बात 1990 की है। विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे। उन्होंने इंदर कुमार गुजराल को तब विदेश मंत्रालय का जिम्मा दिया था। गुजराल अपनी विदेश नीति के लिए भारतीय इतिहास में जाने जाते हैं लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था, जब पूरी दुनिया में उनकी घोर आलोचना हुई थी और भारत को उनके कदम की वजह से पश्चिमी देशों के बीच शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी।
इराक पर लगा था प्रतिबंध
दरअसल, हुआ यह था कि 1990 के अंत में इराक ने कुवैत पर हमला बोल दिया था। उसकी इस कार्रवाई पर संयुक्त राष्ट्र में खूब हो हल्ला मचा था। यूएन ने बार-बार इराक के शासक सद्दाम हुसैन को कुवैत पर से कब्जा छोड़ने को कहा था लेकिन सद्दाम हुसैन अपने रुख पर अड़े रह गए। इस अड़ियल रुख की वजह से संयुक्त राष्ट्र ने इराक पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। इनके बावजूद सद्दाम हुसैन ने इराक में कुवैत के विलय की घोषणा कर दी थी।
पांच देशों की संयुक्त सेना का हमला
इराक की इस हिमाकत के बाद जनवरी 1991 में पांच देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, सऊदी अरब और कुवैत) संयुक्त सेना ने इराक पर हमला बोल दिया था। इस सैन्य अभियान को ऑपरेशन डेजॉर्ट स्टॉर्म के नाम से जाना जाता है। इस ऑपरेशन के दौरान इराक के सैन्य ठिकानों, तेल शोधन कारखानों और बगदाद के हवाई अड्डे को निशाना बनाया गया था। इतिहास में इसे खाड़ी युद्ध भी कहा जाता है।
सद्दाम को गुजराल ने लगाया था गले
खाड़ी युद्ध के दौरान ही भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री इंदर कुमार गुजराल बगदाद गए थे, जहां उन्हें इराक के तानाशाह सदज्दाम हुसैन के साथ गले मिलते हुए देखा गया था। इनकी इस तस्वीर और अदा पर दुनियाभर में खूब आलोचना हुई थी और कहा गया था कि भारत का विदेश मंत्री ऐसे शख्स को गले लगा रहा है, जो पूरी दुनिया को जबरन युद्ध में धकेल रहा है।
कुवैत में फंसे थे 1.70 लाख भारतीय
दरअसल, उस वक्त कुवैत में करीब 1 लाख 70 हजार भारतीय थे। गुजराल उस वक्त उन सभी भारतीयों की सकुशल निकासी के लिए सद्दाम हुसैन से मदद मांगने गए थे। यह वह दौर था, जब अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश इराक पर प्रतिबंध लगा चुके थे और इराक कुवैत पर हमले कर रहा था। गुजराल ने अपने संबंधों का इस्तेमाल कर तब कुवैत से सभी भारतीयों की सकुशल निकासी करवाई थी। इस दौरान इराक ने भारत को मदद की थी। एयर इंडिया के एक विमान ने तब दो महीने तक लगातार 17-17 घंटे की रोजाना उड़ान भरकर 500 ट्रिप में सभी भारतीयों को वहां से निकाला था।
इराक ने नहीं की थी मदद
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजराल से सद्दाम हुसैन ने तीन वादे किए थे लेकिन वह उसे निभाने से मुकर गया। इससे नई दिल्ली को आघात पहुंचा था। गुजराल और सद्दाम हुसैन के बीच तीन महत्वपूर्ण वादे हुए थे, जिनमें पहला फंसे हुए भारतीयों को लेने के लिए भारतीय विमान को कुवैत में उतरने की अनुमति देना, दूसरा कुवैत में 1.7 लाख भारतीयों को भारतीय जहाजों द्वारा लेने के लिए इराकी बंदरगाहों की पहुंच उपलब्ध कराना और तीसरा कुवैत में भारतीय दूतावास के कर्मचारी, जो बसरा चले गए थे, उन्हें वहां भारतीय समुदाय की सहायता के लिए कुवैत की यात्रा करने की अनुमति देना शामिल था। गुजराल की यात्रा के लगभग तीन सप्ताह बाद ही इराक ने इससे मुंह फेर लिया था। बावजूद इसके बगदाद की हठधर्मिता का जवाब देने की भी जहमत भारत ने नहीं उठाई थी। भारत ने तब जॉर्डन के रास्ते भारतीयों को कुवैत से निकाला था।
गुजराल को लगता था इराक की होगी जीत
उस वक्त संयुक्त राष्ट्र में राजदूत रहे और प्रधानमंत्री कार्यालय में काम कर चुके पूर्व राजनयिक चिन्मय घरेखान ने अपनी किताब “सेंट्रस ऑफ पावर: माय ईयर्स इन द प्राइम मिनिस्टर्स ऑफिस एंड सिक्योरिटी काउंसिल” में लिखा है कि तत्कालीन विदेश मंत्री आईके गुजराल का मानना था कि इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन भारत के मित्र हैं।
खाड़ी युद्ध पर नई दिल्ली के रुख के बारे में बात करते हुए घरेखान ने लिखा है कि विदेश मंत्री गुजराल को लगता था कि सद्दाम हुसैन अमेरिका और सहयोगी देशों को हरा देंगे। भारत के इस स्टैंड के कारण दुनिया भर में भारत को एक शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा था। बाद में गुजराल अप्रैल 1997 से मार्च 1998 तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे।