प्रकृति, माया अथवा शक्ति ही संसार का आधार है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा, काली, सरस्वती आदि विभिन्न देवी-देवता अलग-अलग होने के बावजूद तत्व रूप में एक ही है।
भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को चलाने वाली शक्ति को माया से युक्त बताया। भगवान विष्णु के साथ यह शक्ति योगमाया, शंकर के साथ रुद्राणी और ब्रह्मा के साथ प्रकृति कहलाती हैं।
भगवान शिव दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहते हैं- ‘हे शक्ति! तुम्हारे कारण ही मैं कल्याणकारी शिव हूं।’ शक्ति ही सर्वोपरि है, शक्ति के बिना भगवान शिव भी शव के समान हैं यानी प्रत्येक जीव में जो ऊर्जा विद्यमान है, वह शक्ति है और शक्ति के बिना सब निर्जीव है। सबमें निहित शक्ति ही कार्य करने का सामर्थ्य और प्रेरणा प्रदान करती है। संपूर्ण संसार का संचालन यही दिव्य शक्ति कर रही है। देवी भागवत पुराण में देवी दुर्गा को ब्रह्मांड की सर्वोच्च एवं परमशक्ति कहा गया है। दुर्गा की उपासना में उनके समग्र रूप की आराधना हो सके, इस उद्देश्य से नवरात्रि के नौ दिन निश्चित किए गए हैं। नौ दिन तक निरंतर उपासना से भक्त इस शक्ति को सिद्धियों के रूप में प्राप्त करते हैं।
भक्तों की पुकार: ऐसा कहा जाता है कि विवाह के बाद देवी पार्वती को अपने घर बुलाने के लिए उनके माता-पिता ने भगवान शिव से प्रार्थना की, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने वर्ष में जब-जब नवरात्रि आती है, उस समय में केवल नौ दिनों के लिए ही अपनी अर्धांगिनी शक्ति को पृथ्वी लोक पर जाने की आज्ञा दी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के नौ दिनों में भगवती विश्व में विचरण करती हैं और इस उपलक्ष्य में घर आई पुत्री की पूजा संपूर्ण जगत में शक्ति महोत्सव के रूप में संपन्न की जाती है। नवरात्रि में शुद्ध मन और पवित्र आचरण से पूजा-आराधना ईश्वरीय शक्ति के साथ सीधा संवाद करने का सशक्त माध्यम है।
कलश स्थापना : जहां आश्विन मास कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित है, वहीं आश्विन मास शुक्ल पक्ष मूल रूप से प्रकृति और पुरुष के प्रतीक आदिशक्ति स्वरूपा भगवती की आराधना एवं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के चरित्र गान के लिए आरक्षित है। यूं तो भगवती सिंह पर सवार रहती हैं, मगर प्रत्येक नवरात्रि में पृथ्वी लोक पर उनका आगमन अलग-अलग सवारी पर होता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि पर मां की सवारी घोड़ा है।
मां दुर्गा की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
जय अम्बे गौरी
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
जय अम्बे गौरी