हरतालिका शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है. पहला हरत और दूसरा आलिका. जिसका अर्थ है ‘महिला मित्र का अपहरण’. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने 108 पुनर्जन्मों के बाद देवी पार्वती से विवाह करने का फैसला किया था.
इसलिए इस दिन को सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सबसे शुभ अवसरों में से एक माना जाता है. इस दिन सुहागिनें पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं. वहीं कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती भी इस व्रत को रखने के बाद ही भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त की थी. इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. व्रती इस दिन सोलह श्रृंगार करके पूजा करने के बाद कथा पढ़ती है.
हरतालिका तीज व्रत का महत्व
सनातन परंपरा के अनुसार, विवाहित महिलाओं में सोलह श्रृंगार करने का चलन प्राचीन काल से रहा है. हरतालिका तीज मुख्य रूप से माता पार्वती को समर्पित हैं. इसलिए 16 श्रृंगार भी उन्हीं से जुड़े हुए हैं. हरतालिका तीज का पर्व देवी पार्वती और भगवान शिव के अटूट रिश्ते को ध्यान में रखकर मनाया जाता है. इस दिन 16 श्रृंगार करके माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से सुहागिन महिलाओं अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है.
हरतालिका तीज की कथा
शिव पुराण के अनुसार, चिरकाल में राजा दक्ष अपनी पुत्री सती के फैसले (भगवान शिव से विवाह) से प्रसन्न नहीं थे. अतः किसी भी शुभ कार्य में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया जाता था. एक बार राजा दक्ष ने विराट यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में भी भगवान शिव को नहीं बुलाया गया. भगवान शिव के लाख मना करने के बाद भी माता सती नहीं मानी तब भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी.