धर्म ग्रंथों के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी कहते हैं। इस बार ये तिथि 1 मई, सोमवार को है। ये व्रत भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार से संबंधित है।
(Mohini Ekadashi 2023) मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवा विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था। इस बार मोहिनी एकादशी पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। आगे जानिए मोहिनी एकादशी से जुड़ी खास बातें.
मोहिनी एकादशी शुभ योग व पारणा समय (Mohini Ekadashi 2023 Parna Muhurat)
पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 30 अप्रैल, रविवार की रात 08:29 से शुरू होकर 01 मई, सोमवार की रात 10:10 तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 1 मई को होगा, इसलिए ये व्रत इसी दिन किया जाएगा। इस दिन पहले पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र होने से ध्वजा और इसके बाद उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होने से श्रीवत्स नाम के 2 शुभ योग इस दिन रहेंगे। इसके अलावा ध्रुव नाम का एक अन्य शुभ योग भी इस दिन रहेगा। व्रत का पारणा अगले दिन यानी 2 मई, मंगलवार को सुबह 05:40 से 08:19 के बीच करें।
मोहिनी एकादशी व्रत-पूजा विधि (Mohini Ekadashi Vrat-Puja Vidhi)
– मोहिनी एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में पानी और चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। संभव हो तो पीले कपड़े (धोती-कुरता) पहनें।
– घर में किसी साफ स्थान पर बाजोट (पटिया) स्थापित करें। इसके ऊपर लाल या सफेद कपड़ा बिछाएं। इस पर भगवान विष्णु की प्रतिम या चित्र स्थापित करें।
– प्रतिमा के सीधे हाथ की ओर पानी से भरा एक कलश भी रखें। सबसे पहले भगवान विष्णु के चित्र पर तिलक लगाएं, इसके बाद कलश पर।
– कलश के ऊपर नारियल रखें और उस पर पूजा का धागा यानी मौली बांधे। भगवान की प्रतिमा पर हार-फूल चढ़ाएं। शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
– इसके बाद एक-एक करके अबीर, गुलाल, रोली, कुंकुम और चावल आदि चीजें चढ़ाएं। खीर का भोग लगाएं। अंत में आरती करें। प्रसाद बांट दें।
– पूरा दिन नियम पूर्वक सात्विक रूप से रहें। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान-दक्षिणा से संतुष्ट कर विदा करें।
– इस तरह मोहिनी एकादशी का व्रत करने के बाद स्वयं भोजन कर पारणा करें। ऐसा करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
भगवान विष्णु की आरती (Lord Vishnu Aarti)
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥
ओम जय जगदीश हरे…॥
ये है मोहिनी एकादशी व्रत की कथा (Mohini Ekadashi Katha)
– पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक नगर में धनपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। वह भगवान विष्णु का भक्त था। उसके पाँच पुत्र थे- सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्टबुद्धि।
– धनपाल का सबसे छोटा पुत्र धृष्टबुद्धि बहुत दुष्ट था और पाप कर्म करता था। दुखी होकर व्यापारी ने उसे घर से निकाल दिया। धृष्टबुद्धि भटकता हुआ एक दिन व्याकुल महर्षि कौंडिन्य के आश्रम पहुंचा।
– उसे देखकर महर्षि कौंडिन्य ने उसे मोहिनी एकादशी व्रत करने को कहा। ये व्रत करने से धृष्टबुद्धि निष्पाप हो गया। मोहिनी एकादशी का व्रत करने से इसकी कथा सुनने से एक हजार गाय दान करने का फल मिलता है।