2024 में ही दुनिया का पहला साइबर क्राइम इंडेक्स जारी हुआ था. ‘मैपिंग ग्लोबल जियोग्राफी ऑफ साइबर क्राइम विद द वर्ल्ड साइबर क्राइम इंडेक्स’ के नाम से. इसमें बताया गया कि दुनियाभर में कहां कहां साइबर अपराध सबसे ज्यादा हो रहे हैं.
लिस्ट में 15 देशों के नाम हैं. पहले नंबर पर रूस, यूक्रेन दूसरे तो तीसरे नंबर पर चीन को साइबर क्राइम का सबसे बड़ा गढ़ बताया गया. इसमें भारत दसवें नंबर पर हैं. भारत मे साइबर क्राइम और ठगी कोई नई बात नहीं है. इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के साथ ही डिजिटल और ऑनलाइन धोखाधड़ी के आंकड़े भी आसमान छू रहे हैं.
ठग नायाब तरीके ढूंढ लोगों को चूना लगा रहे हैं. क्या आम और क्या खास. कोई भी इससे अछूता नहीं रहा. पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का नाटक कर किसी को ठगने का जो मामला सामना आया है वो बहुत ही सनसनीखेज है. दरअसल वर्धमान समूह के चेयरमैन और पंजाब के प्रसिद्ध उद्योगपति ओसवाल से करीब 7 करोड़ रुपये की ठगी की गई. ठगों ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट की एक नकली ऑनलाइन सुनवाई में बुलाया और जेल भेजने की धमकी देकर उनसे यह रकम ट्रांसफर करवा ली. इस तरह की ठगी को ‘डिजिटल अरेस्ट’ कहा जाता है.
डिजिटल अरेस्ट जैसे साइबर क्राइम का शिकार हुए ओसवाल इकलौते नहीं है. भारत सरकार ने मई में चेतावनी जारी की थी कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामलों की संख्या बढ़ रही है. पिछले कुछ महीनों में आम लोगों से लेकर अधिकारी और बिजनैसमैन तक इस तरह की ठगी का शिकार हुए हैं. आइए जानते हैं डिजिटल अरेस्ट क्या है, ये कैसे अंजाम दिया जाता है, जिसमें बड़े लोग भी फंसते जा रहे हैं.
डिजिटल अरेस्ट क्या है?
साइबर ठगों ने फ्रॉड का ये नया तरीका खोजा है. डिजिटल अरेस्ट में पार्सल या कोरियर में ड्रग्स, बैंक खाते में गलत ट्रांजेक्शन, मनी लॉण्ड्रिंग के आरोप जैसे ठगी के तरीके बहुत अपनाए जाते हैं. ऐसे मामलों में ठग लोग पुलिस, CBI, ED, कस्टम, इनकम टैक्स या नारकॉटिक्स अधिकारी की यूनिफार्म पहनकर लोगों को वीडियो कॉल करते हैं. झूठा आरोप लगाकर डिजिटल अरेस्ट की बात कहते हैं. मानसिक तौर पर पीड़ित को तोड़ने और डराने का हर हथखंडा अपनाते हैं.
ठीक ऐसा ही ओसवाल के साथ हुआ. ठगों ने खुद को केंद्रीय जांचकर्ता बताकर उनसे संपर्क किया और उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में संदिग्ध बताया. उन्होंने एक ऑनलाइन कोर्ट सुनवाई का भी आयोजन किया जिसमें एक व्यक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ का रूप धारण कर पेश हुआ. इसके बाद उनसे कहा गया कि वे जांट के हिस्से के रुप में अपनी सारी रकम एक खाते में जमा कर दें. पुलिस ने बताया है कि आरोपियों से लगभग 5.25 करोड़ रुपए की जब्ती की जा चुकी है. भारत में इस तरह के मामलों में अब तक की सबसे बड़ी बरामदगी माना जा रहा है.
बुजुर्ग, डॉक्टर, बड़े अधिकारी निशाने पर
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता जो कि साइबर, संविधान और गवर्नेंस जैसे अहम विषयों पर नियमित कॉलम लिखते रहते हैं, उनका कहना है कि साइबर क्राइम का शिकार कोई भी हो सकता है क्योंकि सुरक्षा के कमजोर उपायों के चलते मोबाइल के एक क्लिक से साझा हो रही आपकी निजी जानकारी जैसे नाम, नंबर, पैन, और बैंक अकाउंट की डिटेल्स आसानी से कोई भी देख सकता है. डिजिटल अरेस्ट के अधिकांश केसेस में पीड़ित लोगों की प्रोफाइलिंग करने पर यह पता चला है कि अधिकांश बुजुर्ग, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और रिटायर सरकारी अधिकारी जैसे लोग डिजिटल अरेस्ट से साइबर ठगी का शिकार हो रहे है.
डिजिटल अरेस्ट के चर्चित केस
2024 के जुलाई महीने में ही लखनऊ में रहने वाले कवि नरेश सक्सेना को CBI अफसर बन जालसाजों ने 6 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रखा. जानकारी के मुताबिक, नरेश सक्सेना 7 जुलाई को दोपहर करीब 3 बजे उनके व्हाट्सएप पर वीडियों कॉल आई. फोन करने वाले ने खुद को सीबाई इंस्पेक्टर बताया. ठगों ने झांसा देकर कहा कि किसी और व्यक्ति ने आपके आधार कार्ड से मुंबई में बैंक अकाउंट खोला है. इससे करोड़ों की मनी लॉंड्रिंग हो रही है. उनके अरेस्ट वारेंट जारी हो चुका है. फिर केस से बचाने के लिए पैसे मांगे लेकिन कवि नरेश सक्सेना ने नहीं दिया.
फिर इसके अगले महीने अगस्त में ही एक और ऐसा मामला सामने आया. इस बार इन ठगों के निशाने पर पीजीआई लखनऊ की डॉक्टर रूचिका टंडन थी. फोन करने वाले ने कहा कि वो टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) से बोल रहा है. डॉक्टर को 1 से 8 अगस्त तक डिजिटल अरेस्ट करके रखा गया. इस दौरान उनसे पांच अलग-अलग बैंक खातों में 2 करोड़ 81 लाख रुपए ट्रांसफर कराए गए. जब तक उन्हें ठगी का एहसास हुआ तब तक काफी देर हो चुकी थी.
फ्रॉड से बचने के लिए सावधानियां
वकील विराग गुप्ता कहते हैं कि भारत में कोई भी सरकारी विभाग वीडियो कॉल कर गिरफ्तारी की धमकी या जुर्माने की मांग नहीं करता.अगर कोई मामला दर्ज भी हुआ है तो फोन पर पूछताछ नहीं होती. वीडियो कॉल कर गिरफ्तारी का वॉरेंट देने के लिए भारत में कोई नियम नहीं है. कोर्ट से गिरफ्तारी का वॉरंट अगर जारी भी हो जाए तो उसके लिए फोन नहीं आता. अगर मामला सच भी है तो केस निपटाने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी वीडियो कॉल से रिश्वत की मांग नहीं करेगा. ऐसा कोई भी कॉल आने पर ठगों के साथ लम्बी बातचीत से बचना चाहिए. जल्द डिसकनेक्ट कर ट्रू-कॉलर या अन्य किसी ऐप से मोबाइल नम्बर और कॉलर की पहचान कर उस नम्बर को ब्लॉक कर देना चाहिए.
बचाव के दूसरे भी कई तरीके हैं जिसका आपको ध्यान रखान चाहिए. जैसे-
-फोन, लैपटॉप या किसी अन्य डिवाइस के सॉफ्टवेयर को अप-टू-डेट रखें
-किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक ना करें
-साइबर ठगी का शिकार होने पर स्थानीय पुलिस को 112 पर सूचित करना चाहिए.
-हेल्पलाइन नंबर 1930 पर शिकायत दर्ज करवा सके हैं