अयोध्या में शंखध्वनि, घंटों और मजीरों की ध्वनि के बीच वेदमंत्रों के उच्चारण से शुरू हुए बहुजन समाज पार्टी के ‘प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी’ का समापन ‘जय भीम-जय भारत’ के अलावा ‘जयश्रीराम’ और ‘जय परशुराम’ के उद्घोष के साथ हुआ.
आख़िरी दो नारे बीएसपी के किसी सम्मेलन में शायद पहली बार लगे हों लेकिन यही नारे अब बीएसपी की राजनीतिक दिशा तय कर रहे. हालांकि कुछ जातियों को लक्ष्य करके बनाए गए कुछ विवादास्पद नारे बीएसपी को आज भी परेशान करते हैं लेकिन बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने साफ़ कर दिया कि ‘वो नारे’ न तो बीएसपी की किसी सभा में कभी लगे हैं और न ही बीएसपी के किसी नेता ने कभी लगाए हैं.
बीएसपी की ओर से पहले इसे ‘ब्राह्मण सम्मेलन’ कहा जा रहा था लेकिन आयोजन से एक दिन पहले इसका नाम बदलकर ‘प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी’ कर दिया गया.
इस श्रृंखलाबद्ध संगोष्ठी की शुरुआत अयोध्या से ही क्यों हुई, इसका जवाब पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सतीश चंद्र मिश्र ने अपने भाषण में देने की कोशिश की लेकिन जब भाषण की समाप्ति ‘जयश्रीराम’ और ‘जय परशुराम’ के नारों के साथ हुई तो उत्तर काफ़ी कुछ स्पष्ट हो गया. और पूरी तरह तब स्पष्ट हो गया जब सतीश चंद्र मिश्र ने इस सम्मेलन के दूसरे चरण की शुरुआत मथुरा से, तीसरे की शुरुआत काशी (वाराणसी) से और चौथे चरण की शुरुआत चित्रकूट से करने की घोषणा की.
मीडिया के लिए निर्धारित जगह पर खड़े एक बुज़ुर्ग सीताराम काफ़ी उत्साहित थे. कहने लगे, “अयोध्या, मथुरा, काशी पर किसी का पेटेंट थोड़ी न है. ये तीर्थस्थल सभी हिंदुओं के हैं.”
सतीश चंद्र मिश्र यह बताना भी नहीं भूले कि सम्मेलन में क़रीब दो घंटे की देरी से पहुंचने की वजह यह थी कि यहां आने से पहले वे रामलला और हनुमानगढ़ी में दर्शन करने गए थे और फिर सरयू आरती में भी शामिल हुए थे. उन्होंने बीजेपी और विश्व हिन्दू परिषद पर कई तीखे सवाल दागे.
राम मंदिर के चंदे पर सवाल
सतीश चंद्र मिश्र का कहना था, “पिछले 30 साल में जमा किए पैसे का हिसाब दें, जो इन्होंने अयोध्या के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपये इकट्ठा किए हैं. हर जगह से इन्होंने चंदा लिया. अब फिर चंदा मांग रहे हैं. भगवान राम के लिए आप झोला लेकर घूम रहे हैं. एक साल में मंदिर की नींव भी नहीं बन पा रही है. मंदिर बनेगा या नहीं, ये आज भी प्रश्न है. मैं कहना चाहता हूं कि इनका असली चेहरा पहचानिए.”
अयोध्या-लखनऊ राजमार्ग पर एक रीसॉर्ट में आयोजित इस सम्मेलन में कोविड प्रोटोकॉल को देखते हुए पचास लोगों के शामिल होने की अनुमति दी गई थी लेकिन वहां मौजूद लोगों की संख्या कुछ नहीं तो इस संख्या की सौ गुनी तो रही ही होगी. हालांकि लोगों को मास्क लगाए रखने की बार-बार मंच से हिदायत दी जा रही थी. ख़ुद सतीश मिश्र यह कह रहे थे कि अभी तमाम लोग बाहर ही खड़े हैं और कुछ लोग तो अपनी गाड़ियों में ही बैठे हैं.
इससे पहले, शुक्रवार की सुबह अयोध्या शहर में रहने वाले सर्वेश कुमार पांडेय से मुलाक़ात हुई थी. जगह-जगह बीएसपी के इस प्रबुद्ध सम्मेलन वाले पोस्टर्स लगे थे. सर्वेश कुमार पांडेय किसी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं लेकिन बीएसपी के इस सम्मेलन को लेकर भी बहुत उत्साहित नहीं थे. कारण पूछने पर बताया कि ‘चार साल से तो ब्राह्मणों की याद नहीं आई. अब अचानक क्यों याद आ रही है?’
उनके इस सवाल का जवाब सम्मेलन में मौजूद और गोरखपुर के रहने वाले अमरचंद्र दुबे ने दिया, “ऐसा नहीं है कि बीएसपी ने चार साल कुछ नहीं किया. इससे पहले भी कई सम्मेलन हो चुके हैं और अब तो पूरी सूची ही जारी हो चुकी है. पिछले साल भी कानपुर में विकास दुबे के एनकाउंटर पर बीएसपी ने विरोध जताया था. हर चीज़ का समय होता है. अब हम 2022 में इन्हें सबक सिखाएंगे.”