संजीव कुमार शुक्ला
लखनऊ :मायावती ने बुधवार को जब भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को अपनी पार्टी के समर्थन की घोषणा करके एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। एनडीए उम्मीदवार को दोनों बड़े चुनावों में समर्थन देने की वजह जातीय समीकरण से ही जोड़कर देखी जा रही है।सियासी रूप से समझें तो बीजेपी के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जनदीप धनखड़ का समर्थन करके मायावती ने लोकसभा चुनाव से पहले मुस्लिम दलित और जाट समीकरण को दोबारा मजबूत बनाने की कोशिश की है। साथ ही आगमी राजस्थान चुनाव में भी बीएसपी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी। मायावती इस कदम से एसपी और आरएलडी गठबंधन के गणित को बेअसर करना चाहती हैं। एनडीए उम्मीदवार को दोनों बड़े चुनावों में समर्थन देने की वजह जातीय समीकरण से ही जोड़कर देखी जा रही है। द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से हैं तो जगदीप धनखड़ जाट। मायावती हमेशा दलितों कमजोरों का खुद को नेता करार देती रही हैं। ऐसे में धनखड़ को समर्थन कर उन्होंने पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय को साधने का संदेश दिया है।सियासी रूप से समझें तो बीजेपी के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जनदीप धनखड़ का समर्थन करके मायावती ने लोकसभा चुनाव से पहले मुस्लिम दलित और जाट समीकरण को दोबारा मजबूत बनाने की कोशिश की है। साथ ही आगमी राजस्थान चुनाव में भी बीएसपी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी। मायावती इस कदम से सपा और रालोद गठबंधन के गणित को बेअसर करना चाहती हैं।मायावती ने इससे पहले एनडीए की राष्ट्रपति पद उम्मीदवार पहले द्रौपदी मुर्मू को भी अपना समर्थन देने का ऐलान किया था। द्रौपदी मुर्मू के समर्थन के बाद विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाए थे कि मायावती और बीजेपी हमेशा से साथ हैं। हालांकि मायावती ने कहा था कि वो आदिवासी समाज की उम्मीदवार का समर्थन इसलिए कर रही हैं, क्योंकि उनकी पार्टी भी हमेशा से दलितों और पिछड़ों के हित की बात करती है और द्रौपदी मुर्मू उसी समाज से आती हैं।मायावती यूपी में सपा का विरोध करती रही हैं। वह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन को अपनी भूल मानती हैं। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सत्ता में दुबारा वापस आने की वजह भी सपा को मानती हैं। कहती रही हैं कि मुस्लिम मतदाता अगर सपा के बहकावे में न आते तो शायद तस्वीर भी कुछ और होती है। सियासी जानकारों का मानना है कि इसके जरिये मायावती आगामी लोकसभा चुनाव में सपा-रालोद के पश्चिमी यूपी में गठबंधन को भी कसौटी पर ले लिया है। वही लोगो का यह भी कहना है की वहीं दूसरी ओर मायावती के इस फैसले से एक बार फिर दिल्ली के प्रति उनकी नरमी साफ नजर आई है। ताज कॉरिडोर से लेकर तमाम अन्य मामलों तक मायावती पर केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसने का खतरा बना हुआ है। ऐसे में मायावती ने इस बार फिर दिल्ली को खुश करने के लिए ये फैसला कर संदेश साफ करने की कोशिश की है।माना जा रहा था कि मार्गरेट अल्वा के महिला होने के नाते मायावती शायद उन्हें अपना समर्थन दें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, मायावती ने सोचसमझ कर अपना निर्णय लिया और जीतने वाले उम्मीदवार को अपना समर्थन दिया। मार्गरेट अल्वा की बात करें तो वह कांग्रेस पार्टी की महासचिव रहीं हैं। इसके आलावा 1974 से 2004 तक वह 5 बार सासंद भी रहीं। उन्होंने केन्द्र सरकार में महत्वपूर्ण महकमों की राज्यमंत्री के रूप में भी काम किया।