प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी दलों ने अपने-अपने गले शिकवे भुलाकर इंडिया गठबंधन का गठन किया था. विपक्ष के एक साथ आने का सियासी लाभ भी 2024 के लोकसभा चुनाव में मिला. इंडिया गठबंधन भले ही सत्ता में वापसी न कर सका हो लेकिन बीजेपी को अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा नहीं मिल सका. छह महीने बाद अब ‘इंडिया गठबंधन’ बिखरता हुआ नजर आ रहा है. कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती दिख रही है. टीएमसी से लेकर सपा तक कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही है.संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस अडानी के मुद्दा को जोर-शोर से उठा रही है, जिस पर सदन में भी चर्चा के लिए मांग कर रही है. कांग्रेस के अडानी मुद्दे से सपा और टीएमसी ने खुद को किनारे कर रखा है. कांग्रेस के प्रोटेस्ट में न सपा और न ही टीएमसी दिख रही है. बुधवार को राहुल गांधी संभल हिंसा पीड़ितों से मिलने के लिए जा रहे थे तो सपा के महासचिव रामगोपाल यादव ने सवाल खड़े कर दिए थे. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस संभल का मुद्दा सदन में नहीं उठा रही और राहुल गांधी संभल जाने की औपचारिकता कर रहे हैं.टीएमसी ने अडानी मुद्दे पर कांग्रेस से अलग राह चुनी
पश्चिम बंगाल की सीएम और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन से अलग होकर लड़ी थीं. हालांकि, नतीजे आने के बाद ममता बनर्जी ने खुद को इंडिया गठबंधन का हिस्सा बताया था. इसके बाद टीएमसी मानसून और बजट सत्र में विपक्ष के साथ मजबूती से खड़ी रही. बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के सुर में सुर मिलाती नजर आई थी. मगर, अब अडानी मुद्दे पर फिर कांग्रेस से अलग अपनी राह चुन ली. टीएमसी सांसद और महासचिव अभिषेक बनर्जी ने साफ-साथ कहा है कि वो सिर्फ पश्चिम बंगाल से जुड़े हुए मुद्दों को संसद में उठाएंगे.
अभिषेक बनर्जी ने कहा, हमारा रुख बिल्कुल साफ है. हम पहले बंगाल के मुद्दों को प्राथमिकता देंगे. केंद्र ने बंगाल का बकाया रोक दिया है. हम इन मुद्दों पर संसद में चर्चा चाहते हैं. इसके अलावा टीएमसी सांसद काकोली घोष दस्तीदार ने कहा कि पार्टी नहीं चाहती कि संसद की कार्यवाही बाधित हो. इस तरह घोष का इशारा कांग्रेस की तरफ था, जो अडानी के मुद्दे पर संसद चलने नहीं दे रही है. इसी का नतीजा था कि बुधवार को कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी सांसदों ने अडानी के मुद्दे पर सदन से वॉकआउट किया तो टीएमसी के नेता नहीं दिखे.
कांग्रेस के प्रोटेस्ट से टीएमसी-सपा ने बनाई दूरी
अडानी के मुद्दे पर संसद में प्रदर्शन के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, सांसद प्रियंका गांधी, आरजेडी की मीसा भारती, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत शामिल हुए. गुरुवार को संसद भवन में राहुल और प्रियंका गांधी अडानी के मुद्दे पर प्रोटेस्ट कर रही थी तो कांग्रेस के साथ आरजेडी और आम आदमी पार्टी साथ खड़ी नजर आई लेकिन टीएमसी और सपा ने दूरी बनाए रखी. इसके बावजूद कांग्रेस अडानी के मुद्दे से पीछे हटने के तैयार नहीं है और संसद में चर्चा के लिए मांग उठा रही है.
कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के नेता जुलाई में संसद सत्र के दौरान एक साथ खड़े नजर आए थे. राहुल पर बीजेपी नेता निशाना साधते तो अखिलेश यादव ढाल बनकर सामने खड़े नजर आते. एक ही कतार में राहुल गांधी, अखिलेश यादव और सपा सांसद अवधेश प्रसाद साथ बैठे नजर आए थे. राहुल अपने संसद भाषण में भी अवधेश प्रसाद का नाम ले रहे थे तो अखिलेश के साथ बेहतर केमिस्ट्री दिखी थी. अब अडानी के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ सपा नहीं चलना चाहती और न टीएमसी साथ दे रही.
गठबंधन के घटक दलों पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई?
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने विपक्षी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी और दस साल बाद सबसे शानदार प्रदर्शन किया था. कांग्रेस 99 सीटें जीतकर संसद में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी अधिकारिक तौर पर अपने नाम की. राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बने, जो कैबिनेट का दर्जा है. 2024 के नतीजे ने कांग्रेस के हौसले बलुंद कर दिए हैं. इस तरह इंडिया गठबंधन पर भी कांग्रेस की पकड़ मजबूत होती नजर आई लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में मिली हार के बाद इंडिया गठबंधन के घटक दलों पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर पड़ी है.आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन से दूरी बना ली थी और हरियणा में अलग चुनाव लड़ी थी. दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अरविंद केजरीवाल ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस के साथ किसी तरह से कोई गठबंधन नहीं होगा. सपा ने यूपी उपचुनाव में कांग्रेस की इच्छा के मुताबिक सीटें नहीं दी, जिसके चलते कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने से ही अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. उपचुनाव में सपा के मंच पर कांग्रेस के बड़े नेता नजर नहीं आए थे. संभल के मुद्दे को सपा और कांग्रेस एक साथ नहीं उठा रही हैं तो अडानी के मुद्दे पर दोनों के सुर अलग-अलग हैं.
यूपी में एक ही है सपा और कांग्रेस का सियासी आधार
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने दम पर पैर पसारने की कवायद में है. कांग्रेस ने 403 सीटों को तीन हिस्सों में बांटकर अपनी तैयारी शुरू कर दी है और संभल मुद्दे को अलग तरीके से उठा रही है. यूपी में सपा और कांग्रेस का सियासी आधार एक ही है. इसीलिए प्रियंका गांधी से लेकर राहुल गांधी तक मुस्लिम वोटबैंक को साधने में जुटे हैं. इसके चलते सपा बेचैन है. इसी तरह से पश्चिम बंगाल में भी टीएमसी का वोट और कांग्रेस का वोट एक ही है. मुसलमानों का एकमुश्त वोट इंडिया गठबंधन को मिलना और संविधान वाले मुद्दे पर दलित समुदाय के झुकाव ने कांग्रेस को फिर से खड़े होने की उम्मीद जगाई है.मौजूदा दौर में सपा और टीएमसी दोनों ही कांग्रेस की सियासी जमीन पर ही खड़ी है. आम आदमी पार्टी भी दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को ही सत्ता से बेदखल कर काबिज हुई है. इसीलिए सपा, टीएमसपी और आम आदमी पार्टी अब कांग्रेस को दोबारा से खड़े होने के लिए बहुत ज्यादा सियासी स्पेस देने के मूड में नहीं है. इसके अलावा सपा और टीएमसी अपनी छवि को कांग्रेस के पिछलग्गू वाली पार्टी की नहीं बनाना चाहती हैं बल्कि अपनी अलग एक पहचान बनाए रखने की रणनीति है. ऐसे में इंडिया गठबंधन पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती दिख रही है.