हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष गणेश चतुर्थी का उत्सव भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मध्याह्र काल के प्रहर में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था।
महाराष्ट्र और गुजरात में गणेशोत्सव को बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मुख्य गणेश चतुर्थी, विनायक चतुर्थी, कलंक चतुर्थी और डण्डा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। 10 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव इस वर्ष 19 सितंबर 2023 से आरंभ होगा और विसर्जन 28 सितंबर 2023 को होगा। गणेशोत्सव के पर्व के मौके पर चारो तरफ उत्सव की माहौल रहता हैं और हर किसी के मन में गणपति से अपनी मनोकामनों की पूर्ति की अभिलाषा होती है।
गणेश जी के प्रमुख 12 नाम
भगवान गणेश को सनातन धर्म में विध्नहर्ता और प्रथम पूज्यनीय देवता माना गया है। भगवान गणेश जी को देव समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गणेश का वाहन चूहा है इनकी दो पत्नियां भी हैं जिन्हे रिद्वि और सिद्वि के नाम से जाना जाता है। इनका सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है। माता पिता भगवान शंकर व पार्वती भाई श्री कार्तिकेय एवं बहन अशोक सुन्दरी हैं। गणेश जी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख है- समुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाशक , विनायक, धूमकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। विद्यारम्भ तथा विवाह के पूजन के समय इन नामों से गणपति की अराधना का विधान हैं।
कैसे कहलाए गजानन
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार, गणेशजी के सिर का धड़ से अलग होने का कारण शनिदेव को बताया गया है।प्रसंग के अनुसार माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए ‘पुण्यक’ नामक व्रत किया था और उनको इस व्रत के प्रभाव से पुत्र गणेश की प्राप्ति हुई। पूरा देवलोक भगवान शिव और माता पार्वती को बधाई देने और बालक को आशीर्वाद देने शिवलोक आ गया। अंत में सभी देवतागण बालक गणेश से मिलकर और उसे आशीर्वाद देकर जाने लगे। मगर, शनिदेव ने बालक गणेश को न तो देखा और न ही उनके पास गए।पार्वती ने इस पर शनिदेव को टोका। शनिदेव ने अपने श्राप की बात माँ दुर्गा को बताई।देवी पार्वती ने शनैश्चर से कहा-‘तुम मेरी और मेरे बालक की ओर देखो।धर्मात्मा शनिदेव ने धर्म को साक्षी मानकर बालक को तो देखने का विचार किया पर बालक की माता को नहीं ।उन्होंने अपने बाएं नेत्र के कोने से शिशु के मुख की ओर निहारा। शनि की दृष्टि पड़ते ही शिशु का मस्तक धड़ से अलग हो गया।माता पार्वती अपने बालक की यह दशा देख मूर्छित हो गईं।तब माता पार्वती को इस आघात से बाहर निकालने के मकसद से श्री हरि अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर बालक के लिए सिर की खोज में निकले और अपने सुदर्शन चक्र से एक हाथी का सिर काट कर कैलास पर आ पहुंचे। पार्वती के पास जाकर भगवान विष्णु ने हाथी के मस्तक को सुंदर बनाकर बालक के धड़ से जोड़ दिया।फिर ब्रह्मस्वरूप भगवान ने ब्रह्मज्ञान से हुंकारोच्चारण के साथ बालक को प्राणदान दिया और पार्वती को सचेत करके शिशु को उनकी गोद में रखकर आशीर्वाद प्रदान किया। हाथी का सिर धारण करने के कारण गणेश को गजानन भी कहा जाता है।
ऐसे करें भगवान गणेश जी की पूजा
गणेशजी की कृपा पाने के लिए पूजन के समय प्रसाद के लिए बेसन या बूंदी के लड्डू एवं गुरधानी जरूर रखें।धूप-दीप,लाल चन्दन,मोली,चावल,पुष्प,दूर्वा,जनेऊ,सिन्दूर,आदि से भक्तिभाव से गणेश जी का पूजन करना चाहिए । गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से गणेशजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं ।कष्टों से निवारण और शत्रु बाधा से बचने के लिए ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का पाठ करना उत्तम रहता है।धान की खील से पूजा करना मान-सम्मान दिलाने वाला है,वहीँ धन वृद्धि के लिए गणेशजी के साथ लक्ष्मी कीपूजा प्रत्येक शुक्रवार को करनी चाहिए। सुख-समृद्धि व संतान प्राप्ति के लिए गणेशजी पर प्रत्येक बुधवार को सिन्दूर चढ़ाना शुभ होता है।गणेशजी के पूजन व आरती के समय उनके पिता भगवान शिव,माता पार्वती,भाई कार्तिकेय,दोनों पत्नी रिद्धि व सिद्धि तथा दोनों पुत्र लाभ व क्षेम का ध्यान भी अवश्य करना चाहिए।पूजा-आरती के उपरांत चांदी या लकड़ी के सुंदर डंडे अवश्य बजाने चाहिए।