चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ की महत्वाकांक्षी व्यापारिक सड़क योजना को अगर पूरा कर लिया तो उसके भूराजनीतिक स्थिति और आर्थिक हितों का असर दक्षिण-पूर्वी एशियाई तटीय देशों के ऐतिहासिक व्यापारिक मार्ग और यूरेशिया की मुख्य भूमि समेत ¨हद महासागर के अधिकांश हिस्से में पड़ेगा।
टाइम्स आफ इजरायल में सेंटर फार पालिटिकल एंड फारेन अफेयर (सीपीएफए) के अध्यक्ष फेबियन बुसार्ट ने कहा कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) और खासतौर पर ग्वादर बंदरगाह चीन की भूमिका को अत्यधिक बढ़ा देगा। खासकर जब उसने अफगानिस्तान, मध्य एशियाई देशों से कारोबार करना शुरू कर दिया है।
सीपीईसी की इस परियोजना को वर्ष 2015 से शुरू किया जा रहा है। इसका संबंध चीन के पूर्वोत्तर प्रांत शिंजियांग (काशगर) और पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान के ग्वादर क्षेत्र में है। बीआरआइ के तहत चीन को 150 से अधिक देशों से सड़कों के संजाल, रेलवे और समुद्र मार्ग से जोड़ने की कोशिश है। इस परियोजना की लागत 1.3 अरब डालर आएगी। विश्लेषकों का कहना है कि सीपीईसी के कुछ मौजूदा मुद्दों पर कुछ गंभीर चुनौतियां हैं।
बुसार्ट का कहना है कि सीपेक के जरिये चीन सीधे तौर पर भारतीय उप महाद्वीप में दखल देगा। सीपेक पूरा होने पर चीन को अरब सागर में सीधा रास्ता मिलेगा और दूसरी ओर अफगानिस्तान तक उसकी सीधी पहुंच होगी। इससे वह अहम ऊर्जा आयात के लिए खनिजों के मार्ग में वैकल्पिक रास्ता बना लेगा और राजनीतिक रूप से अहम अफगानिस्तान में भी सेंध लगा लेगा। उन्होंने लेख में लिखा है कि पाकिस्तानी साझेदारी में वह असंतुलित तरीके से आर्थिक विकास करेगा। चीन की सत्ता और संसाधनों की भूख ने उसे गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र में भी प्रभाव बनाने में कामयाबी दी है। इसमें सबसे दुखद बात यह है कि यहां अपने फायदे के लिए उसने पर्यावरण और स्थानीय लोगों के जीवनयापन के साधनों को भी तबाह कर दिया है।