उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे का प्रभाव भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए पहाड़ी राज्य से बहुत आगे निकल गया है। जबकि ये सच है कि रावत के खिलाफ असंतोष की सुगबुगाहट थी और यही वजह है कि भाजपा चुनावी राज्य में स्थिति को बिगड़ने नहीं दे सकती थी। दरअसल, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ परेशानी पैदा करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने रावत का इस्तीफे लेने की योजना बनाई है।
नंदीग्राम से 1956 वोटों के मामूली अंतर से विधानसभा चुनाव हारने वाली बनर्जी को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने के लिए छह महीने के अंदर चुने जाने की जरूरत है। उनके अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र भवानीपुर से चुनाव लड़ने की संभावना है, जिसे टीएमसी के निर्वाचित विधायक शोभंडेब चट्टोपाध्याय ने पहले ही खाली कर दिया है। हालांकि चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में उपचुनावों को टालने के लिए कोविड-19 का हवाला दे सकता है।
रावत ने अपने इस्तीफे पत्र में मई में तीन लोकसभा और आठ विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव रद्द करने के चुनाव आयोग के फैसले का जिक्र करते हुए कोविड-19 की स्थिति पर हवाला दिया था। संवैधानिक मुद्दे का उल्लेख करते हुए उसने कहा था कि उन्हें छह महीने के अंदर विधानसभा के लिए अनिवार्य रूप से निर्वाचित होना था। रावत ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (पीआरए), 1951 के अनुच्छेद 151 ए में कहा गया है कि यदि विधानसभा का शेष कार्यकाल एक साल से कम है तो उपचुनाव नहीं हो सकते हैं।
भाजपा के सूत्रों का दावा है कि इस्तीफे की कहानी तीरथ ने नहीं लिखी थी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पत्र का ड्राफ्ट उन्हें तब सौंपा गया था जब वह 2 जुलाई को पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने गए थे। यह पूरी रणनीति ममता बनर्जी के उपचुनाव को रोकने के लिए इसका इस्तेमाल करने की थी।
संयोग से चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल विधानसभा के परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद मई में होने वाले अधिकांश उपचुनावों को स्थगित करने का एलान किया। हालांकि चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि पश्चिम बंगाल में उपचुनावों को रोकने को सही करार देना आसान नहीं होगा। पश्चिम बंगाल में भवानीपुर सहित सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं।
चुनाव आयोग के अधिकारी ने कहा कि विधानसभा का गठन अभी पश्चिम बंगाल में हुआ है। अभी इसमें वक्त है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे मतदान वाले राज्यों में उपचुनाव अनुच्छेद 151A के कारण सस्पेंड किए जा सकते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही कोविड से संबंधित क्षेत्रों में निर्धारित पैमाने पर सावधानी के साथ चुनाव कराए जा सकते हैं। यूपी में जिला परिषद के चुनाव भी हो चुके हैं। इसलिए इसे ममता बनर्जी के खिलाफ बदले के रूप में देखे बिना पश्चिम बंगाल में इसका इस्तेमाल करना मुश्किल होगा।
ममता बनर्जी की मांग है कि चुनाव आयोग उपचुनावों की अनुमति दे और जल्द ही तारीखों का एलान करे। ममता बनर्जी ने यह भी कहा है कि प्रचार के लिए कम से कम सात दिन कर समय दिया जाना चाहिए। वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग के अधिकारी का कहना है कि क्षेत्र में कोविड की स्थिति का आंकलन करने के बाद ही उपचुनाव को लेकर कोई भी फैसला किया जाएगा।