बिहार में जातीय जनगणना और उसके बाद आर्थिक सर्वे पेश किए जाने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने नया दांव चल दिया है। उन्होंने राज्य में आबादी के अनुपात में आरक्षण दिए जाने का प्रस्ताव रखते हुए लिमिट को बढ़ाकर 75 फीसदी तक करने की बात कही है।
उन्होंने कहा कि राज्य में ओबीसी वर्ग को आबादी के अनुपात में आरक्षण मिलना चाहिए। इसलिए पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म किया जाए और कोटा की सीमा 65 फीसदी तक हो। कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों को मिलने वाला 10 फीसदी का आरक्षण इससे अलग होगा। ऐसा हुआ तो अनारक्षित वर्ग के लिए 25 फीसदी ही बचेगा।
नीतीश कुमार का प्रस्ताव है कि अनुसूचित जाति, जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग को मिलाकर कुल 65 फीसदी आरक्षण दिया जाए। कमजोर आर्थिक वर्ग के लिए 10 फीसदी का आरक्षण अलग रहे। इस प्रस्ताव के तहत अनुसूचित जाति के लिए 20 फीसदी कोटे की बात है, जबकि पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए 43 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव है। अब तक यह आरक्षण 30 फीसदी का ही है। इसके अलावा 2 फीसदी कोटा अनुसूचित जनजाति के लिए प्रस्तावित किया गया है।
बिहार विधानसभा में आज ही नीतीश कुमार ने आर्थिक सर्वे रिपोर्ट भी पेश की है। इसके मुताबिक राज्य में 34 फीसदी लोगों की कमाई 6000 रुपये मासिक से कम है। सूबे में 42 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। इसके अलावा ओबीसी वर्ग के भी 33 फीसदी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक सूबे में सवर्णों में सबसे भूमिहार गरीब हैं, जबकि ओबीसी वर्ग में यादव समाज के 34 फीसदी लोग गरीब हैं। वहीं सभी वर्गों में सबसे गरीब मुसहर बिरादरी के लोग हैं, जहां 54 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं।