मालदीव के निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने अपने ‘आउट-इंडिया’ अभियान के दम पर चुनाव जीता। सितंबर 2023 के राष्ट्रपति चुनावों में अपनी जीत के बाद से, मुइज्जू ने भारतीय सैनिकों को देश से बाहर भेजने की कसम खाते हुए, अपनी भारत विरोधी बयानबाजी दोगुनी कर दी है।
हालांकि, सच्चाई यह है कि मालदीव में एक भी भारतीय सैनिक तैनात नहीं है। इसके अलावा, संकट के समय में मदद के लिए मालदीव में भारतीय विमानों ने देश में बचाव और निगरानी अभियानों का नेतृत्व किया है। ‘आउट-इंडिया’ अभियान महज चुनावी बयानबाजी है और मालदीव को इसके बजाय ‘आउट-चाइना’ अभियान चलाना चाहिए।
मुइज्जू का दावा एक राजनीतिक नारा
मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने अपनी जीत के एक सप्ताह के भीतर भारतीय सैनिकों को निकालने की बात कहकर बखेड़ा खड़ा कर दिया। एक के बाद एक कई इंटरव्यूज में मुइज्जू ने खुलेतौर पर कहा कि ‘भारतीय सैनिकों को मालदीव से निकलना होगा।’ लेकिन मामले की सच्चाई यह है कि मालदीव में कोई भी भारतीय सैनिक तैनात नहीं है। मुइज्जू का दावा एक राजनीतिक नारा है जिसका वास्तविकता में कोई आधार नहीं है।
मालदीव में भारत के कुछ एएलएच हेलीकॉप्टर और एक डोर्नियर विमान हैं जिनका इस्तेमाल चिकित्सा निकासी, निगरानी और हवाई बचाव कार्यों के लिए किया जाता है। ये संसाधन मालदीव सरकार और उसके लोगों की सहायता के लिए तैनात किए गए हैं। यहां ये जानना जरूरी है कि मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) इन भारतीय हेलीकॉप्टरों का संचालन करता है। ये सभी मालदीव के झंडे के तहत उड़ते हैं, और डोर्नियर विमान पर भी भारतीय ध्वज नहीं है। अब इन विमानों को “भारतीय सैनिक” बताना केवल गलत बयानी ही नहीं बल्कि सरासर झूठ भी है।
मालदीव के लोगों की मदद कर रहा भारत
इन हेलीकॉप्टर और डोर्नियर विमान से जुड़े 176 कर्मी मुख्य रूप से मालदीव के लोगों की मदद के लिए लगे हुए हैं, न कि भारतीय हितों के लिए। 2019 के बाद से, इन लोगों ने 976 निकासी मिशनों को अंजाम दिया है। जिनमें हवाई निगरानी उनकी गतिविधियों का एक छोटा सा हिस्सा है। इसलिए, यह दावा करना कि भारत मालदीव में अपनी सेना रखता है, यह झूठ है।
मुइज्जू के बयान के राजनीतिक संदर्भ को समझना महत्वपूर्ण है। वह मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की पार्टी से हैं, जिनका चुनाव अभियान भारत विरोधी रुख पर केंद्रित था। यामीन का चीन समर्थक झुकाव उनके कार्यकाल के दौरान स्पष्ट था। हालांकि, उनके उत्तराधिकारी इब्राहिम सोलिह ने अपने निकटतम पड़ोसी भारत के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए अधिक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया।
मजिलिस चुनाव के लिए कर रहे बयानबाजी?
मुइज्जू को यह समझना चाहिए कि संधियां और समझौते इन विमानों की उपस्थिति को नियंत्रित करते हैं, और यह कोई ऐसा निर्णय नहीं है जो बिना सोचे-समझे लिया जा सकता है। ऐसी व्यवस्थाओं को बदलने की प्रक्रिया इन समझौतों के भीतर स्पष्ट रूप से रखी गई है, और यह “भारतीय सैनिकों को हटाने” जितना आसान नहीं है। राजनीतिक दृष्टिकोण से, मुइज्जू का बयान अप्रैल में होने वाले मजिलिस चुनाव में अपनी पार्टी के लिए वोट जुटाने का एक हथकंडा हो सकता है। वह राजनीतिक लाभ के लिए “इंडिया-आउट” कार्ड खेल रहे हैं और मालदीव की मौजूदा स्थिति के पीछे यही असली सच्चाई है।
इसके अलावा, मालदीव जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का सामना कर रहा है। समुद्र के बढ़ते स्तर से इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। गंभीर संकट की स्थिति में, मालदीव जलमग्न हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप संभावित शरणार्थी संकट पैदा हो सकता है। भारत तत्काल मानवीय राहत प्रदान करने के लिए अच्छी स्थिति में है, चीन नहीं। हेलीकॉप्टर, डोर्नियर विमान और तटीय गश्ती जहाजों की मौजूदगी ऐसी स्थिति से निपटने में मदद कर सकती है। इस लिहाज से भारत मालदीव के सबसे करीब होने के नाते मददगारों में सबसे पहले पहुंच सकता है।
भारत के 100 मिलियन डॉलर कहां से देंगे मुइज्जू
भारत ने मालदीव में 1.5 बिलियन डॉलर से अधिक का महत्वपूर्ण निवेश किया है। यह देश की पांच लाख की छोटी आबादी को देखते हुए पर्याप्त है। इस निवेश में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), बांड और ट्रेजरी बिल के माध्यम से योगदान शामिल है। 100 मिलियन डॉलर का पहला पुनर्भुगतान इस वर्ष के अंत तक होने की उम्मीद है। लेकिन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मुइज्जू के पास अभी इतना पैसा देने के लिए नहीं है।
अब समय आ गया है कि मुइज्जू सच्चाई को पहचानें और महसूस करें कि भारत ही मालदीव का सच्चा सहयोगी है। “आउट इंडिया” अभियान को आगे बढ़ाने के बजाय, उन्हें भारत के साथ एक मजबूत साझेदारी बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और “आउट चाइना” अभियान पर विचार करना चाहिए, जो मालदीव के दीर्घकालिक हितों और क्षेत्रीय स्थिरता के साथ संरेखित हो। मालदीव की भलाई और समृद्धि अपने सहयोगियों को बुद्धिमानी से चुनने पर निर्भर करती है, और भारत स्वाभाविक और विश्वसनीय विकल्प है।