“बुखार और गले में दर्द होने के बाद मैंने अस्पताल में दाखिले के लिए स्वास्थ्य विभाग के कंट्रोल रूम में फ़ोन किया. लेकिन मुझे बताया गया कि कहीं भी बेड ख़ाली नहीं है. आख़िर मुझे क़रीब 36 घंटे बाद एक अस्पताल में बेड मिला.”
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना ज़िले के वनगाँव इलाक़े के सौरभ कुंडू (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि उनके गाँव में पहले तो कोरोना की जाँच नहीं हो पा रही है और जाँच हुई भी, तो रिपोर्ट आने में तीन से चार दिन लग रहे हैं.
उसके बाद अस्पतालों में बेड तलाशने की क़वायद शुरू हो जाती है. लेकिन कहीं से ठोस जानकारी नहीं मिल पाती.
पश्चिम बंगाल में कोरना संक्रमण के मामले में उत्तर 24-परगना ज़िला अब राजधानी कोलकाता को टक्कर देने लगा है.
दस मई, सोमवार को रात आठ बजे तक के आँकड़ों के मुताबिक़, उत्तर 24-परगना ज़िले में क़रीब चार हज़ार नए मामले आए और 34 मरीज़ों की मौत हो गई.
वैक्सीन की सप्लाई
ज़िले में अप्रैल की शुरुआत में रोज़ाना 400 नए मरीज़ आ रहे थे, जो अब 10 गुना बढ़ कर 4000 तक पहुँच गए हैं.
ज़िला स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, “बनगाँव अनुमंडल अस्पताल में वेंटिलेटर तो है. लेकिन कोई टेक्नीशियन नहीं होने की वजह से उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है.”
ज़िले में वैक्सीन की कमी से सोमवार को कई जगह लोगों को टीका नहीं दिया जा सका.
उत्तर 24-परगना के ज़िलाधिकारी सुमित गुप्ता ने बताया कि वैक्सीन की सप्लाई आते ही ये काम फिर शुरू हो जाएगा.
पश्चिम बंगाल सरकार भले ही बेड और ऑक्सीजन की कमी नहीं होने का दावा करे, ग्रामीण इलाक़ों की तस्वीर बदहाल ही है.
‘अस्पतालों में आरटी-पीसीआर जाँच किट नहीं’
मिसाल के तौर पर बांकुड़ा ज़िले में कोरोना संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है. लेकिन सरकारी आँकड़ों में ज़मीनी तस्वीर नहीं नज़र आती.
ज़िले के आंचुड़ी गाँव के रहने वाले बापी दास बताते हैं, “गाँवों में ये महामारी घर-घर फैल गई है. लेकिन पहले तो पर्याप्त टेस्ट नहीं हो रहे हैं और दूसरे लोग सामाजिक बॉयकाट के डर से जाँच कराने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं.”
“लक्षण नज़र आते ही लोग डॉक्टरों से दवाएँ ले कर घर पर ही इलाज कर रहे हैं. इस वजह से मौतें भी हो रही हैं. लेकिन उनकी गिनती कोरोना से मरने वालों के तौर पर नहीं की जा रही है.”
वह बताते हैं कि ज़िले में अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की समस्या नहीं है. इसकी वजह मरीज़ों का अस्पताल नहीं पहुँचना है. ज़्यादातर अस्पतालों में आरटी-पीसीआर जाँच किट नहीं है.
ज़िले में सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, रोज़ाना औसतन 10 लोगों की मौत हो रही है.
जाँच और वैक्सीन के लिए भारी भीड़
लेकिन एक अख़बार में फोटोग्राफर के तौर पर काम करने वाले भैरव दास बताते हैं, “जाँच और वैक्सीन के लिए भारी भीड़ उमड़ रही है. लोगों को नदी किनारे शव जलाने पड़ रहे हैं.”
मुर्शिदाबाद ज़िले में भी रोज़ाना औसतन 12-14 मरीज़ों की मौत हो रही है.
वरिष्ठ पत्रकार सुकुमार महतो बताते हैं, “हाल में बरहमपुर कोविड अस्पताल में बिस्तरों की तादाद 150 से बढ़ा कर 300 की गई है. ऑक्सीजन प्लांट भी लगाए जा रहे हैं. लेकिन टीकाकरण की रफ़्तार कम है.”
मुर्शिदाबाद से सटे मालदा ज़िले में रोज़ाना औसतन 450 नए मरीज़ आ रहे हैं. वहाँ अब तक 127 लोगों की मौत हो चुकी है.
सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन
स्थानीय पत्रकार सेबक देबशर्मा बताते हैं, “27 अप्रैल से टीके की पहली डोज़ बंद है. ऑक्सीजन की भारी क़िल्लत है. ख़ाली सिलिंडर भी 22 से 25 हज़ार तक में बिक रहे हैं. इसी तरह ऑक्सीमीटर दो से तीन हज़ार रुपए तक में बिक रहे हैं. मालदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 20 डॉक्टरों और 60 नर्सों के साथ नया कोविड वार्ड बनाया गया है.”
उत्तर दिनाजपुर में रायगंज गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोरोना जाँच के लिए एक ही काउंटर है.
नतीजतन लंबी कतार लगती है और सोशल डिस्टेंसिंग का सरेआम उल्लंघन हो रहा है.
ज़िला स्वास्थ्य अधिकारी सोमाशीष राउत बताते हैं, “कर्मचारियों की कमी के कारण हम एक ही काउंटर चला रहे हैं. दूसरी लहर के बाद जाँच कराने वालों की तादाद अचानक काफ़ी बढ़ गई है. बार-बार अनुरोध के बावजूद लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं. इससे संक्रमण फैलने का ख़तरा है.”
तेज़ी से बढ़ते आँकड़े
राज्य में कोरोना संक्रमण तेज़ी से बढ़ रहा है. दो सप्ताह पहले तक नए मरीज़ों की दैनिक तादाद 16 हज़ार से कम थी, जो अब 20 हज़ार के क़रीब पहुँच गई है. इसी तरह मौत का दैनिक आँकड़ा भी 68 से 134 तक पहुँच गया है.
राज्य में मृत्यु दर 1.23 फ़ीसदी है. सबसे ज़्यादा मरीज़ कोलकाता और उत्तर 24-परगना के अलावा हावड़ा और हुगली ज़िलों से आ रहे हैं.
लेकिन बापी दास सवाल करते हैं, “जब जाँच ही नहीं हो पा रही है तो असली आँकड़े कहां से मिलेंगे. घंटों कतार में रहने के बाद अगर जाँच हुई भी तो इसकी रिपोर्ट मिलने में तीन से चार दिन लग जाते हैं.”
हालाँकि सरकार ने कहा है कि जाँच रिपोर्ट हो या नहीं, लक्षण होने की स्थिति में मरीज़ को अस्पताल में भर्ती करना अनिवार्य है.
लेकिन ख़ासकर ज़िलों में इस आदेश का पालन नहीं हो रहा है. मुर्शिदाबाद और नदिया जैसे ज़िलों में अस्पताल में दाखिल होने के लिए जहाँ जाँच रिपोर्ट अनिवार्य है, वहीं आरटी-पीसीआर जाँच के लिए भी डाक्टर की पर्ची होना अघोषित नियम बन गया है.
संक्रमितों और मृतकों की बढ़ती तादाद
हालाँकि शक्तिनगर अनुमंडल अस्पताल के अधीक्षक सोमनाथ भट्टाचार्य कहते हैं, “मुझे ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है. मैं देखता हूँ क्या मामला है.”
नदिया ज़िले के रानाघाट अस्पताल के कार्यवाहक अधीक्षक श्यामल कुमार कहते हैं, “हमारे पास जो ढाँचा है, उसमें रोज़ाना 130 से ज़्यादा जाँच नहीं की जा सकती है. लेकिन रोज़ाना 200 से ज़्यादा लोग यहाँ आ रहे हैं. इसलिए हम डॉक्टर की पर्ची के साथ आने वाले लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं.”
दक्षिण 24-परगना ज़िले के बारुईपुर में वैक्सीन की दूसरी डोज़ के लिए सुबह चार बजे से ही कतार में खड़े आशीष मंडल को दोपहर 12 बजे टीका मिल सका.
मंडल बताते हैं, “संक्रमितों और मृतकों की बढ़ती तादाद की वजह से लोगों में भारी आतंक फैल गया है. इस वजह से वैक्सीन के लिए लंबी कतार लग रही है. पहले तो गाँव में कोई वैक्सीन लेना ही नहीं चाहता था.”
स्वास्थ्यकर्मियों का अभाव
पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य का आधारभूत ढाँचा तो पहले से ही बदहाल था. अब कोरोना महामारी की ख़ासकर दूसरी लहर ने इसकी असलियत उधेड़ दी है.
राज्य में 923 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. ग्रामीण इलाक़ों के लोग इलाज के लिए सबसे पहले वहीं पहुँचते हैं.
स्वास्थ्य विभाग के रिटार्यड अधिकारी अनिमेष बर्मन बताते हैं, “ऐसे हर केंद्र पर कम से कम पाँच डॉक्टरों की नियुक्ति का प्रावधान है. लेकिन ज़्यादातर में एक ही डॉक्टर है. इसी तरह 348 ग्रामीण अस्पतालों में 1740 विशेषज्ञ डॉक्टरों के करीब डेढ़ हज़ार पद ख़ाली हैं. पुरुष औऱ महिला सहायकों के स्वीकृत पद भी हज़ारों की तादाद में ख़ाली हैं. इसलिए मरीज़ों की भीड़ से निपटने में दिक़्क़त हो रही है.”
सरकार का दावा
हालाँकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में सबको मुफ़्त वैक्सीन देने का वादा किया है.
मुख्य सचिव आलापन बनर्जी कहते हैं, “किसी को चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है. सबको टीका मिलेगा.”
उनका कहना है कि प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों ने अब तक क़रीब साढ़े तीन लाख डोज़ बचाए हैं.
स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी अजय कुमार बताते हैं, “वैक्सीन की दूसरी डोज़ के मामले में बंगाल आंध्र प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है. यहाँ पहली डोज़ लेने वालों में से 37.37 फ़ीसदी को दूसरी डोज़ मिल चुकी है. राज्य में अब तक 1.22 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है.”
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए एमबीबीएस पास करने वाले युवकों और इंटर्नों की भी तैनाती की जा रही है.
मुख्य सचिव आलापन बनर्जी बताते हैं, “सरकार ने इंटीग्रेटेड कोविड मैनेजमेंट सिस्टम (आईसीएमसी) शुरू किया है. वहाँ एक ही जगह बेड से लेकर ऑक्सीजन और वैक्सीन की जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है. इसके साथ ही ऑक्सीजन मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम भी शुरू किया गया है.”
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र से पूरे देश के लिए समान टीकाकरण नीति अपनाने की अपील की है.
उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल को कम से कम तीन करोड़ टीकों की ज़रूरत है.