नागालैंड में 4 दिसंबर को हुई फायरिंग नें 14 लोगों की मौत के बाद से ही पूरे मामले की वजह से बवाल मचा हुआ है। इसके साथ ही इसके बाद से एक कानून फिर से सुर्खियों में आ गया है। राज्य के मुख्यमंत्री की तरफ से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट हिंदी में बोले तो सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम 1958 को हटाने की मांग की जाने लगी है। मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा कि उनकी सरकार ने केंद्र से सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, 1958 को नागालैंड से हटाने की मांग की है। नागालैंड के मोन जिले के ओटिंग में नागरिकों की अंतिम संस्कार सेवाओं में शामिल होने के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए रियो ने कहा कि केंद्र सरकार की तरफ से मृतकों के परिजनों को 11 लाख रुपये और राज्य की तरफ से 5 लाख रुपये की अनुग्रह सहायता प्रदान की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मैंने केंद्रीय गृह मंत्री से बात की है और वह इस मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। हमने प्रभावित परिवारों को आर्थिक मदद दी है। मैंने केंद्र से नागालैंड से अफस्पा हटाने का भी आग्रह किया है क्योंकि कानून देश की छवि पर एक काला धब्बा है। अफ्सपा हटाने को लेकर रियो का बयान ठीक उसी समय सामने आया जब मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की तरफ से भी अधिनियम को निरस्त करने का आह्वान किया था।
कब किया गया लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून
भारत के पूर्वोत्तर में पिछले पाच-छह दशकों से चले आ रहे कई पृथक्तावादी आंदोलनों की चुनौती से निपटने के लिए उस इलाके में सरकार ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून लागू किया है, जिसके तहत सेना की कार्रवाई किसी भी कानूनी जांच से परे है। यह कानून 1958 में संसद द्वारा पारित किया गया था। अरुणाच प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा के ‘अशांत इलाकों में तैनात सैन्य बलों को शुरू में इस कानून के तहत विशेष अधिकार हासिल थे। मणिपुर सरकार ने केंद्र की इच्छा के विपरीत अगस्त 2004 में राज्य के कई हिस्सों से यह कानून हटा दिया था। कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून जम्मू कश्मीर में लागू किया गया था।
क्या हैं इस पॉवरफुल एक्ट के प्रावधान
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून , 1958 (अफस्पा) के तहत केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर किसी राज्य या क्षेत्र को अशांत घोषित कर वहां केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करती है। अफस्पा के तहत सशस्त्र बलों को कहीं भी अभियान चलाने और बिना पूर्व वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त है।
सेना को मिल जाते हैं ये अधिकार
किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के सेना द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है।
बिना किसी वारंट के सशस्त्र बल द्वारा किसी के भी घर की तलाशी ली जा सकती है और इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल भी कर सकती है।
बार-बार कानून तोड़े जाने और अशांति फैलाने वाले पर इस कानून के तहत मृत्यु तक बल का प्रयोग किया जा सकता है।
वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ली जा सकती है।
सशस्त्र बलों को अंदेशा होने पर कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या इमारत में छुपा है ( जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो) उस आश्रय स्थल को तबाह किया जा सकता है।
सशस्त्र बलों द्वारा गलत कार्यवाही करने की दशा में भी, उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही नही की जाती है।
नागालैंड में क्या हुआ था?
गौरतलब है कि नागालैंड से बीते दिनों गोलीबारी की घटना सामने आई। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार इस गोलीबारी में 14 लोगों के मारे जाने की खबर सामने आई। पूरा घटनाक्रम नागालैंड के मोन जिले का है। रिपोर्ट के अनुसार नागरिकों के मारे जाने के बाद दूसरे लोगों ने गुस्से में सुरक्षाबलों की गाड़ियों में आग लगा दी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षाबल इलाके में काउंटर इमरजेंसी ऑपरेशन के तहत गए थे। दरअसल, 4 दिसंबर की शाम कुछ कोयला खदान कर्मी एक पिकअप वैन में सवार होकर गाना गाते हुए घर लौट रहे थे। सेना के जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी और इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की, जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई। पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले तथा इन लोगों ने सेना के वाहनों को घेर लिया। इस दौरान हुई धक्का-मुक्की व झड़प में एक सैनिक मारा गया और सेना के वाहनों में आग लगा दी गई। इसके बाद सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ की गई गोलीबारी में सात और लोगों की जान चली गई। इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और दंगों का दौर 5 दिसंबर को भी जारी रहा। गुस्साई भीड़ ने आज कोन्याक यूनियन और असम राइफल्स कैंप के कार्यालयों में तोड़फोड़ की और उसके कुछ हिस्सों में आग लगा दी।
गृह मंत्री ने लोकसभा में घटना पर खेद जताया
नागालैंड में गोलीबारी की घटना पर गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बयान दिया। उन्होंने उन्होंने कहा कि संदिग्धों की आशंका में फायरिंग हुई थी। भारत सरकार नागालैंड की घटना पर अत्यंत खेद प्रकट करती है और मृतकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना जताती है। नागालैंड की घटना की विस्तृत जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है जिसे एक महीने के अंदर जांच पूरी करने को कहा गया है। इसके साथ ही गृह मंत्री ने कहा कि सभी एजेंसियों से यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि भविष्य में विद्रोहियों के खिलाफ अभियान चलाते समय इस तरह की किसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं हो।
कब किया गया लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून
भारत के पूर्वोत्तर में पिछले पाच-छह दशकों से चले आ रहे कई पृथक्तावादी आंदोलनों की चुनौती से निपटने के लिए उस इलाके में सरकार ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून लागू किया है, जिसके तहत सेना की कार्रवाई किसी भी कानूनी जांच से परे है। यह कानून 1958 में संसद द्वारा पारित किया गया था। अरुणाच प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा के ‘अशांत इलाकों में तैनात सैन्य बलों को शुरू में इस कानून के तहत विशेष अधिकार हासिल थे। मणिपुर सरकार ने केंद्र की इच्छा के विपरीत अगस्त 2004 में राज्य के कई हिस्सों से यह कानून हटा दिया था। कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून जम्मू कश्मीर में लागू किया गया था।
क्या हैं इस पॉवरफुल एक्ट के प्रावधान
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून , 1958 (अफस्पा) के तहत केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर किसी राज्य या क्षेत्र को अशांत घोषित कर वहां केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करती है। अफस्पा के तहत सशस्त्र बलों को कहीं भी अभियान चलाने और बिना पूर्व वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त है।
सेना को मिल जाते हैं ये अधिकार
किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के सेना द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है।
बिना किसी वारंट के सशस्त्र बल द्वारा किसी के भी घर की तलाशी ली जा सकती है और इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल भी कर सकती है।
बार-बार कानून तोड़े जाने और अशांति फैलाने वाले पर इस कानून के तहत मृत्यु तक बल का प्रयोग किया जा सकता है।
वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ली जा सकती है।
सशस्त्र बलों को अंदेशा होने पर कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या इमारत में छुपा है ( जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो) उस आश्रय स्थल को तबाह किया जा सकता है।
सशस्त्र बलों द्वारा गलत कार्यवाही करने की दशा में भी, उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही नही की जाती है।
नागालैंड में क्या हुआ था?
गौरतलब है कि नागालैंड से बीते दिनों गोलीबारी की घटना सामने आई। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार इस गोलीबारी में 14 लोगों के मारे जाने की खबर सामने आई। पूरा घटनाक्रम नागालैंड के मोन जिले का है। रिपोर्ट के अनुसार नागरिकों के मारे जाने के बाद दूसरे लोगों ने गुस्से में सुरक्षाबलों की गाड़ियों में आग लगा दी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षाबल इलाके में काउंटर इमरजेंसी ऑपरेशन के तहत गए थे। दरअसल, 4 दिसंबर की शाम कुछ कोयला खदान कर्मी एक पिकअप वैन में सवार होकर गाना गाते हुए घर लौट रहे थे। सेना के जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी और इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की, जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई। पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले तथा इन लोगों ने सेना के वाहनों को घेर लिया। इस दौरान हुई धक्का-मुक्की व झड़प में एक सैनिक मारा गया और सेना के वाहनों में आग लगा दी गई। इसके बाद सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ की गई गोलीबारी में सात और लोगों की जान चली गई। इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और दंगों का दौर 5 दिसंबर को भी जारी रहा। गुस्साई भीड़ ने आज कोन्याक यूनियन और असम राइफल्स कैंप के कार्यालयों में तोड़फोड़ की और उसके कुछ हिस्सों में आग लगा दी।
गृह मंत्री ने लोकसभा में घटना पर खेद जताया
नागालैंड में गोलीबारी की घटना पर गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बयान दिया। उन्होंने उन्होंने कहा कि संदिग्धों की आशंका में फायरिंग हुई थी। भारत सरकार नागालैंड की घटना पर अत्यंत खेद प्रकट करती है और मृतकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना जताती है। नागालैंड की घटना की विस्तृत जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है जिसे एक महीने के अंदर जांच पूरी करने को कहा गया है। इसके साथ ही गृह मंत्री ने कहा कि सभी एजेंसियों से यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि भविष्य में विद्रोहियों के खिलाफ अभियान चलाते समय इस तरह की किसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं हो।