सुप्रीम कोर्ट ने शहर में प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली सरकार की “ऑड-ईवन” योजना के असर को लेकर संदेह जताया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह ”दिखाने के लिए” लागू की जा रही।
कोर्ट ने दिल्ली के बाहर पंजीकृत डीजल से चलने वाले वाहनों और टैक्सियों को राजधानी की सड़कों से दूर रखकर प्रदूषण को कम करने के लिए वैकल्पिक सुझावों पर आम आदमी पार्टी (आप) सरकार से शुक्रवार तक जवाब मांगा है।
“ये सब दिखाने के लिए है”
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ दिल्ली सरकार द्वारा सोमवार से शुरू की जाने वाली ऑड-ईवन योजना से बहुत प्रभावित नहीं हुई। कोर्ट ने कहा, “क्या ऑड-ईवन सफल रहा है। ये सब दिखाने के लिए है।” दरअसल दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण को कम करने से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार के वकील से सवाल किया कि क्या “ऑड-ईवन” योजना तब सफल हुई थी जब इसे पहले लागू किया गया था। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, ‘‘यह सब दिखाने के लिए किया गया है, यही दिक्कत है।’’
न्यायालय के विचार को न्याय मित्र अपराजिता सिंह ने साझा किया। उन्होंने इस योजना को अवैज्ञानिक बताया और शीर्ष अदालत द्वारा 2 दिसंबर, 2022 को पारित एक आदेश का हवाला दिया। आदेश में दिल्ली और निकटवर्ती राज्यों को कलर कोडिंग योजना लागू करने का निर्देश दिया गया था। इसमें आसान पहचान के लिए वाहनों को उनके ईंधन प्रकार के आधार पर कोडिंग करना शामिल था। नारंगी टैग डीजल से चलने वाले निजी वाहनों के लिए था और नीला टैग पेट्रोल वाहनों के लिए था।
कलर कोडिंग पूरी तरह से लागू
अपराजिता सिंह ने अदालत को सूचित किया कि दिल्ली ने कलर कोडिंग को पूरी तरह से लागू कर दिया है, जबकि अन्य राज्यों ने अदालत के आदेश के लगभग एक साल बाद भी अनुपालन की रिपोर्ट नहीं दी है। उन्होंने कहा, “कलर कोडिंग का इस्तेमाल नारंगी टैग वाले वाहनों को सड़क से हटाने के लिए किया जा सकता है। नंबरप्लेट के आधार पर ऑड-ईवन लागू करना अवैज्ञानिक है।”
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “हालांकि दिल्ली सरकार “ऑड-ईवन” योजना को लागू करने की मांग कर रही है, लेकिन न्याय मित्र का मानना है कि यह अवैज्ञानिक तरीका है। वह बताती हैं कि कलर कोड के आधार पर नारंगी स्टीकर वाली गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। इस पहलू पर राज्य सरकार शुक्रवार तक रिपोर्ट देगी।”
केवल दिल्ली में पंजीकृत टैक्सियों को मिलेगी इजाजत?
आदेश में दिल्ली सरकार से अत्यधिक प्रदूषण के इस दौर में दिल्ली के बाहर पंजीकृत ऐप-आधारित टैक्सियों को सड़कों से दूर रखने के एक और सुझाव पर विचार करने को कहा गया है। पीठ ने कहा, “दिल्ली में बड़ी संख्या में ऐप-आधारित टैक्सियां हैं जो अन्य राज्यों में पंजीकृत हैं। प्रत्येक में एक यात्री होता है और इससे वाहन का भार बढ़ जाता है।” दिल्ली सरकार से जवाब मांगते हुए पीठ ने कहा, “राज्य जवाब दे सकता है कि क्या इस अवधि के दौरान निगरानी का कोई तरीका है कि अकेले दिल्ली में पंजीकृत टैक्सियों को चलने की अनुमति दी जाए।”
हालांकि न्यायालय ने दिल्ली में आवाजाही की चिंता को भी नोट किया, जिसे बड़े पैमाने पर मेट्रो रेल सेवाओं द्वारा पूरा किया जाता है। उन्होंने कहा, “मेट्रो पहले से ही भरी हुई है। अगर मेट्रो न होती तो भगवान जाने क्या होता।” फिर भी, हर मोड़ पर कनेक्टिविटी का मसला है, जिसके कारण लोग अपने वाहन खुद चलाना पसंद करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार से मांगा हिसाब
अपराजिता सिंह के अनुरोध पर, न्यायालय ने दिल्ली को पर्यावरण मुआवजा शुल्क (ईसीसी) के रूप में अब तक एकत्र की गई राशि और इसके इस्तेमाल की स्थिति बताने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने दिल्ली में प्रवेश करने वाले ट्रकों और मालवाहक वाहनों से वसूली जाने वाली यह राशि तय की थी। बाद में, 2000 सीसी से ऊपर के हर बड़े डीजल वाहन के पंजीकरण पर भी वाहन के एक्स-शोरूम या खुदरा मूल्य का 1% ईसीसी लिया जाने लगा।
वर्ष 2016 में शुरू की गई, ऑड-ईवन कार योजना कारों को उनके विषम (ऑड) या सम (ईवन) नंबर प्लेट के आधार पर वैकल्पिक दिनों में चलाने की अनुमति देती है। यह योजना अगले सप्ताह चौथी बार लागू होगी जब दिल्ली सरकार वाहनों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए इस योजना को लागू करेगी। ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ द्वारा किए गए 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, राजधानी में पीएम 2.5 प्रदूषण में वाहन उत्सर्जन का योगदान लगभग 40 प्रतिशत है।