बिहार के महागठबंधन में दूसरी पारी के 450 दिन गुजारने के बाद जेडीयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का धैर्य जवाब दे गया। सीपीआई की रैली में नीतीश ने कहा कि कांग्रेस अभी सीट बंटवारा में इंटरेस्टेड नहीं है, उसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की चिंता है इसलिए सीट शेयरिंग पर कुछ नहीं हो रहा है।
उन्होंने ये भी कहा कि हमलोग कांग्रेस को आगे बढ़ाने के लिए एकजुट होकर काम कर रहे थे लेकिन उनको ये सब की चिंता नहीं है। अभी वो पांच राज्य में लगे हैं। चुनाव के बाद कांग्रेस खुद ही सबको बुलाएगी। नीतीश के बयान से ये साफ हो गया है कि भाजपा विरोधी गठबंधन के सूत्रधार नीतीश ने अब इंडिया अलायंस को कांग्रेस के भरोसे छोड़ दिया है जो सीट शेयरिंग का ब्रेक दबाए बैठी है।
मुंबई में इंडिया गठबंधन की तीसरी मीटिंग से पहले भी नीतीश ने कहा था कि चुनाव कभी भी हो सकता है इसलिए सीट बंटवारा जल्दी कर लिया जाए। मुंबई की मीटिंग में तीन प्रस्ताव पास हुए जिसमें पहला यही था कि लोकसभा चुनाव जहां तक संभव होगा मिलकर लड़ेंगे। इसी प्रस्ताव में कहा गया था कि सीट शेयरिंग की बात तुरंत शुरू हो जाएगी और आपसी लेन-देन से जितनी जल्दी हो सके पूरी कर ली जाएगी। दूसरा प्रस्ताव था संयुक्त रैलियों का। पहली रैली के भोपाल तय हुआ लेकिन कमलनाथ ने कैंसिल कर दिया। तीसरा प्रस्ताव था कि गठबंधन के दल अपने संदेश में ताल-मेल रखेंगे जिस पर कुछ टीवी एंकरों के कार्यक्रम का बहिष्कार करने के अलावा कोई काम नहीं हुआ।
गठबंधन को कांग्रेस के रवैए से नीतीश शुरू से परेशान हैं। नीतीश 25 सितंबर 2022 को सोनिया से मिले थे लेकिन उसके बाद उन्हें 25 फरवरी 2023 को पूर्णिया की रैली में कहना पड़ा कि हम लोग कांग्रेस के जवाब का इंतजार कर रहे हैं। गठबंधन पर नीतीश की राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से पहली मुलाकात 12 अप्रैल को जाकर हुई। नीतीश इस गठबंधन को लेकर कितने शिद्दत से लगे थे कि एक ही दिन में 24 अप्रैल को कोलकाता में ममता बनर्जी और लखनऊ में अखिलेश यादव से मिल आए, मना आए।
23 जून को पटना में पहली मीटिंग के समय से ही नीतीश को संयोजक बनाने की चर्चा होती रही है लेकिन ये हो नहीं पाया। पटना में नहीं चुना गया तो लगा कि बेंगलुरु में होगा लेकिन वहां भी नहीं हुआ। फिर लगा मुंबई में होगा लेकिन वहां भी 14 नेताओं की कोर्डिनेशन कमिटी बन गई। नीतीश के लिए इतनी बड़ी राजनीतिक कवायद का कुछ फलाफल नहीं निकला। कांग्रेस के मन में नीतीश को लेकर कोई गांठ है जिसकी वजह से जेडीयू नेता को गठबंधन में वो कद और पद अब तक नहीं मिला, जिसका हकदार कोई भी सूत्रधार होता। नीतीश भी समझते हैं इसलिए पटना में राहुल गांधी की पैरवी के बाद भी बिहार में कांग्रेस कोटे के मंत्री अब तक नहीं बढ़ाए गए हैं।
ये नीतीश के राजनीतिक कौशल का नतीजा था कि कांग्रेस से सीधे मुंह बात नहीं करने वाले अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भी 23 जून को पहली बैठक में पटना पहुंचे। लेकिन विपक्षी एकता की सफलता की सूरत में सबसे ज्यादा फायदे में रहने वाली कांग्रेस मुंबई की मीटिंग में तेजी से सीट बंटवारे पर हामी भरकर पीछे हट चुकी है। हैदराबाद में कांग्रेस वर्किंग कमिटी की 16 सितंबर की बैठक में पार्टी ने मन बना लिया कि अब सीट बंटवारा तभी होगा जब राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों के नतीजे आएंगे।
अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में कांग्रेस की तरफ से खुलकर और साफ शब्दों में पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कह दिया कि पांच राज्यों के चुनाव के बाद सीट की बात देखेंगे। कांग्रेस को लगता है कि वो पांच में तीन-चार राज्य जीत रही है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश के बाद कुछ और राज्य जीतने से सीट बंटवारे में उसे यूपी, बंगाल, दिल्ली, पंजाब, बिहार में सहयोगी दलों से ज्यादा सीट लेने में आसानी होगी।
सीपीआई के एक नेता ने गठबंधन के हालात पर कहा कि जीतने पर कांग्रेस को सरकार और पीएम का पद मिल सकता है लेकिन इस गई-गुजरी हालत में भी उसकी अकड़ ऐसी है जिससे समझ आता है कि बीजेपी इतनी सफल क्यों है। सीपीआई नेता ने एनडीए की बैठक में बुलाई गई 38 पार्टियां का हवाला देते हुए कहा कि जिन पार्टियों को एक भी लोकसभा सीट नहीं लड़नी, उन्हें भी बीजेपी वाले सम्मान के साथ डील कर रहे है। उन्होंने कहा कि गठबंधन के दलों का वोट बैंक मिल पाए इसके लिए जमीन पर टाइम चाहिए जो कांग्रेस नहीं दे रही और इसका बड़ा नुकसान हो सकता है।
5 सितंबर 2022 को लालू यादव के साथ सोनिया गांधी से नीतीश कुमार की मुलाकात के 403 दिन, पटना में विपक्षी दलों की पहली मीटिंग के 132 दिन और मुंबई में इंडिया गठबंधन की तीसरी मीटिंग के 62 दिन बीत चुके हैं। बात साझी चुनावी लड़ाई के बयान से आगे नहीं बढ़ पाई है। इस बीच अखिलेश यादव की सपा से मध्य प्रदेश चुनाव को लेकर कांग्रेस का तीखा झगड़ा हो गया। एक दिन पहले अखिलेश ने साफ कह दिया कि यूपी की 80 में 65 सीट सपा लड़ेगी। बाकी 15 में कांग्रेस और जयंती चौधरी की आरएलडी। गौर करने वाली बात ये है कि नीतीश इस झगड़े में नहीं पड़े। शांत रहे। मौन धर लिया। मानो कांग्रेस से कह रहे हों कि सबको मनाकर-बुलाकर प्लेट में गठबंधन परोस ही दिया है, अब तुम जानो, तुम्हारा काम जाने।