सुंदर लाल बहुगुणा का जाना हमारे दौर के सबसे बड़े सामाजिक कार्यकर्ता का जाना है. अगर कोरोना महामारी का प्रकोप नहीं होता तो वे कुछ और सालों तक हम लोगों के लिए प्रेरणा का काम करते.
हालांकि सुंदर लाल बहुगुणा अपने पीछे सामाजिक संघर्षों की विस्तृत सिलसिला छोड़कर गए हैं. दुनिया उन्हें और चंडी प्रसाद भट्ट को चिपको आंदोलन के लिए जानती है लेकिन यह आंदोलन उनके सामाजिक जीवन के कई आंदोलनों में एक था.
सुंदर लाल बहुगुणा का सामाजिक राजनीतिक जीवन 1942 के स्वतंत्रता संग्राम के वक़्त ही शुरू हो गया था. गांधी जी के प्रभाव में आकर वे कांग्रेस के आंदोलन में शामिल हो गए थे.
गांधीवादी विचारों में उनकी आस्था आख़िर तक बनी रही. उस वक़्त सुंदर लाल बहुगुणा टिहरी में श्रीदेव सुमन के साथ राजनीतिक रूप से सक्रिय थे.
सुमन की 84 दिनों की भूख हड़ताल के बाद 1944 में मौत हुई थी तब टिहरी कांग्रेस के ज़िला सचिव के तौर पर सुंदर लाल बहुगुणा चर्चा में आने लगे थे. तब उनकी 21-22 साल की उम्र रही होगी.सुंदर लाल बहुगुणा और उनकी पत्नी विमला
शादी और शादी की शर्त
वे जिस तरह की शख्सियत थे, उस दौर की राजनीति में भी वे तेज़ी से जगह बनाते. लेकिन 1956 में उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव तब आया जब सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवार से आने वाली विमला नौटियाल से उनकी शादी हुई.
विमला नौटियाल उस वक़्त गांधी जी की सहयोगी सरला बहन के साथ काम करती थीं, उन्होंने शादी से पहले ही शर्त रख दी थी कि, “मेरे साथी को राजनीतिक वर्कर के तौर पर काम छोड़कर ख़ुद को पूरी तरह से सामाजिक क्षेत्र के काम में जुटना होगा.”
सुंदर लाल बहुगुणा ने वही किया जो विमला चाहती थीं. दोनों ने मिलकर टिहरी के भिलंगना ब्लॉक में पर्वतीय नवजीवन मंडल से एक आश्रम की स्थापना की. इस बात की कल्पना करके देखिए इस तरह का फ़ैसला लेने के लिए किस तरह के आत्मबल की ज़रूरत होगी.
1956 में उन्होंने इस टिहरी शहर में ठक्कर बप्पा हॉस्टल भी बनाया जिसमें युवाओं के पढ़ने की सुविधाएं जुटाई गयीं. इस आश्रम से महिलाओं के उत्थान, शिक्षा, दलितों के अधिकार, शराबबंदी के अलावा कई तरह के सर्वोदयी आंदोलन सुंदर लाल बहुगुणा और विमला चलाते रहे.