भई ऐसा है दिलीप कुमार साहब के बारे में कुछ नायाब, अनूठी और कुछ खट्टी-मीठी यादें ताजा करो। उनकी राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन और शाहरूख खान से तुलना करना दिलीप कुमार के फन के साथ नाइंसाफी है।
साइलेंट सिनेमा के बाद टॉकी फिल्म के दौर में अशोक कुमार, श्याम, करण दीवान, मोतीलाल के बाद दिलीप कुमार, देवआनंद और राजकपूर ही उस जेनरेशन के पहले आला और सफल अभिनेता रहे। कुल मिलाकर हिंदी बोलती फिल्मों का अभी नब्बे साल का ही इतिहास है। जाहिर है इनके बाद वाली जेनरेशन में इन अभिनेताओं की छाप तो मिलेगी ही।
एक्टिंग में राजेश खन्ना और शाहरूख खान तो कहीं दिलीप साहब के आसपास भी नहीं टिकते। राजेश खन्ना ने ‘इत्तेफाक’ और ‘आनंद’ के अलावा किसी फिल्म में ऐक्टिंग नहीं की। स्टारडम ने उनकी पहली इनिंग्स पर ही असर दिखाना शुरू कर दिया था। एई पुष्पा आई हेट टियर्स एक्टिंग नहीं थी। जैसे शाहरूख का बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी बातें तो होती रहती हैं सेनोरीटा भी ऐक्टिंग नहीं था, ये हम सब जानते हैं। केवल उनकी चौकलेटिया Gen X इमेज को सहलाता एक डॉयलॉग था।
उसके मुकाबले डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है ज्यादा नैचुरल और असरदार लगता है। या फिर तुम मुझे वहां ढूंढ रहे और मैं तुम्हारा यहां इंतजार कर रहा। इसमें स्क्रिप्ट, रोल और अदायगी तीनों दिखती हैं। लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि स्टारडम में शाहरूख खान ने सब दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया। इस मामले में शायद सलमान खान उनसे बीस हों, लेकिन ये कयास ही रहने दें तो अच्छा है।
पहले एक्टर डॉयलोग से जाने और पहचाने जाते थे। विशाल भारद्वाज, अभिषेक चौबे, अनुराग कश्यप, दिबाकर, ज़ोया अख़्तर, नीरज घेवन, विक्रमादित्य मोटवानी ने एक्टर को स्क्रिप्ट पकड़ा दी और पर्दे पर जितना ऐक्टर नजर आया, उतना डायरेक्टर और स्क्रिप्ट भी। खैर, वो बातें कभी और।
शाहरूख ने खुद को कभी एक्टर नहीं माना। He just got lucky। फिर भी ‘स्वदेस’ और ‘चक दे इंडिया’ में वो बतौर एक्टर नजर आए। शाहरूख का दिलीप साहब के साथ एक बहुत ही प्यारा और नाज़ुक निजी रिश्ता रहा है। लिखना है तो उसके बारे में लिखो।
ये बात सही है कि दिलीप कुमार की पहली इनिंग्स में वो ट्रैज्डी किंग तो अपनी सेकेंड इनिंग्स में वो ऐंग्री ओल्ड मैन की भूमिका में ज्यादा नजर आए। यानि कई मायनों में उन्होंने अपने आप को सीमित रखा। लेकिन उसी दौर में उन्होंने नया दौर, गंगा जमुना, मुगलेआजम भी की।
अमिताभ पर भी स्टीरियोटाइप होने के आरोप लगे। लेकिन अपनी पहली इनिंग्स में अमिताभ ने ऐंग्री यंग मैन से इतर बाकायदा हास्य भूमिकाओं में भी गजब सराहना जुटाई। उसी पहली पारी में उनकी एक तीसरी छवि भी नजर आई। इसलिए आलाप, मिली, अभिमान, बेमिसाल को भी भूलना आसान नहीं।
सेकेंड इनिंग्स में वो ऐंग्री ओल्ड मैन की भूमिका में तो नजर आए ही, मगर इसके साथ-साथ उनकी जो एक्टिंग स्किल का विस्तार दिखा उसने उनको किसी और तारामंडल में ला खड़ा किया। ब्लैक, पा, एकलव्य, चीनी कम, पिंक, सरकार, पीकू, गुलाबो सिताबो। इस सेकेंड इनिंग्स के लिए महानायक कहलाएंगे। हालांकि, चाहने वालों ने उनको ये खिताब बहुत पहले ही दे दिया था।
रही बात शक्ति की, कि दिलीप साहब उसमें अमिताभ पर हावी थे, तो ये ऑब्जेक्टिव एनालिसिस नहीं होगा। वो ऐंटी हीरो का दौर नहीं था। हिन्दी फिल्म के हिसाब से शक्ति में दिलीप साहब हीरो थे, एक निहायत ही ईमानदार पुलिस अफसर। उस दौर में हिंदी फिल्मों के हीरो में सभी खूबियां होती थीं। कोई निगेटिव शेड नहीं होता था। वहीं शक्ति में दूसरी तरफ अमिताभ बेटे की भूमिका में थे, मगर अंडरवर्ल्ड से जा मिले।
लेकिन दोनों कलाकार जब भी आमने-सामने आए, उन दोनों ने वो सीन बड़ी खूबसूरती से निभाए। डायलॉग दिलीप साहब के पास थे और जनता की सहानुभूति भी उनके साथ थी, क्योंकि विजय यानि अमिताभ गलत रास्ते पर जा चुके थे। लेकिन आखिरी सीन तक आप शक्ति में जब जब भी दिलीप साहब और अमिताभ को साथ देखते हैं तो यही सोचते हैं कि ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। और ये फिल्म इन्हीं दोनों के साथ ही बन सकती थी। मोहब्बतें में अमिताभ और शाहरूख या कभी खुशी-कभी गम में अमिताभ और शाहरूख में वो केमेस्ट्री आपको नहीं दिखती।
हालांकि दिलीप साहब और अमिताभ के होते हुए भी बॉक्स ऑफिस पर शक्ति फ्लॉप की श्रेणी में गिनी जाएगी। मगर शक्ति के विजय और शहंशाह के विजय में फर्क था। जनता ईमानदार पुलिस अफसर प्राण के साथ भी सहानुभूति जताती है, जिसने विजय को सरपरस्ती दी। जब वो विजय की करतूतों के बारे में जानकर उसे उपदेश देते हैं। लेकिन दर्शक ये भी जानता था कि शक्ति का विजय गलत रास्ते पर था, मगर शहंशाह ऊपर से जैसा भी दिखे, दरअसल वो गरीबों का मददगार था, अंधेरी रात में वो ज़ुल्म करने वालों की खबर लेता था। इसलिए शहंशाह का हीरो विजय ही था।
अपनी ट्वीट में दिलीप कुमार को श्रद्धांजली देते हुए अमिताभ बच्चन ने लिखा है कि भारतीय सिनेमा का इतिहास जब भी लिखा जाएगा उसको दो काल में बांटा जाएगा- दिलीप कुमार के पहले और दिलीप कुमार के बाद।
आज दिलीप साहब को याद कीजिये। देवदास के लिए, नया दौर के लिए , सुहाना सफर और ये मौसम हंसी के लिए। नैन लड़ जहिंये के लिए, उड़ें जब-जब ज़ुल्फें तेरी में कभी डाल इधर भी डेरा कि तक तक नैन थक गये गाने के लिए, मुगले आजम में अपनी माशूका के लिए अपने बाप शहंशाह अकबर से लोहा लेने के लिए, कर्मा में अनुपम खेर को थप्पड़ मारने के लिए, मशाल में अपनी बीमार बीवी के लिए रात के सन्नाटे में मदद मांगने के लिए। मधुमती के लिए, गंगा-जमुना के लिए, शक्ति, विधाता के लिए, जोरावर से बदला लेने के लिए। और हां लता के साथ उनका गाया हुआ लागी नहीं छूटे रामा…चाहे जिया जाय। सुनियेगा जरूर।
एक और मुसाफिर दुनिया से कूच कर गया। आज तुलना करने का दिन नहीं। आज सिर्फ़ दिलीप साहब की खूबसूरत और आलीशान शख्सियत को याद करने का दिन है।