विवाह एक ऐसा बंधन है जो दो लोगों को जीवनभर के लिए प्यार के रिश्ते में बांध देता है. दुनिया में विवाह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रथा है.
ऐसी मान्यता है कि ये रिश्ते स्वर्ग से बनकर आते हैं. लेकिन कुछ लोगों के लिए यह रास्ता बेहद कठिन हो जाता है. ऐसे में लोग मंदिरों का सहारा लेते हैं, क्योंकि लोग अक्सर जिससे प्यार करते हैं, शादी उसी से रचाने की चाह रखते हैं. आज आपके लिए हमने चार मंदिरों की एक लिस्ट तैयार की है, जो भारत में प्रेम विवाह करने वाले लोगों के लिए लोकप्रिय हैं. आइए इन मंदिरों के बारे में जानें…
श्री मंगलेश्वर मंदिर
यह मंदिर तिरुचिरापल्ली जिले के त्रिची बस स्टैंड से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लालगुडी गांव के आसपास के क्षेत्र में स्थित है. कहा जाता है कि यह मंदिर खास कर लव मैरिज की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर उत्तरा नक्षत्र के तहत पैदा होने वाली अविवाहित महिलाओं पर अपनी कृपा बरसाती है. इस मंदिर में दर्शन मात्र से विवाह में हो रही अनुचित देरी जैसे मामले सुलझाए जाते हैं. खास तौर पर आप यहां ‘मंगल्या महर्षि’ नाम के एक ऋषि का दर्शन पा सकते हैं, जो उत्तरा नक्षत्र में ही पैदा हुए थे. वे सभी देवताओं के गुरु हैं, जो विवाह के समय का निर्णय करते हैं. वह जोड़े को अक्षत के साथ आशीर्वाद देते हैं.
श्री कल्याणसुंदरेश्वर मंदिर
श्री कल्याणसुंदरेश्वर मंदिर, नागपट्टिनम जिले में थिरुमानंचेरी नामक स्थान पर कोकिलाम्बिका समीथा में स्थित है. यह मंदिर विवाह संबंधी दोषों को प्रभावी ढंग से दूर करने के लिए प्रसिद्ध है. थिरुमानम और चेरी तमिल शब्द है. जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘विवाह’ और ‘गांव’. स्थानीय लोगों के अनुसार, यह वही स्थान है, जहां भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह रचाया था. ऐसा कहा जाता है कि देवी पार्वती को श्राप मिला था. फिर पार्वती का ऋषि भरत मुनि के आश्रम में एक इंसान के रूप में पृथ्वी पर जन्म हुआ. बाद में भरत मुनि ने भगवान शिव से अपनी बेटी की शादी करने का अनुरोध किया. भगवान शिव ने इसे स्वीकार कर लिया. बाद में इसी मंदिर में इनकी शादी संपन्न हुई. इस मंदिर में भगवान शिव और पार्वती एक दूसरे के हाथ थामे मुद्रा में खड़े हैं. यहां पार्वती के झुके सिर उनके शर्मीलेपन का संकेत देती है.
श्री सिष्ट गुरु नाथेश्वर मंदिर
यह मंदिर भी जोड़ों को विवाह का वरदान देने के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर कुड्डालोर जिले के तिरुथलूर में स्थित है. बता दें कि भगवान के शिवलिंग को यहां कई नामों से पुकारा जाता है. जैसे- सिष्ट गुरु नाथेश्वरर या थावा नेरी आलुदयार आदि, तो वहीं देवी को पूंगकोढाई या शिवलोक नायकी नाम से जाना जाता है. इस मंदिर में गुरु दक्षिणामूर्ति के लिए एक गर्भगृह है। यहां विवाह संबंधी दोषों को दूर करने के लिए दैनिक आधार पर उनकी और भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। यहां सात सप्ताह तक भक्तों को घी के दीप जलाकर बिल्वपत्र और फूलों से अर्चना करनी होती है.
श्री वेदपुरेश्वर मंदिर
श्री वेदपुरेश्वर मंदिर, तिरुवेधिकुडी में तिरुवयारु के पास मंगैयारकरसी समथा में स्थित है. यहां भगवान शिव विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां लिंग स्वयं प्रकट हुए थे. खास बात यह है कि इस पर कुछ ही दिन सूर्य की किरणें पड़ती हैं यानी कि हर साल केवल मार्च और अप्रैल के महीने में. इस मंदिर की शासक देवी मंगैयारकारसी हैं. जिसका शाब्दिक अर्थ है- महिलाओं के बीच राजकुमारी, जहां मंगयार- महिला और अरसी- रानी). ऐसी मान्यता है कि यहां मनचाहे वर से विवाह रचाने के लिए महिलाओं को देवी पर चंदन का लेप के साथ साड़ी और थाली अर्पित करना जरूरी होता है.