वैशाख महीने की पूर्णिमा को कूर्म जयंती मनाई जाती है। ये पर्व इस बार 5 मई, शुक्रवार को है। देवताओं और दानवों की समुद्र मंथन में सहायता करने के लिए भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार लिया था।इन्हें कच्छप अवतार भी कहा जाता है। समुद्र मंथन में कालकूट विष,अमृत और मां लक्ष्मी सहित चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी। नरसिंह पुराण के अनुसार कूर्मावतार भगवान विष्णु के दूसरे अवतार हैं जबकि भागवत पुराण के अनुसार ये विष्णुजी के ग्यारहवें अवतार हैं।
समुद्र मंथन के लिए हुआ कूर्म अवतार
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं को अपनी शक्ति पर बहुत अहंकार हो गया था। एक बार महर्षि दुर्वासा ने इंद्र को परिजात पुष्प की माला भेंट की थी। अहंकारवश इंद्र ने उस माला को ऐरावत हाथी के मस्तक पर डाल दिया। यह देख ऋषि को इंद्र पर क्रोध आ गया और उन्होंने देवताओं को श्रीहीन होने का श्राप देकर उनकी सुख-समृद्धि खत्म कर दी थी। श्राप के प्रभाव से लक्ष्मी सागर में लुप्त हो गईं। इससे सुर-असुर लोक का सारा वैभव नष्ट हो गया। इस घटना से दुखी होकर इंद्र भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने इंद्र को देवताओं और दानवों सहित समुद्र मंथन के लिए कहा। तब भगवान विष्णु के कहे अनुसार राक्षस और देवता मंथन के लिए तैयार हो गए। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया। देव-राक्षसों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर मंथन करना शुरू किया लेकिन पर्वत का आधार नहीं होने के कारण वो समुद्र में डूबने लगा। ये देखकर भगवान विष्णु ने बहुत बड़े कूर्म (कछुए) का रूप लेकर समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया। इससे पर्वत तेजी से घूमने लगा और समुद्र मंथन पूरा हुआ।
कूर्म अवतार जयंती का महत्व
शास्त्रों ने इस दिन की बहुत महत्ता मानी गई है। मान्यता के अनुसार इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है। कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए ज सकते हैं, नया घर भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है तथा बुरे वास्तु को शुभ में बदला जा सकता है।
ये करें उपाय
वास्तु के अनुसार कूर्म जयंती के दिन घर में चांदी या धातु से बना कछुआ लाना बहुत शुभ होता है इससे नकारात्मक ऊर्जा कम होती है। आप घर की उत्तर दिशा में कूर्म यंत्र भी रख सकते हैं एवं इसे बेडरूम में रखने की बजाए ड्रॉइंग रूम में रखें। जिस घर में धातु से बना कछुआ रहता है, वहां कभी धन-धान्य की कमी नहीं रहती, लक्ष्मीजी स्थाई रूप से निवास करती हैं क्योंकि कछुआ भगवान विष्णु का ही एक रूप है।