सावन की पूर्णिमा पर क्यों बदला जाता है जनेऊ, जानें महत्व
हिंदू धर्म समाज में श्रावण मास की पूर्णिमा का बहुत महत्व है।
क्योंकि इस दिन ब्राह्मण समाज के लोगों को श्रावणी उपाकर्म का इंतजार रहता है। ब्राह्मणों के लिए यह पर्व बहुत मायने रखता है। इसी दिन ब्राह्मण समाज पूरे रीति रिवाज से जनेऊ धारण कर सकता है।जनेऊ बदलने के लिए श्रावण पूर्णिमा का दिन अत्यंत ही शुभ और पावन माना जाता है। श्रावणी उपाकर्म आत्मशुद्धि का पर्व है।
श्रावण मास की पूर्णिमा को सिर्फ रक्षाबंधन बल्कि श्रावणी पर्व भी मनाया जाता है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर व्यक्ति को पूरे साल इंतजार करेगा और सिर्फ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन ही मन,वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ धारण कर सकता है। इस साल श्रावणी पूर्णिमा 11 अगस्त को तो कुछ लोग 12 अगस्त को मना रहे है। श्रावण पूर्णिमा के दिन स्नान-दान और पूजा-व्रत का महत्व होता है। इसी दिन भाई बहनों का बहुत पवित्र त्योहार रक्षा बंधन भी है।आइए जानते है की श्रावण मास की पूर्णिमा पर पड़ने वाले इस पावन पर्व और पवित्र धागों से बने जनेऊ के धार्मिक महत्व के बारे में ;
श्रावणी उपाकर्म का धार्मिक महत्व
सावन महीने की पूर्णिमा के दिन जिन लोगों का यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका होता है, वे अपना पुराना जनेऊ उतारकर नया धारण करते है। ब्राह्मण समाज पुराने यज्ञोपवीत को बदलने की यह प्रक्रिया एक शुभ समय पर पूरे विधि विधान से संपन्न करते है। श्रावण पूर्णिमा पर स्नान, दान, पूजा-पाठ, पितृ तर्पण के अलावा श्रावणी उपकर्म का भी विशेष महत्व है। मान्यता है की सावन पूर्णिमा पर श्रावणी उपाकर्म की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इस साल श्रावण पूर्णिमा तिथि दो दिन पड़ रही है। जिसमें भद्रा लगने के कारण कुछ लोग श्रावणी उपाकर्म 11अगस्त 2022 को तो वहीं कुछ लोग 12 अगस्त 2022 की सुबह को मनाएंगे। उत्तर भारत में इसे श्रावणी उपाकर्म तो वहीं दक्षिण भारत में इसे अबित्तम कहा जाता है। इसी समय पर हाथ पर रक्षासूत्र बांधने की भी परम्परा है।
श्रावणी उपाकर्म की विधि
श्रावणी उपाकर्म में सबसे पहले किसी योग्य गुरु के सान्निध्य में मिट्टी, गाय का गोबर, गाय का दूध, गाय का घी, गाय का पंचगव्य, भस्म, अपामार्ग, कुशा,दूर्वा, शहद एवं गंगाजल, आदि पदार्थो के द्वारा स्नान किया जाता है। इसके बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं जनेऊ पूजन के बाद उसे मंत्रोच्चारण करते हुए धारण किया जाता है। इस क्रिया को वही लोग कर सकते हैं, जिनका पूर्व में यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका हुआ हो। इसके बाद तीसरे चरण में पूरे विधि-विधान से यज्ञ किया जाता है।
क्या होता है जनेऊ
यज्ञोपवीत’ या जनेऊ तीन धागों वाला सूत से बना पवित्र धागा होता है। जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात् इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।सनातन परंपरा में जनेऊ को एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। ये परम्परा प्राचीन काल से अब तक चली आ रही हैं। जनेऊ धारण करने के अपने भी कुछ नियम होते है। उसी नियम का पालन करते हुए जनेऊ धारण करना चाहिए।सूत से बने जनेऊ में पवित्र तीन धागे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। इसे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण या फिर सत्व, रज और तम के साथ तीन आश्रमों का भी प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में इसके बगैर विवाह का संस्कार नहीं होता है।
जनेऊ पहनने का मंत्र
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।
जनेऊ उतारने का मंत्र
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।