बिहार की जातीय, सामाजिक- आर्थिक सर्वे देश की सियासत का एजेंडा बदल सकता है। मंगलवार को विधानमंडल के दोनों सदनों में रिपोर्ट पेश करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में राज्य में पिछड़ा, अतिपिछड़ा, अनुसूचित जाति और जनजाति की आरक्षण सीमा बढ़ाकर 65 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा।
साथ ही घोषणा की कि इसी सत्र में कोटा बढ़ाने का विधेयक लाएंगे। जातीय- आर्थिक सर्वे से नौकरी, शिक्षा और आमदनी में हिस्सेदारी की जो तस्वीर सामने आई है, उसी आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ाने का विधेयक राज्य सरकार लाने जा रही है।
बिहार की रिपोर्ट आने के बाद ही INDIA गठबंधन के नेता देश स्तर पर जातीय गणना कराने की मांग पर मुखर हो गए थे। कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन के अन्य सहयोगी दलों की राज्य सरकारों ने एलान भी कर दिया कि वह अपने-अपने राज्यों में जातीय गणना कराएंगी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी देशस्तर पर जातीय गणना कराने की मांग को लेकर खासे मुखर हैं। बिहार सरकार ने अब सामाजिक- आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट भी पेश कर दी है। जाहिर है इस बहाने विपक्ष देश स्तर पर जातीय गोलबंदी की मुहिम तेज करेगा।
केंद्र सरकार ने भले ही देशस्तर पर ऐसा कराने का कोई संकेत नहीं दिया है, लेकिन बीजेपी जातीय गणना का विरोध करने से परहेज कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को मुजफ्फरपुर में अपनी किसान रैली से दो दिन पहले ही साफ कर दिया था कि बीजेपी जातीय गणना के खिलाफ नहीं है। बीजेपी विपक्ष के इस हथियार की धार कुंद करने की रणनीति पर काम कर रही है। नेतृत्व ने बिहार के नेताओं को भी साफ कर दिया है कि जातीय गणना के विरोध में किसी तरह की बयानबाजी न करें, बल्कि इसकी खामियां उजागर करें। बीजेपी अतिपिछड़ा और दलित समीकरण पर दांव खेलने की रणनीति अपना रही है।
मुजफ्फरपुर की किसान रैली में अमित शाह ने मंच से कहा कि लालू प्रसाद के दबाव में बिहार की जातीय गणना में मुस्लिम- यादव की आबादी बढ़ाकर दिखायी गयी है। यह भी कहा कि राज्य की अतिपिछड़ा आबादी के साथ अन्याय हुआ, इनका हक छीना गया। उधर, गरीबों के लिए मुफ्त राशन की अवधि 2028 तक बढ़ाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान को मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। पीएम मोदी विपक्ष की जातीय गणना की धार को कुंद करने के लिए साफ कह रहे हैं कि कमजोर वर्ग के लोगों की सिर्फ एक जाति है गरीबी। जाति के नाम पर गरीबों को बांटने की साजिश को बेनकाब करें।
बिहार में पिछड़ा-दलित ध्रुवीकरण के प्रयासों को कमजोर करने के लिए भाजपा बिहार में अपनी सियासत के यूपी मॉडल को आजमाने की भी रणनीति अपना रही है। मंच से यादव- मुस्लिम आबादी को बढ़ाकर दिखाने के आरोप इसी की कड़ी माना जा रहा है। इससे पहले भाजपा यह दावा करती रही है कि लोकसभा चुनावों में उसे नरेन्द्र मोदी के नाम पर बड़ी संख्या में यादवों का भी वोट मिलता रहा है।
दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने अपने आरक्षण का जो मॉडल अपने संबोधन में पेश किया, उसका लाभ पिछड़ा, अतिपिछड़ा और दलित आबादी को समान रूप से मिलेगा। बिहार में अभी अनुसूचित जाति को 16, जनजाति को 1, अतिपिछड़ा को 18, पिछड़ा को 12, पिछड़ी महिलाओं को 03 और आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। नए प्रस्ताव में अनुसूचित जातियों को 4 फीसदी बढ़ाकर 20, जनजाति को दोगुना यानी 2, अतिपिछड़ा को 7 फीसदी बढ़ाकर 25 फीसदी और पिछडा़ को 6 फीसदी बढ़ाकर 18 फीसदी करने का प्रावधान किया जा रहा है। आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों का कोटा 10 फीसदी ही रहेगा। इस प्रकार दलित, पिछड़ा और अतिपिछड़ा वर्ग के लोगों को 50 से बढ़कर 65 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा। 25 फीसदी अनारक्षित सीटों पर सभी वर्गों से मेधा के आधार पर अवसर मिलेंगे।
बहरहाल, बिहार के जातीय, सामाजिक- आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट पेश करने के साथ दलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा के आरक्षण की सीमा बढ़ाने का ऐलान सियासत को एकबार फिर ध्रुवीकरण की राह पर ले जाने की रणनीति का भी हिस्सा है।