तीन राज्यों में भाजपा से हार के बाद कांग्रेस को पूर्वोत्तर के मिजोरम से भी तगड़ा झटका लगा है। बीते 36 साल से यहां मीजो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। इस बार नई पार्टी जोरम पीपल्स मूवमेंट ने 40 में से 27 सीटें जीतकर बड़ी सफलता हासिल की है।एमएनएफ को शिकस्त देने के बाद ZPM सरकार बनाने जा रही है। वहीं कांग्रेस सिर्फ एक सीट ही जीत पाई। भाजपा को भी दो सीटों पर जीत हासिल हो गई। गौर करने वाली बात यह है कि खुद मुख्यमंत्री जोरमथंगा भी अपनी सीट नहीं जीत पाए।तीन बार के मुख्यमंत्री रहे जोरमथंगा एजॉल ईस्ट फर्स्ट सीट से चुनावी मैदान में थे। जोरमथंगा ने राज्यपाल हरी बाबू कुंभमपति से मुलाकात करके अपना इस्तीफा सौंप दिया है। जेडपीएम के मुख्यमंत्री पद के दावेदार लालदुहोमा ने अपनी सीट से बड़ी जीत दर्ज की है। एजॉल में जेडपीएम ने सभी 10 की 10 सीटें जीत लीं जो कि राज्य का दूसरा बड़ा शहर है। डिप्टी चीफ मिनिस्टर तॉनलुइया को भी अपनी सीट से हार का सामना करना पड़ा।भाजपा को इस बार साइहा और पलक सीट से जीत हासिल हुई है। यहां जातीय अल्पसंख्यक आबादी रहती है। इसी के साथ भाजपा ने इस राज्य में भी अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी है। भाजपा को 2018 के चुनाव में मिजोरम में केवल एक सीट हासिल हुई थी। मणिपुर में हो रही जातीय हिंसा के बाद भाजपा समझ गई थी कि उसे जातीय अल्पसंख्यक सीटों पर ही सफलता मिल सकती है।जेडपीएम की जीत पर पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार लालदुहोमा ने कहा कि इसी नतीजे की उन्हें उम्मीद थी। उन्होने कहा कि इसी महीने उनका शपथ ग्रहण होगा। बता दें कि लालदुहोमा कांग्रेस के सांसद रह चुके है्ं। इसके अलावा वह इंदिरा गांधी के सिक्योरिटी इंचार्ज के तौर पर भी काम कर चुके हैं। जोरम पीपल्स मूवमेंट पार्टी छह क्षेत्रीय दलों का गठबंधन था। इसने 2018 में आठ सीटें हासिल की थी। इस चुनाव के बाद ही जेडपीएम ने अलग पार्टी के रूप में रजिस्टर्सड किया।
कांग्रेस को बड़ा झटका
केंद्र में एनडीए की सहयोगी एमएनएफ भले ही मिजोरम में चुनाव हार गई है लेकिन सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा है। राज्य में सत्ता और विपक्ष में रहने वाली कांग्रेस को केवल एक सीट ही हासिल हुई। वहीं भाजपा की सीटों में बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लालसावता भी अपनी सीट से चुनाव हार गए।