देवी आराधना का महापर्व नवरात्रि चल रहा है ये त्योहार देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ अलग अलग रूपों की विधिवत पूजा की जाती है और उपवास रखा जाता है।
इस बार चैत्र नवरात्रि का आरंभ 22 मार्च दिन बुधवार से हो चुका है जो कि 30 मार्च को रामनवमी पर समाप्त हो जाएगा।
ऐसे में नवरात्रि के दिनों में भक्त देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा आराधना करते है और माता की भक्ति में ही लीन रहते है मान्यता है कि नवरात्रि के शुभ दिनों में देवी आराधना करने से भक्तों को अपार कृपा मिलती है ऐसे में अगर आप भी देवी आशीर्वाद पाना चाहते है तो चैत्र नवरात्रि में माता के चमत्कारी चण्डी स्तोत्र का पाठ जरूर करें मान्यता है कि पाठ साधक को गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति दिलाता है और कष्टों व दुखों का भी समाधान करता है। तो आज हम आपके लिए लेकर आए है ये चमत्कारी पाठ।
चण्डी पाठ-
॥ ॐ श्री देव्यै नमः ॥
॥ अथ चंडीपाठः ॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै ९४ नमस्तस्यै १५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-१६॥
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।
नमस्तस्यै ९७ नमस्तस्यै १८ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-१९॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २० नमस्तस्यै २१ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-२२॥
| या देवी सर्वभूतेषु निद्रारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २३ नमस्तस्यै २४ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-२५11
या देवी सर्वभूतेषु भुधारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २६ नमस्तस्यै २७ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-२८।।
या देवी सर्वभूतेषु दृछायारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्ये २९ नमस्तस्ये ३० नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-३१।।
| या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ३२ नमस्तस्ये ३३ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-१४॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।।
तमस्तस्य३४ नमस्तस्य३६ नमस्तस्यै नमो नमः ।
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ३८ नमस्तस्यै ३९ नमस्तस्यै नमो नमः || ५-४०॥
या देवी सर्वभूतेषु जातिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४१ नमस्तस्यै ४२ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-४३॥
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४४ नमस्तस्यै ४५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-४६॥
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४७ नमस्तस्यै ४८ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-४९॥
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धासपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५० नमस्तस्यै ५१ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-५२॥
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्ये ५३ नमस्तस्यै ५४ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-99॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५६ नमस्तस्यै 95 नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-५८॥
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५९ नमस्तस्ये ६० लमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-६१।।
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरुपेण संस्थिता ।।
नमस्तस्यै ६२ नमस्तस्यै ६३ नमस्तस्यै नमो नमः || ६-६४॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्य ६७ नमस्तस्यै ६६ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-६७।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता ।
नमसलय ६८ नमस्तस्य ८९ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-००।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ७९ नमस्तस्यै ७२ नमस्तस्यै नमो नमः ॥७३॥
या देवी सर्वभूतेषु भान्तिरुपेण संस्थिता ।।
नमस्तस्यै ७४ नमस्तस्यै ७५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥५-७६॥
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भुतानाञ्चाखिलेषु या।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः ॥ ५-७७॥
चितिरुपेण या कस्नमेतद व्याप्य स्थिता जगत्।
नमस्तस्यै ७८ नमस्तस्यै ७९ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ८० ॥
॥ इति चंडीपाठ ॥