चैत्र नवरात्रि पर्व के छठे दिन (27 मार्च, सोमवार) माँ दुर्गा की छठे रूप माँ कात्यायनी की पूजा का विधान है।
मान्यता है कि शत्रुओं पर विजय पाने के लिए भी मां कात्यायनी की पूजा का विधान है। माँ के इस रूप की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आने वाली बाधाए दूर होती हैं। साथ ही वैवाहिक जीवन में खुशियां आती हैं। नवरात्रि में आप माँ कात्यायनी की विधि-विधान और मंत्र, आरती सहित आराधना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने कठोर तप करके मां दुर्गा को प्रसन्न किया। जब माँ दुर्गा ने उन्हें दर्शन दिए तो उन्होंने माँ को पुत्री के रूप में अपने घर लेने की इच्छा व्यक्त की। माँ ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। जब धरती पर महिषासुर राक्षस का आतंक बढ़ा तब त्रिदेव के अंश से देवी ने महर्षि के घर जन्म लेकर महिषासुर राक्षस का वध किया। देवी का जन्म महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में हुआ था, इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है।
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर व्रत और पूजा का संकल्प लें। माँ को गंगाजल से स्नान करा कर स्थापित करें। अब श्रृंगार अर्पित करें। उन्हें सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप-दीप, पुष्प, फल प्रसाद आदि से देवी की पूजा करें। इसके बाद उन्हें पीले फूल, कच्ची हल्दी की गांठ और शहद अर्पित करें। मंत्र सहित माँ की आराधना करें, उनकी कथा पढ़ें और अंत में आरती करें। आरती के बाद सभी में प्रसाद वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करें।
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माँ कात्यायनी की आरती
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा।
कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।