चंद्रयान-3 की साउथ पोल पर कामयाब लैंडिंग कराकर भारत ने नया इतिहास रचा है. इसरो के वैज्ञानिकों की इस ‘बड़ी’ कामयाबी से देशभर में खुशी की लहर है. सांसों को रोक देने वाले पलों के बीच चंद्रयान का विक्रम लैंडर बुधवार, 23 अगस्त को जैसे ही साउथ पोल पर जैसे ही उतरा, पूरी दुनिया ने भारत की बड़ी उपलब्धि को खुले दिल से ‘सेल्यूट’ किया.
इस एक बड़ी सफलता से भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में मीलों लंबी छलांग लगाई है.चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला देश है.
दरअसल साउथ पोल पर जमीन पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं जिसके कारण कोई भी लैंडिंग आसान नहीं होती. साउथ पोल में अंधकार स्थितियों को और भी मुश्किल बना देता है. यहां पर तापमान -300 डिग्री फारेनहाइट या इससे भी नीचे जा सकता है. रूस का मून मिशन लूना-25 के कुछ दिन पहले ही चांद से टकराकर क्रैश होने के बाद भारत के चंद्रयान-3 मिशन को लेकर लोगों की उत्सुकता बढ़ गई थी. बहरहाल, इस सफल लैंडिंग के साथ इसरो के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान में भारत के रुतबे को बढ़ाया है. साउथ पोल पर लैंडिंग कर भारत ने विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र की उपलब्धियों में एक और ‘नगीना’ जड़ा है. नजर डालते हैं विज्ञान के क्षेत्र में भारत की खास उपलब्धियों पर..
मिशन मंगलयान
24 सितंबर 2014 में भारत के मिशन’मंगलयान’ (Mission Mangalyaan) ने मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करके इतिहास रचा था.इ मंगल को लाल ग्रह भी कहा जाता हैं. इसरो के वैज्ञानिकों ने पहले से ही मंगलयान में कमांड अपलोड कर दिए थे, जिससे वह खुद ही कक्षा में प्रवेश कर गया. मिशन मंगल की कामयाबी के साथ भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला एशिया का पहला और दुनिया का चौथा देश बना था. भारत की यह उपलब्धि इस मायने में भी अहम थी कि अपने पहले ही प्रयास में उसने कामयाबी हासिल की थी.मंगल ग्रह से जुड़ी बातों का पता लगाना और वहां के वातावरण का अध्ययन करने में इस मिशन की खास भूमिका रही.
चंद्रयान-1 मिशन
पहले चंद्र मिशन (Mission Chandrayaan-1) के अंतर्गत भारत ने 22 अक्तूबर, 2008 को चंद्रयान-1 का सफल प्रक्षेपण किया था. इससे चंद्रमा से जुड़े रहस्यों को जानने में काफी मदद मिली थी .प्रक्षेपण के सिर्फ आठ महीनों में ही चंद्रयान-1 ने मिशन के सभी लक्ष्यों और उद्देश्यों को हासिल कर लिया. इस मिशन से दुनिया को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत की क्षमता का अहसास कराया था.चंद्रयान-1 मिशन के ज़रिये चंद्रमा की सतह पर जल तथा बर्फ की तलाश के साथ खनिज और रासायनिक तत्वों के बारे में जानकारी हासिल की गई.चंद्रयान-1 ने चांद की सतह की 60 हज़ार से ज़्यादा फोटो भेजने के अलावा चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र के स्थायी रूप से छायादार क्षेत्रों में पहाड़ों और क्रेटर के दृश्यों को कैमरे में कैद किया था.
सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल PSLV और GSLV
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (PSLV) एक बहुमुखी वाहन है जिसे इसरो ने डिजाइन और विकसित किया. भारत ने PSLV के माध्यम से कई सफल उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा है, जिनमें चंद्रयान, मंगलयान आदि शामिल हैं. इससे भारत सहित विभिन्न देशों के उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जाता है. PSLV चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जो पहले और तीसरे चरण में ठोस रॉकेट इंजन और दूसरे और चौथे चरण में तरल रॉकेट इंजन का उपयोग करता है. इसी तरह GSLV को मुख्य रूप से अत्यधिक अण्डाकार जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) संचार उपग्रहों के लिए डिज़ाइन किया गया है. PSLV का उपयोग पृथ्वी की निचली कक्षाओं में रिमोट सेंसिंग, पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों आदि को लॉन्च करने के लिए किया जाता है जबकि GSLV का उपयोग बहुत भारी संचार उपग्रहों की लांचिंग के लिए किया जाता है.
अग्नि और पृथ्वी मिसाइल प्रोग्राम
देश की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए भारत में सबसे पहले कम दूरी के लिए पृथ्वी मिसाइलों का विकास शुरू किया. रक्षा मंत्रालय के इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट कार्यक्रम के तहत यह काम किया गया. पृथ्वी मिसाइलों का विकास 1983 में हैदराबाद में शुरू किया गया और इसका पहला परीक्षण श्रीहरिकोटा से 1988 में किया गया. पृथ्वी-1 भारत में विकसित स्वदेशी तकनीकी से बनी बैलिस्टिक मिसाइल थी. बाद में पृथ्वी मिसाइलों के अगले संस्करणों में इसकी मारक क्षमता को बढ़ाया गया. इसके बाद से भारत अग्नि, त्रिशूल, धनुष, आकाश, नाग, निर्भय और प्रहार जैसी कई मिसाइल प्रणाली विकसित कर चुका है.
पोखरण विस्फोट
भारत ने 1970 के दशक में पोखरण में विस्फोट करके (Pokhran tests) खुद को परमाणु संपन्न देश घोषित किया था. पोकरण में पहला भूमिगत परीक्षण 18 मई 1974 को किया गया था. भारत सरकार ने उस समय ऐलान किया था कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यों और ऊर्जा के क्षेत्र में खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए है. वर्ष 1998 में भारत ने पांच और भूमिगत परमाणु परीक्षण किए. इन परीक्षणों के जरिये भारत ने जताया कि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों का वह मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है .सुरक्षा के मामले में अगर मजबूर किया गया तो वह हर कदम उठाने को तैयार है.
हरित क्रांति
खाद्य उत्पादन बढ़ाने, कुपोषण को कम करने और लाखों लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए हरित क्रांति (Green Revolution) की शुरुआत की गई थी. भारत में हरित क्रांति का जनक एमके स्वामीनाथन को माना जाता है. 1960 के दशक के आखिरी दौर में इसकी शुरुआत हुई. इस दौरान, खेती के तरीकों में बड़ा बदलाव हुआ और ज़्यादा उपज वाली किस्म के बीज, खेती के मशीनी उपकरण, सिंचाई तंत्र, खाद, व कीटनाशकों के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया गया. इससे गेहूं और चावल सहित सभी तरह के अनाज के उत्पादन में वृद्धि हुई. देश खाद्यान्न के मामले में न सिर्फ आत्मनिर्भर बना बल्कि आज खाद्यान निर्यात भी कर रहा है. इसी क्रम में श्वेत क्रांति के जरिये दूध का उत्पादन बढ़ाया गया.
स्वदेश में कोविड वैक्सीन Covaxin का विकास
साल 2020 की शुरुआत में कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी जद में ले लिया. इसके कारण लंबे समय तक दुनियाभर में डर और तनाव का माहौल रहा. लंबे लॉकडाउन के कारण काम धंधे बंद हो गए और अर्थव्यवस्था को तगड़ी चोट पड़ी. कोरोना वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन को ही उपाय माना गया. भारत बायोटेक ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) – नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के सहयोग से देश का पहला वैक्सीन, COVAXIN विकसित किया. स्वदेश में विकसित इस वैक्सीन के कारण बड़ी संख्या में लोगों को कोविड के खिलाफ ‘सुरक्षा कवच’ मिला. WHO ने भी इमरजेंसी यूज के लिए कोवैक्सीन को मंजूरी दी. कोवैक्सीन के अलावा भारत में कोविशील्ड, स्पूतनित-v और माडर्ना, वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंज़ूरी दी गई थी.
अंतरिक्ष में रहकर भारत के राकेश शर्मा ने रचा था इतिहास
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और सोवियत संघ के इंटरकॉस्मिक कार्यक्रम के संयुक्त अभियान के अंतर्गत वर्ष 1984 में राकेश शर्मा आठ दिन तक अंतरिक्ष में रहे थे. दो सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों के साथ सोयुज टी-11 पर सवार होकर राकेश अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले भारतीय बने थे. राकेश के अंतरिक्ष में पहुंचने को भी भारत की उपलब्धियों में शुमार किया जाता है, हालांकि यह मूलत: तत्कालीन सोवियत संघ का स्पेस कार्यक्रम था.