नारद रिश्वत कांड की सुनवाई में कलकत्ता हाइकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। यह सवाल किसी और ने नहीं, बल्कि हाइकोर्ट के ही एक वरिष्ठ न्यायाधीश ने उठाया है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की वेबसाइट की एक खबर के अनुसार उक्त न्यायाधीश ने इस सिलसिले में उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को पत्र लिखा है। खास बात यह है कि उन्होंने यह पत्र कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को भी भेजा है। इस पत्र में मामले को हाइकोर्ट में स्थानांतरित करने और चारों अभियुक्तों को सीबीआई कोर्ट की तरफ से दी गई जमानत पर स्टे लगाने में न्यायाधीश बिंदल के हस्तक्षेप पर सवाल उठाए गए हैं।
पत्र में लिखा गया है, “हमारा आचरण हाइकोर्ट की गरिमा के विरुद्ध है। हम एक मजाक बन कर रह गए हैं। इसलिए, मैं सभी से अनुरोध करता हूं कि हमारे नियमों की पवित्रता और अलिखित आचार संहिता को बनाए रखने के लिए कदम उठाएं। इसके लिए यदि आवश्यक हो, तो फुल कोर्ट की भी बैठक बुलाई जानी चाहिए।”
वरिष्ठ न्यायाधीश ने यह पत्र 24 मई को लिखा। इसके एक दिन पहले ही सीबीआई ने हाइकोर्ट की खंडपीठ के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें मंत्रियों सुब्रत मुखर्जी, फिरहाद हाकिम, तृणमूल विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी को हाउस अरेस्ट करने का निर्देश दिया गया था। सीबीआई ने विशेष अदालत के जमानत के फैसले के खिलाफ उसी रात हाइकोर्ट में अर्जी दी थी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश अरिजित बनर्जी की खंडपीठ ने रात में ही निचली अदालत के फैसले पर स्टे लगा दिया था। पत्र में सीबीआई की अर्जी स्वीकार करने और कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के अपनी पीठ में ही मामला भेजने में प्रक्रियागत खामियों पर सवाल उठाए गए हैं। पत्र में स्टे ऑर्डर पर भी सवाल उठाए गए हैं।
21 मई को न्यायाधीश बिंदल और न्यायाधीश बनर्जी के फैसले अलग होने के बाद चारों नेताओं के हाउस अरेस्ट का आदेश दिया गया था। न्यायाधीश बनर्जी जमानत देने के पक्ष में थे, लेकिन न्यायाधीश बिंदल हाउस अरेस्ट चाहते थे। पत्र में वरिष्ठ न्यायाधीश ने सवाल किया है कि खंडपीठ में विभाजित फैसले के मामले में आम तौर तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित की जाती है, तो इस मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन क्यों किया गया।