देवेंद्र फडणवीस ने यहां तक कह दिया था कि वह सरकार में नहीं रहेंगे। हालांकि थोड़ी ही देर में भाजपा नेतृत्व ने उनसे उपमुख्यमंत्री बनने की बात कही और उन्होंने इस निर्णय को स्वीकार कर लिया। महाराष्ट्र में जो भी हुआ, इसके बाद यहां कि सियासत पूरी तरह बदलती नजर आ रही है। पहले तो जब एकनाथ शिंदे बागी विधायकों के साथ गुवाहाटी चले गए तो भाजपा ने कोई बयान देने की जगह केवल वेट ऐंड वॉच की नीति अपनाई। इसके बाद जब सरकार बनाने की पहल की तो भी मुख्यमंत्री का पद एकनाथ को ऑफर कर दिया। इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई कि भाजपा सत्ता की लालची नहीं है।
शिवसेना और ठाकरे को अलग करने का प्लान
शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने यह दिखाने की कोशिश की कि उसने हिंदुत्व के लिए यह बलिदान दिया है। वहीं इस कदम से भाजपा ने बड़ा दांव खेल दिया है। वह है उद्धव ठाकरे और शिवसेना को अलग करने का प्लान। एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनका गुट ही असली शिवसेना है। वहीं अपने विश्वास पात्रों की बगावत के बाद गिने-चुने नेताओं के साथ उद्धव ठाकरे फिलहाल कमजोर पड़ते दिखायी दे रहे हैं।
हिंदुत्व की राजनीति
उद्धव ठाकरे ने जब एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तब सेक्युलर राजनीति कि बात की थी। हालांकि ढाई साल बाद ही पूरा नैरेटिव बदल गया। हिंदुत्व के नाम पर शिवसेना के विधायक टूट गए। अब भाजपा इसे भुनाने में कसर नहीं छोड़ेगी। एकनाथ शिंदे ने शपथ ग्रहण से पहले भी बालासाहेब का नाम लिया। वहीं भाजपा बताने की कोशिश में है कि उसने एक सामान्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाकर बालासाहेब का सपना पूरा किया है जो कि उनके बेटे भी नहीं पूरा कर पाए।
क्या खत्म हो जाएगी उद्धव ठाकरे की राजनीति?
महाराष्ट्र में इस बड़े बदलाव के साथ ऐसा लग रहा है कि राज्य की पूरी राजनीति बदलने जा रही है। जहां अब तक शिवसेना की कमान ठाकरे परिवार के हाथ में थी, अब वह एकनाथ शिंदे के हाथ में जाती दिख रही है। अब देखना यह है कि अपनी राजनीति बचाने के लिए उद्धव ठाकरे क्या करेंगे? उद्धव के पास गिने-चुने विधायक एक मजबूत विपक्ष भी नहीं बन सकते।