प्रधानमंत्री ने कोरोना संक्रमण को लेकर नौंवी बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए देश में बनी ‘ब्रांड मोदी’ की छवि को बचाने और इसे मजबूत बनाने की भरसक की कोशिश की। प्रधानमंत्री की छवि देश और दुनिया में एक ब्रांड बन चुकी है। लेकिन माना जा रहा है कि कोरोना काल की दूसरी लहर में इस ‘ब्रांड’ को काफी नुकसान पहुंचा है। राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री के चेहरे पर भी इसके भाव को साफ पढ़ा जा सकता था। छवि और ब्रांड बचाने की कोशिश के तहत प्रधानमंत्री ने जहां दो बड़े जन कल्याणकारी फैसलों की घोषणा की तो वहीं कई बड़े सवाल भी छोड़ गए।
बड़ा सवाल: राज्यों का 25 फीसदी टीका खरीदने का अधिकार और इसे वापस लेना
प्रधानमंत्री ने केंद्र सरकार के एक मई को लिए गए फैसले को वापस लेने की घोषणा की। इसके तहत अब केंद्र सरकार ही 75 फीसदी कोरोना का टीका खरीदकर अपनी निगरानी में राज्यों को देगी और राज्य इसे देश के नागरिकों को टीकाकरण केन्द्रों के माध्यम से 18 साल से अधिक उम्र के सभी नागरिकों को मुफ्त में लगवाएंगे। 30 अप्रैल तक देश में यही व्यवस्था थी। जब केन्द्र सरकार ने यह निर्णय लिया था, तब भी इस पर सवाल उठे थे। कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी इस पर सवाल उठाया था। देश के संघीय ढांचे के इतिहास में शायद ही ऐसा कभी हुआ हो।
क्या है राज्यों को टीका खरीदने का अधिकार देने, लेने और सबको मुफ्त टीका की वजह? प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में दलील दी कि केन्द्र सरकार ने ऐसा राज्यों की मांग पर किया था। सवाल यह है कि टीका, टीका की राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय उपलब्धता के बारे में केन्द्र सरकार और उसकी एजेंसियों से बेहतर राज्य कैसे जान सकते हैं? ऐसे में प्रधानमंत्री के स्तर पर यह निर्णय क्यों लिया गया? जब प्रधानमंत्री ने 18 से 44 साल आयुवर्ग को टीका लगाने की घोषणा की थी, तब इसकी आलोचना राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान से जुड़े केन्द्रीय अधिकारियों ने भी की थी।
नेशनल कोविड टास्क फोर्स से जुड़े डा. एनके अरोड़ा ने खुद 18 से 44 साल के लोगों को मई महीने में टीका लगाने की घोषणा पर सवाल उठाया था। डा. अरोड़ा ने अमर उजाला से कहा था कि जून महीने के बाद ही देश में टीका की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध हो पाएगी। अभी दो महीने भारी टोटा रहने वाला है। सूत्र बताते हैं कि देश में टीके की कमी की स्थिति देखकर ही केन्द्र ने राज्यों पर जिम्मेदारी डाली थी। ताकि केन्द्र सरकार पर टीका की अनुपलब्धता का ठीकरा न फूटने पाए। अब जब जून का पहला सप्ताह बीत चुका है तो प्रधानमंत्री ने 21 जून से इस निर्णय को वापस लेने की घोषणा की है। इसके साथ-साथ सरकारी संस्थान में लगने वाले सभी टीकों के मुफ्त में लगने की घोषणा भी की है, ताकि केन्द्र की छवि में सुधार लाया जा सके। नवंबर 21 तक 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत देश के 80 करोड़ गरीबों को नवंबर 2021 तक निर्धारित मात्रा में मुफ्त राशन दिए जाने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री के इस निर्णय को कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों में सरकार के प्रति बढ़ी नाराजगी को कम करने के प्रयास से जोड़कर देखा जा रहा है। समझा जा रहा है कि बंगाल विधानसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम न आने, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत तमाम राज्यों में जनता के बीच से आ रही नकारात्मक खबरों को ध्यान में रखकर सरकार ने यह कदम उठाया है।
टीकाकरण और कोरोना से निपटने में कहां चूकी सरकार? नेशनल कोविड टास्क फोर्स से जुड़े डा. वीके पॉल, डा. एन के अरोड़ा जैसे तमाम दिग्गज कई सवालों का जवाब अभी भी खुलकर नहीं दे पाते। उदाहरण के तौर पर-
- जब देश में मई महीने में टीके की किल्लत थी तो 18 से 44 साल तक के लोगों को टीका लगवाने की घोषणा किसकी सलाह पर हुई और क्यों?
- 16 जनवरी को देश में टीकाकरण का अभियान शुरू करने का निर्णय इतना देर से क्यों लिया गया? टीकाकरण की शुरुआत को मजबूत आधार और विश्वास देने के लिए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री, एम्स के निदेशक समेत अन्य ने पहले टीका क्यों नहीं लगवाया? जबकि दुनिया के देशों में राष्ट्राध्यक्षों ने ही इसकी शुरुआत की।
- प्रधानमंत्री ने लगातार लोगों से दवाई भी, कड़ाई भी और कोविड व्यवहार का पालन करने की अपील की, लेकिन इसके बाद भी देश में चुनाव अभियान, चुनाव प्रचार आदि में इसकी धज्जियां उड़ती रहीं। इसके सामानांतर टीकाकरण अभियान बेहद सुस्त चाल से चल रहा था और इसमें तेजी लाने के कोई प्रयास नहीं हो रहे थे।
- जनवरी में भारत ने कोरोना वायरस के संक्रमण को हरा देने की घोषणा क्यों की? जबकि दुनिया भर के वैज्ञानिक, विशेषज्ञ इसके खतरनाक होने की भविष्यवाणी कर रहे थे।
- केन्द्र सरकार ने मार्च महीने में 10 लाख से अधिक कोरोना संक्रमितों की संख्या आने के बाद इसे क्यों गंभीरता से नहीं लिया और अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हालात गंभीर होने से पहले क्यों नहीं जागी?