहीं बसपा भी इस तरह के किसी भी गठबंधन से इनकार ही कर रही है। बीते महीने इंडिया गठबंधन की बैठक में सपा ने सीधा कांग्रेस से पूछ भी लिया था कि वह बसपा को लेकर क्या करने वाली है। इसके बाद बीएसपी चीफ मायावती ने भी कहा था कि इंडिया गठबंधन के दलों को उन पार्टियों के बारे में बात नहीं करना चाहिए जो उनके गठबंधन में शामिल नहीं हैं।
मायावती ने कहा था, यह नहीं बताया जा सकता कि किसको किसकी कब जरूरत पड़ जाएगी। ऐसा भी हो सकता है कि बाद में ये लोग शर्मिंदा हों। सपा इसका सीधा उदाहरण है। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बीएसपी ने साथ में चुनाव लड़ा था। पहले यही माना जाता था कि सपा औऱ बसपा का मेल कभी नहीं हो सकता। हाला्ंकि लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों ही दल साथ आ गए थे।
मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने भी सपा पर तंज कसते हुए कहा था कि कुछ लोग भाजपा से ज्यादा बीएसपी से डरते हैं। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस चाहती है कि बीएसपी भी गठबंधन में शामिल हो ताकि दलित वोटों को साधा जा सके। इसके अलावा मुस्लिम वोट भी हाथ में आ जाएँ। वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में अच्छी बढ़त बनाने वाली सपा नहीं चाहती कि उत्तर प्रदेश में बीएसपी के साथ भी उसे सीटें बांटनी पड़ें। अगर ऐसा हुआ तो इंडिया गठबंधन का छत्र ज्यादा प्रभावी हो जाएगा।
सपा चाहती है कि वह कुछ क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करे जिससे कि उत्तर प्रदेश में यादवों के अलावा भी अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटों पर उसकी पकड़ मजबूत हो। सूत्रों का कहना है कि सपा चाहती है कि यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से उसे अकेले ही 65 मिलें। इसके अलावा 10 पर कांग्रेस लड़े और पांच सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल चुनाव लड़े। सपा के नेता तो यहां तक कहते हैं कि 2024 में अखिलेश यादव को प्रधानमंत्री बनाना चाहिए। यूपी का समीकरण देखें तो बीएसपी के दलित वोट यादवों से कहीं ज्यादा हैं। बीएसपी की पकड़ ग्रामीण सीटों पर मजबूत हो सकती है। वहीं अगर बीएसपी के साथ बंटवारा होता है तो सपा के पास वे सीटें होंगी जहां मुकाबला बेहद कड़ा होने वाला है।
लोकसभा चुनाव की बात करें तो जब सपा और बसपा ने गठबंधन किया तो बीएसपी को 38 में से 10 सीटों पर जीत हासिल हुई। जो कि 2014 के चुनाव से बहुत ज्यादा थीं। 2014 में बीएसपी का खाता भी नहीं खुला था। वहीं सपा को 2019 में केवल पांच सीटें मिलीं जो कि 2014 के ही बराबर थीं। सपा कन्नौज, बदायूं और फिरोजाबाद की यादव बहुल सीटें भी हार गई थी। यूपी में दलितों की आबादी 20 फीसदी है। वहीं यादव वोट केवल 10 फीसदी हैं। इसके अलावा सपा को मुस्लिम वोट भी मिलते हैं जो कि 19 फीसदी हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने जरूर कमाल किया था। सपा को 111 सीटें मिलीं तो वहीं बीएसपी को केवल एक सीट मिली थी। अब सपा को लगता है कि लोकसभा चुनाव में वह बीएसपी से ज्यादा मजबूत है। वहीं इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अगर बीएसपी अलग से चुनाव में उतरती है और मुकाबला तीन दलों में होता है तो इसमें बीजेपी को ही फायदा मिलेगा। यही 2022 में भी हुआ था।