वैदिक काल से ही हमारे देश में हवन करने की परंपरा रही है। सनातन धर्म में हर शुभ अवसरों पर हवन-अनुष्ठान करने का विधान है। मत्स्य पुराण में यज्ञ के संबंध में कहा गया है कि जिस कर्म विशेष में देवता, हवनीय द्रव्य, वेदमंत्र, ऋत्विक एवं दक्षिणा इन पांच उपादानों का संयोग हो,उसे यज्ञ कहा जाता है।
परमार्थ प्रयोजनों के लिए किया गया सत्कर्म ही यज्ञ है। हवन के माध्यम से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शांति,आत्मशुद्धि,आत्मबल वृद्धि,आध्यात्मिक उन्नति और आरोग्य की रक्षा होती है। हवन करने के दौरान मंत्र के बाद स्वाहा शब्द जरूर बोला जाता है इसके बिना हवन अपूर्ण माना जाता है। स्वाहा का अर्थ सु-आह ‘अच्छा बोलना’ भी है। हवन में स्वाहा बोलने के संबंध में एक आख्यान प्रसिद्ध है।
ये है कथा
सृष्टि के आरंभकाल में ब्रह्माजी ने यज्ञ करके उन आहुतियों को देवताओं को प्रदान कर दिया इससे देवता तृप्त हो गए, किन्तु मनुष्यों ने जो आहुतियां डाली वे देवताओं तक नहीं पहुंची। तब देवताओं ने ब्रह्मा को अपना कष्ट सुनाया । ब्रह्माजी ने श्री हरि के निर्देश पर भगवती स्वाहा का स्मरण किया। तब शक्ति निरूपणी भगवती अपनी कला (अंश) से ‘स्वाहा देवी’ के रूप में प्रकट हुई।
अनुकूल अवसर देखकर ब्रह्माजी ने स्वाहा देवी के पास अग्निदेवता को भेजा। अग्निदेवता ने वहां जाकर सामवेद में कही विधि के अनुसार ‘स्वाहा’ की पूजा और स्तुति की। स्वाहादेवी उनके अनुकूल हो गईं। तत्पश्चात मंत्रोच्चारणपूर्वक दोनों का विवाह हुआ। तभी से ऋषि,मुनि और द्विज स्वाहांत मंत्र के अंत में ‘स्वाहा’ उच्चारण करके अग्नि में आहुति देने लगे और वह देवताओं को आहार रूप में मिलने लगा। अग्नि द्वारा जलाए गए हविष्यान्न के सूक्ष्मांश गंध को भगवती स्वाहा ही देवताओं तक पहुंचाती है। इसलिए आहुति देते समय मंत्र के अंत में स्वाहा बोलना आवश्यक है अन्यथा वह हविष्यान्न देवताओं तक नहीं पहुंचेगा और हवन निरर्थक हो जाएगा।
हवन करने के लाभ
ग्रंथों में अनेक तरह के यज्ञ और हवन बताए गए हैं,जिनका शुभ प्रभाव न केवल व्यक्ति बल्कि वायुमंडल को भी लाभ पहुंचाता है। अनेक वैज्ञानिक शोधों से स्पष्ट हुआ है कि हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र, प्रज्जवलित होने वाली अग्रि और धुंए से होने वाले अनेकों प्राकृतिक लाभ मिलते है,जो हमें एवं हमारी प्रकृति को लाभ पहुंचाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से हवन से निकलने वाले अग्रि के ताप और उसमें आहुति के लिए उपयोग की जाने वाली हवन की प्राकृतिक सामग्री यानी समिधा वातावरण में फैले रोगाणु और विषाणुओं को नष्ट करती है, बल्कि प्रदूषण को भी मिटाने में सहायक होती है। साथ ही उनकी सुगंध व ऊष्मा मन व तन की अशांति व थकान को भी दूर करने वाली होती है। इस तरह हवन स्वस्थ और निरोगी जीवन का श्रेष्ठ धार्मिक और वैज्ञानिक उपाय है। हवन द्वारा देवताओं को आहुतियां प्रदान करने से देवता संतुष्ट होते हैं और प्रसन्न होकर धन, सम्पत्ति, बल और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।