क्या राहुल गांधी ने सांसदी खोकर वह पा लिया जिसकी उन्हें और कांग्रेस पार्टी को लंबे समय से दरकार थी? क्या विपक्षी पार्टियां अब कांग्रेस के झंडे तले एकजुट होने को राजी हो गई हैं?
यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो सोमवार को एक बार फिर से प्रासंगिक हो गए। इसके पीछे वजह है अचानक से विपक्षी दलों का कांग्रेस के साथ एक मंच पर आना। खासतौर पर आम आदमी पार्टी और ममता बनर्जी की पार्टी का कांग्रेस के सुर से सुर मिलाना कई संकेत देता है।
टीएमसी ने बदला स्टैंड
ज्यादा दिन नहीं बीता है जब ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर राहुल विपक्ष के नेता बने रहे तो पीएम मोदी को कोई हरा नहीं सकता। इस बात पर कांग्रेस ने ऐतराज भी जताया था। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने तो यहां तक कहा गया था कि वह पीएम मोदी की गुडबुक में आने के लिए ऐसा कर रही हैं। इसके बाद टीएमसी ने संसद में विपक्ष के विरोध से भी अपने को अलग कर लिया था। लेकिन अचानक से कहानी में ट्विस्ट आता नजर आ रहा है। राहुल की सांसदी जाने के विरोध में कांग्रेस ने काले कपड़ों में विरोध जताया तो टीएमसी भी साथ देने पहुंच गई। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी टीएमसी के इस कदम का स्वागत किया। वहीं, खड़गे के आवास पर मीटिंग में भी टीएमसी नेता पहुंचे थे।
आप से भी बढ़ी करीबी
दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच भी करीबी बढ़ती नजर आ रही है। यह इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी पर कांग्रेस की तरफ से कुछ नहीं बोला गया था। हालांकि राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने पुरजोर तरीके से विरोध किया था। सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की बैठक में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह भी शामिल हुए। इससे संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस और आम आदमी के बीच भी करीबी बढ़ रही है।
भाजपा की बढ़ेगी टेंशन?
अभी तक संयुक्त विपक्ष की बातें तो हो रही थीं, लेकिन अलग-अलग वजहों से खिंचाव भी हो रहा था। लेकिन राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद यह पहली बार हो रहा है जब सभी विपक्षी दल मजबूती के साथ एकजुट होते नजर आ रहे हैं। हालांकि इस बात से भाजपा पर कितना असर पड़ेगा इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि सोमवार को कांग्रेस की मीटिंग में शामिल होने वाले अहम विपक्षी नेताओं में द्रमुक नेता टी आर बालू, तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, जनता दल (यूनाइटेड) अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह, नेशनल कांफ्रेंस के हसनैन मसूदी, झारखंड मुक्ति मोर्चा की महुआ मांझी और कई अन्य विपक्षी नेता शामिल हुए।