इजरायल पर आतंकी संगठन हमास के हमले और गाजा पट्टी पर इजरायल के पलटवार करने से मध्य पूर्व में स्थिति विकट हो गई है। अब तक 1200 से ज्यादा लोगों की मौत इस लड़ाई में हो चुकी है।
इजरायली हमले में फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में ही अब तक 700 लोगों की जानें जा चुकी हैं। दुनिया दो गुटों में बंट सी गई है। हमास के खिलाफ जंग में इजरायल के साथ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली समेत कई ताकतवर देश खुलकर आ गए हैं। उधर, हमास को कई अरब देश पहले से ही समर्थन दे रहे हैं।
भारत ने संघर्षविराम की अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वह इस कठिन समय में इजरायल के साथ खड़े हैं। सोशल मीडिया X पर उन्होंने कहा, ‘इजरायल में आतंकवादी हमलों की खबर से पूरी तरह स्तब्ध हूं। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इजरायल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।’ हालांकि, विदेश मंत्रालय की तरफ से आधिकारिक तौर पर अभी तक कुछ नहीं कहा गया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर और मंत्रालय के हैंडल से सिर्फ पीएम के पोस्ट को ही रीट्वीट किया गया है। यह इशारा कर रहा है कि नई दिल्ली तेल अवीव का समर्थन कर रहा है।
पाकिस्तान-चीन इजरायल के खिलाफ
उधर, पाकिस्तान और चीन ने इजरायल का विरोध किया है। पाकिस्तान तो खुलकर हमास के समर्थन में उतर गया है, जबकि चीन ने वेस्ट बैंक और जेरुसलम में इजरायली निर्माण गतिविधियों के बहाने उसका विरोध किया है। सऊदी अरब फिलहाल मुश्किल में है। उसने तत्काल हिंसा रोकने की अपील की है। अमेरिका इजराइल-सऊदी के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए मध्यस्थता कर रहा था। भारत भी मध्य-पूर्व आर्थिक गलियारे को लेकर संशय में पड़ गया है। इस गलियारे की घोषणा पिछले ही महीने नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन में की गई थी और इसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के जवाब के रूप में भी देखा गया था।
इजरायल बनाम फिलिस्तीन में भारत का रुख
इजरायल-फिलिस्तीन विवाद पर भारत का रुख व्यापक रहा है। फिलिस्तीन का समर्थन देश की विदेश नीति का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। 1974 में जब फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO)और उसके नेता यासिर अराफात को ‘आतंकवादी’ कहकर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में बदनाम किया जा रहा था, तब भारत ने उनका साथ दिया था और PLO को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बन गया था। भारत की फिलिस्तीन नीति आजादी से पहले के दिनों से जुड़ी रही है। महात्मा गांधी ने 1938 में कहा था, “फिलिस्तीन का अरबों से वैसा ही संबंध है, जैसा इंग्लैंड का अंग्रेजी से या फ्रांस का फ्रेंच से है।” जवाहरलाल नेहरू ने भी फिलिस्तीन मुद्दे को भारतीय उपमहाद्वीप की सांप्रदायिक समस्याओं के समान बताया था।
जब नेहरू प्रधानमंत्री बने तो भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे को अपना सैद्धांतिक समर्थन जारी रखा। कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा से फिलीस्तीन की मांगों का समर्थन किया है। 1988 में भारत ने फिलिस्तान को एक देश के तौर पर मान्यता दी थी। भारत धर्म के आधार पर दो देश के निर्माण का विरोधी रहा है। बावजूद इसके 1950 में इजरायल को मान्यता दी गई। इसके पीछे की वजह यह थी कि भारत अरब देशों के साथ मधुर रिश्ते चाहता था। आज भा भारत अरब देशों के साथ मधुर रिश्तों का हिमायती है।
भारत-इजरायल संबंध
भारत ने भले ही 1950 में इजरायल को मान्यता दे दी थी लेकिन दोनों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध 1992 में स्थापित हुए। आज के दौर में इजरायल भारत का एक अहम व्यापारिक साझीदार देश है। कोविड-19 महामारी से पहले दोनों देशों के बीच व्यापार 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 जनवरी तक लगभग 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। हीरे का व्यापार द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 50% है। भारत एशिया में इजरायल का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। इसके अलावा भारत, इजरायल से हथियार आयात करने वाले सबसे बड़ा देश है। इजरायल के रक्षा निर्यात का लगभग 40 फीसदी हिस्सा भारत आता है।
हालांकि, बेहतर रिश्तों के बावजूद भारत इजरायल की विस्तारवादी और कब्जा करने की राजनीति का पक्षधर नहीं रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच गहरी दोस्ती है। भारत इजरायल को यह बात समझाने में कामयाब रहा है कि दोनों देशों के बीच आपसी व्यापारिक साझेदारी विवादित मुद्दों से परे रहेगी। इजरायल ने भी भारत की इस सोची-समझी रणनीति और कूटनीति को स्वीकार किया है। नरेंद्र मोदी इजरायल और फिलिस्तीन दोनों देशों का दौरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री रहे हैं।
भारत की कूटनीति क्या?
भारत शुरु से ही फिलिस्तीन का समर्थन करता रहा है। भारत को पता है कि फिलिस्तीन से सीधे तौर पर कोई फायदा नहीं है लेकिन उसका समर्थन करने से अरब और खाड़ी देशों के साथ रिश्ते मधुर बने रहेंगे और व्यापारिक साझेदारी चलती रहेगी। भारत अरब देशों से पेट्रोल का आयात करता है। इसके अलावा कोविड काल में अरब देशों ने भारत को ऑक्सीजन की सप्लाई भी की थी। इतना ही नहीं खाड़ी देशों में लाखों भारतीय नौकरी और रोजगार करते हैं। दूसरी, तरफ भारत ने इजरायल से मित्रता बरकरार रखते हुए उसकी विस्तारवादी या गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक पर कब्जे की रणनीति का समर्थन कभी नहीं किया।
चीन-पाकिस्तान को क्या संदेश
दरअसल, भारत जानता है कि ऐसा करने से वह अंतरराष्ट्रीय फलक पर कमजोर पड़ सकता है। पाकिस्तान और चीन भी चाहता है कि भारत खासकर गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक पर कब्जा करने के मामले पर इजरायली रुख का खुल कर समर्थन करे लेकिन भारत इससे दूर रहता आया है। इसके पीछे कारण यह है कि अगर भारत ने खुलकर इजरायल के कब्जा करने की नीति का समर्थन कर दिया तो पाकिस्तान भी पाक अधिकृत कश्मीर और उधर चीन अक्साई चीन पर कब्जा को वैध करार देने का दावा ठोक सकता है, जो भारत हरगिज नहीं चाहेगा। ऐसे में भारत ने इजरायल के साथ दोस्ती और कूटनीति बरकरार रखी और उसी के जरिए चीन और पाकिस्तान को करारा जवाब भी दिया है।