इस टेस्ट में चूहे को गोल ट्रांसपेरेंट पानी भरी परख नली में डालकर टेस्ट किया जाता है कि चूहा कितनी देर तक तैर सकता है. ऐसा ही एक एक्सपेरिमेंट सन 50 में हॉवर्ड में हुआ था. वो चूहा पंद्रह मिनट तक स्ट्रगल कर सका और उसके बाद डूब गया. डॉक्टर कर्ट रिचर यह स्टडी कर रहे थे. उन्होंने तुरंत चूहे जो निकाला. चूहा ज़िंदा था. बच गया. उसकी जान में जान आई. पर यह क्या! डॉक्टर ने फिर उसे पानी में डाल दिया. अबकी वो चूहा 15 मिनट में नहीं डूबा. 20 में भी नहीं डूबा. यहां तक की 1 घण्टे में भी नहीं डूबा. फिर कब डूबा?
बहुत पहले चूहों के जरिये पता चल गया है सकारात्मक होकर बचाई जा सकती है जान
क्या 15 घण्टे बाद? न! वो डूबा पूरे साठ यानी 60 घण्टे बाद!
क्यों?
क्योंकि उस नन्हीं सी जान को उम्मीद थी कि डॉक्टर उठाए फिर बचा लेंगे.
उम्मीद पे दुनिया कायम है, यही कहते हैं न हम?
मेरा एक दोस्त है. उसे ये पॉजिटिविटी बहुत बेतुकी चीज़ लगती है. उसे लगता है कि ये उम्मीदें पालना, दिलासे देना काम चोरी पर पर्दा डालने का तरीका भर है. वो पूरी तरह ग़लत भी नहीं है. सब ठीक हो जायेगा ये कहते रहने से तो कुछ नहीं होगा. काम तो करना पड़ेगा. भाग दौड़ तो करनी पड़ेगी. दिमाग तो चलाना पड़ेगा. उस चूहे ने 60 घण्टे तक अपने पैर चप्पू की तरह चलाए, अपना मुंह पानी के ऊपर रखा. अपने शरीर की पूरी ताकत लगा दी कि कुछ भी हो जाए, डूबना नहीं है.
ये ताकत उसे कहां से मिली? कहीं बाहर से आई?
न! ये ताकत उसके अंदर ही थी. हमेशा से. बच जाऊंगा इस ‘उम्मीद’ ने उस ताकत को बाहर निकालने का काम किया. वर्ना उसे जब पहली बार नली में डाला गया था, वो तब भी तो 60 घण्टे तैरने का माद्दा रखता था. इसका मतलब है कि वो थकने की वजह से नहीं डूबा, वो इसलिए डूबा क्योंकि उसका मन हार चुका था. एक कोरोना पेशेंट को ये मत बताइए कि आज 3400 लोग मर गए. बल्कि उसे बताइए कि आज फिर 3 लाख लोगों ने कोरोना को हरा दिया.
मत कहिए कि ऑक्सीजन नहीं मिली तो वो मर जायेगा. उसको बताइए कि ऑक्सीजन मंगवाने की हर संभव कोशिश जारी है पर वो भी ज़रा से एफर्ट से अपनी सांसें ज़रा बढ़ा सकता है. उम्मीद यूं तो खोखली चीज़ है पर इसमें थोड़ी सी ज़ुर्रत, ज़्यादा सी कोशिश और ढेर सारा आत्मविश्वास भर दो, तो यकीन मानों मेरे दोस्त मौत को हराकर आ सकते हो तुम.
इसलिए जब तक ज़िंदा हो, न ख़ुद मरो न किसी को मरने दो. सांस चलती रहनी चाहिए, कदम रुकने नहीं चाहिए, हौसला डिगना नहीं चाहिए.