लखनऊ के बहुचर्चित रिवरफ़्रंट घोटाले में सीबीआई की दर्जनों टीमों ने सोमवार को लखनऊ, ग़ाज़ियाबाद, नोएडा, इटावा, बुलंदशहर समेत कई ज़िलों के चालीस ठिकानों पर छापेमारी की है.
इसके अलावा सीबीआई ने पश्चिम बंगाल और राजस्थान में भी छापेमारी की है. सीबीआई ने अपनी प्रेस रिलीज़ में बताया है कि मामले में जांच जारी है.
सीबीआई लखनऊ की एंटी-करप्शन ब्रांच ने गोमती रिवरफ़्रंट निर्माण में हुए कथित घोटाले में आरंभिक जाँच के बाद तत्कालीन अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव, शिवमंगल यादव, चीफ़ इंजीनियर काज़िम अली, असिस्टेंट इंजीनियर सुशील कुमार यादव समेत 189 लोगों के ख़िलाफ़ नया केस दर्ज किया है.
सीबीआई के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि शुक्रवार को केस दर्ज करने के बाद ही सीबीआइ ने कई टीमें गठित कर उत्तर प्रदेश के 13 ज़िलों के साथ-साथ राजस्थान के अलवर और पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 40 स्थानों पर व्यापक तलाशी अभियान शुरू किया.
गोमती रिवरफ़्रंट मामले में सीबीआई ने यह दूसरी एफ़आईआर दर्ज की है जिनमें राज्य सरकार के कई अधिकारियों के अलावा राजनीति से जुड़े लोग और व्यवसायी भी शामिल हैं.
इनमें बीजेपी के भी कई नेता शामिल बताए जा रहे हैं.
आज जिन नेताओं के घर पर छापेमारी की गई, उनमें कांग्रेस पार्टी के प्रदेश सचिव राकेश भाटी भी शामिल हैं.
राकेश भाटी के बुलंदशहर स्थित आवास पर सीबीआई की टीम ने घंटों छानबीन की है.
क्या हैं आरोप?
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में लखनऊ में गोमती नदी के किनारे सौंदर्यीकरण की एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की गई थी. गोमती नदी के किनारों को गुजरात के साबरमती नदी के किनारे बने रिवरफ़्रंट की तर्ज़ पर सजाने की योजना बनी थी. तत्कालीन राज्य सरकार ने इस परियोजना के लिए 1513 करोड़ रुपये मंज़ूर किए थे.
आरोप हैं कि 95 फ़ीसद बजट ख़र्च करने के बावजूद काम पूरा नहीं किया गया. परियोजना में शामिल इंजीनियरों पर दाग़ी कंपनियों को काम देने, विदेशों से महंगा सामान ख़रीदने, नेताओं और अधिकारियों के विदेश दौरे में फ़िज़ूलख़र्ची करने और मानकों के अनुरूप काम न करने जैसे आरोप हैं.
मई, 2017 में रिटायर्ड जज आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में इस परियोजना में कथित घोटाले की सरकार ने न्यायिक जाँच कराई जिसमें कई ख़ामियां उजागर होने और न्यायिक जाँच की रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने इसकी सीबीआइ जाँच की सिफ़ारिश की थी.
दिसंबर 2017 सीबीआई ने जाँच शुरू की. इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय भी मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज कर जाँच कर रहा है.
बीजेपी ने लगाया घोटाले का आरोप
लखनऊ में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गोमती को सुन्दर और प्रवाहमान बनाने के लिए 550 करोड़ रुपये की लागत से गोमती रिवरफ़्रंट नाम की जो योजना शुरू की थी, वह उनके कार्यकाल में क़रीब 1600 करोड़ रुपये तक पहुँचने के बाद भी अधूरी ही रह गई थी.
इस परियोजना के तहत लखनऊ की नगर सीमा के भीतर गोमती नदी के दोनों किनारों पर बीस मीटर ऊंची कंक्रीट की दीवार बनाकर वहां पर साबरमती नदी की तरह पैदल सड़क, जॉगिंग ट्रैक, साइकिल ट्रैक और कई पार्क बनाए जाने थे. रिवरफ़्रंट पर घना वृक्षारोपण भी होना था. इस योजना के तहत गोमती को गहरा करने के लिए उसकी तलहटी से गाद भी निकाली जानी थी उसमें कई करोड़ की नावें और करोड़ों की लागत के फ़व्वारे भी चलने थे.
इस परियोजना पर काम भी काफ़ी तेज़ी से हुआ लेकिन सरकार का कार्यकाल इससे पहले ही पूरा हो गया और विधानसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई. भारतीय जनता पार्टी इस परियोजना में कथित घोटाले का मुद्दा उसी समय से उठा रही थी जब इस पर निर्माण कार्य चल रहा था.
रिवरफ़्रंट की ख़ूबसूरती के लिए हुए निर्माण कार्य पर न सिर्फ़ भ्रष्टाचार की शिकायतें आईं बल्कि पर्यावरण से संबंधित भी कई गंभीर आपत्तियां दर्ज हुईं लेकिन इसके बन जाने के बाद आज यह लखनऊ का सबसे अहम पर्यटन स्थल बन चुका है. यह अलग बात है कि गोमती रिवरफ़्रंट का जो काम मार्च 2017 से पहले अधूरा रह गया था वह अब भी लगभग वैसे ही छूटा हुआ है जबकि इस पर पैसे ख़र्च होने बंद नहीं हुए हैं.