सुखों के प्रदाता शुक्र 7 अगस्त को वक्री हो चुके हैं. अब आने वाली 24 तारीख को ग्रहों के राजकुमार बुध भी सिंह राशि में वक्री हो जाएंगे. इसके बाद 4 सितंबर को देवगुरु बृहस्पति मेष राशि में वक्री होंगे.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब कोई ग्रह उल्टी चाल चलता है तो उसे वक्री कहा जाता है. आइए जानते हैं कि अलग-अलग ग्रह वक्री होकर कैसे परिणाम देते हैं. आइए आज आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं.
क्या होते हैं वक्री ग्रह?
ग्रहों की तमाम तरह की स्थितियां होती हैं. इसमें भी ग्रहों की गति के आधार पर मुख्य रूप से तीन तरह की स्थितियां पाई जाती हैं- मार्गी, वक्री और अतिचारी. ग्रह जब सामान्य गति से भ्रमण करता है तो उसको मार्गी कहते हैं. जब तीव्र गति से चलता है तो उसको अतिचारी कहते हैं और जब इसी तीव्रता में वह पीछे की ओर चलने लगता है तो उसको वक्री कहते हैं. वास्तव में ग्रह कभी पीछे या उल्टे नहीं चलते, बल्कि उनकी गति के कारण ऐसा केवल आभास होता है. इसी आभास को ग्रहों का वक्री होना कहते हैं.
ग्रहों वक्री होने का परिणाम क्या होता है?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहों के वक्री होने से उनके परिणाम बदल जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इससे उसके परिणाम उल्टे हो जाते हैं. जबकि ऐसा होने पर ग्रह एकसाथ दो भावों को प्रभावित करते हैं और उनकी दृष्टि काफी सारे भावों पर पड़ने लगती है. इसलिए ग्रह वक्री होकर अत्यधिक शक्तिशाली हो जाते हैं. सूर्य और चंद्रमा कभी वक्री नहीं होते हैं. जबकि राहु और केतु सदैव वक्री रहते हैं.
अलग अलग ग्रहों के वक्री होने का प्रभाव
1. मंगल– वक्री मंगल दुर्घटनाओं की स्थिति बना देता है. अक्सर यह अपराध की तरफ भी प्रेरित करता है.
2. बुध- वक्री बुध धन से जुड़ी समस्याएं दे सकता है. यह वाणी, मन या शारीरिक समस्याओं का कारण भी बन सकता है.
3. बृहस्पति- वक्री बृहस्पति महिलाओं के वैवाहिक जीवन को ख़राब करता है. यह पेट की और गंभीर समस्या दे सकता है.
4. शुक्र- वक्री शुक्र जीवन के सुखों में कमी करता है. साथ ही, खराब वैवाहिक जीवन और अपयश भी देता है
5. शनि- वक्री शनि रोजगार में उतार-चढ़ाव का कारण बन जाता है. साथ ही, यह स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है.