संवत्सर का अर्थ है, सम+वत्सर यानि पूर्ण वर्ष। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्माजी ने इस दिन सम्पूर्ण सृष्टि और लोकों का सृजन किया था। इसी दिन भगवान विष्णु का मत्स्यावतार भी हुआ था।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार संवत के 5 भेद होते हैं, सौर, सावन, चांद्र, बार्हस्पत्य और नाक्षत्र। एक संवत में 12 मास होते हैं, चैत्र से फाल्गुन तक इनका क्रम निश्चित है। एक संवत में 6 ऋतुएं होती हैं। कुल 60 संवत होते हैं, इनका प्रारम्भ प्रभव से होता है और अंत अक्षय पर।
विक्रमी संवत का महत्व
- अलग अलग धर्म संप्रदायों के अनुसार संवत्सर होते हैं, जैसे शक संवत( प्रतिवर्ष 22 मार्च से, इसे अब राष्ट्रीय संवत भी कहते हैं), बंगला संवत, हिजरी संवत। ईसाई धर्म के लोग ईसवी सन मनाते हैं, जो जनवरी से दिसंबर तक रहता है। भारत में विक्रमी संवत, जिसे उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने 2000 वर्ष पूर्व शुरू किया, जो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होता है। इसे सभी सनातन धर्म के मानने वाले नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। इसे गुड़ी पड़वा भी कहते हैं। इसी दिन से नया पंचाग शुरू होता है और ज्योतिष की गणना के अनुसार देश, राज्य के समस्त विषयों की भविष्यवाणी, लोक व्यवहार, विवाह, अन्य संस्कारों और धार्मिक अनुष्ठानों की तिथियां निर्धारित की जाती हैं।
- भगवान राम और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ था। इसी दिन प्रकृति भी हमें बदलाव के संकेत वृक्षों पर पतझड़ के बाद नए पत्ते आने के साथ देती है, चारों तरफ अनेक प्रकार के फूल खिलते हैं, ऐसा लगता है मानो हरियाली भी नव वर्ष मना रही है। फसल पकने के बाद नया अनाज बाजार में आता है। शक्ति और भक्ति के प्रतीक नवरात्रि इसी दिन से प्रारंभ होते हैं। सम्पूर्ण वातावरण आनंदमय और आध्यात्मिक प्रतीत होता है।
संवत्सर पूजन
- इस दिन गणेशजी, ब्रह्माजी, सृष्टि के प्रधान देवी देवताओं, यक्ष, गंधर्व, ऋषि मुनियों, पंचाग, ज्योतिषियों, ब्राह्मण, वेद पुराण, धर्म शास्त्र, न्याय शास्त्र, प्रकृति, औषधियों इत्यादि की पूजा की जाती है। प्रत्येक घर पर लोग अपने अपने संप्रदायों के अनुसार ध्वज आदि लगाते हैं, घरों को सजाते हैं, वस्त्र आभूषण आदि पहनकर उत्सव के रूप में मनाते हैं। पूजन के समय, घट स्थापना के पश्चात नवीन पंचांग से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनेश, धान्यादि, मेघेश, संवत्सर निवास आदि की गणना की जाती है।
वर्तमान संवत्सर 2080
- वर्तमान पिंगल नामक संवत, 21.3.2023 को रात्रि में 10.53 मिनट से शुरू हो रहा है। इस वर्ष का राजा बुध, मंत्री शुक्र, मेघेश गुरु होंगे। ये संवत्सर विश्व की अर्थव्यवस्था, व्यापार, उद्योग, शेयर बाजार, कृषि, वर्षा, मनोरंजन, फैशन, आर्ट्स, टूरिज्म, ऑटोमोबाइल सेक्टर, चिकित्सा, शिक्षा, मीडिया, विशुद्ध पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्नति की दृष्टि से बहुत अच्छा वर्ष रहेगा। प्राकृतिक प्रकोप, महामारी से विश्व को राहत मिलेगी। लोगों में स्वास्थ्य संबंधी चेतना और जागरूकता बढ़ेगी। आयुर्वेद, ज्योतिष, योग और अध्यात्म का प्रचार प्रसार और विद्वानों संतों का मान सम्मान बढ़ेगा।
- विश्व के अनेक देशों में दुष्ट अहंकारी, क्रूर शासकों का सत्ता परिवर्तन होगा और धर्म परायण, अच्छे और जनता के कष्टों को दूर करने वाले शासक सत्ता में आएंगे। भारत सहित विश्व के अनेक देशों में प्रजातंत्र मजबूत होगा। विश्व के कई देशों में बैंकों और व्यापारियों, मीडिया, फैशन, मनोरंजन, स्पोर्ट्स के स्कैंडलों का पर्दाफाश होगा। छद्म युद्ध, सेक्स और दिनचर्या से संबंधित रोग बढ़ेंगे। वर्षा भी कहीं ज्यादा कहीं कम होगी, जिससे बाजार में अकारण उछाल आएगा। विश्व में उत्तर पूर्व, दक्षिण पूर्व, पूर्व, पश्चिम और उत्तर पश्चिम दिशा के देशों में ज्यादा हालात खराब रहेंगे। शिक्षा, वैदिक ज्ञान, धर्म संस्कृति, न्याय व्यवस्था, लोगों के कष्टों को दूर करने में मददगार साबित होगी।