चातुर्मास का दूसरा महीना आरंभ हो चुका है. पौराणिक कथा के अनुसार चातुर्मास की शुरुआत होते ही भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम पर चले जाते हैं. इन दिनों वे पाताल में विश्राम कर रहे हैं. इस समय भाद्रपद मास चल रहा है और देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का विश्राम काल समाप्त होता है. चातुर्मास में भगवान विष्णु के सो जाने के कारण इन दिनों कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता. इस विश्राम के दौरान जब पाताल लोक में भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, तो उसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. हिंदू धर्म में एकादशी का बड़ा महत्व है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तिथि को परिवर्तिनी एकादशी मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान की स्तुति से सभी पापों से मुक्ति मिलती है.
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व (Parivartini Ekadashi Significance)
परिवर्तिनी एकादशी को पाश्रव एकादशी या पद्मा एकादशी (padma ekadashi) भी कहा जाता है. इस दिन व्रत करने से जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायक माना गया है. भगवान विष्णु के साथ-साथ इस दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना भी की जाती है. एकादशी का व्रत एक दिन पहले सूर्यास्त से शुरू होकर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद तक रखा जाता है. पारण के शुभ मुहूर्त (paran shubh muhrat)में ही पारण करने पर व्रत का फल मिलता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. इसके व्रत का महत्व वाजपेज्ञ यज्ञ के समान माना गया है. इतना ही नहीं, इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने से धन की कमी दूर हो जाती है.
परिवर्तिनी एकादशी कथा (Parivartini Ekadashi Katha)
हिंदू पंचाग में एकादशी के व्रत का काफी महत्व है. महाभारत में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी के व्रत के महामात्य के बारे में बताते हुए, व्रत की कथा सुनाई थी और साथ ही एकादशी का व्रत रखने को भी कहा था. कथा के अनुसार त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था. असुर होने के बावजूद वे धर्म-कर्म में लीन रहता था और लोगों की काफी मदद और सेवा करता था. इस करके वो अपने तप और भक्ति भाव से बलि देवराज इंद्र के बराबर आ गया. जिसे देखकर देवराज इंद्र और अन्य देवता भी घबरा गए. उन्हें लगने लगा कि बलि कहीं स्वर्ग का राजा न बन जाए.
ऐसा होने से रोकने के लिए इंद्र ने भगवान विष्णु की शरण ली और अपनी चिंता उनके सम्मुख रखी. इतना ही नहीं, इंद्र ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की. इंद्र की इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और राजा बलि के सम्मुख प्रकट हो गए. वामन रूप में भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण कर एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया. अब भगवान विष्णु के पास तीसरे पांव के लिए कुछ बचा ही नहीं. तब राजा बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया. भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया. भगवान राजा बलि की इस भावना से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया.