दिल्ली एमसीडी में मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव शुक्रवार 6 जनवरी को होना है. इसके साथ ही स्थायी समिति के लिए भी चुनाव होना है. मेयर चुनाव से पहले ही कड़ाके की ठंड के बावजूद दिल्ली की सियासत में एक बार फिर से तपिश पैदा हो गई है.
मेयर चुनाव से पहले उपराज्यपाल वी के सक्सेना और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच टकराव बढ़ गया है. हालिया टकराव की वजह उपराज्यपाल के दो फैसले को बताया जा रहा है.
दिल्ली एमसीडी को लेकर उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दो फैसले किए हैं. केजरीवाल सरकार उन फैसलों को असंवैधानिक और राजनीतिक फायदे के हिसाब से लिया गया फैसला करार दे रही है. दो फैसले जिनसे टकराव बढ़ा, पहले उन्हें जानते हैं:
1. दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने मेयर चुनाव के लिए बीजेपी पार्षद सत्या शर्मा को एमसीडी की पहली बैठक के लिए पीठासीन अधिकारी नियुक्त कर दिया है. केजरीवाल सरकार चाहती थी कि ये जिम्मेदारी आम आदमी पार्टी के किसी पार्षद को दी जाए. दिल्ली सरकार ने इसके लिए आम आदमी पार्टी के पार्षद मुकेश गोयल का प्रस्ताव उपराज्यपाल को भेजा था. एलजी दफ्तर से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि वार्ड संख्या 226 की पार्षद सत्या शर्मा दिल्ली एमसीडी की पहली बैठक में पीठासीन अधिकारी होंगी. वे ही बाकी पार्षदों को शपथ दिलाएंगी. और उसके बाद मेयर चुने जाने की प्रक्रिया के दौरान सत्या शर्मा ही पीठासीन अधिकारी रहेंगी.
2. दिल्ली के एलजी ने 10 लोगों को पार्षद के तौर पर मनोनीत (MCD Nominated Councilor) किया था. इस बाबत 3 जनवरी को ही अधिसूचना जारी कर दी गई थी. इसको भी लेकर केदरीवाल सरकार और एलजी दफ्तर के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. दिल्ली एमसीडी में मनोनीत पार्षदों को एल्डरमैन (aldermen) कहा जाता है. हालांकि इन्हें मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं होता है.
मेयर चुनाव में पीठासीन अधिकारी की अहमियत
आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय (Shelly Oberoi) और बीजेपी की रेखा गुप्ता (Rekha Gupta) के बीच मेयर पद के लिए मुकाबला है. वहीं डिप्टी मेयर के लिए आम आदमी पार्टी के आले मोहम्मद इकबाल (Aaley Mohammad Iqbal) और बीजेपी के कमल बागरी ( Kamal Bagri) के बीच मुकाबला है. बहुमत तो आम आदमी पार्टी के पास है, लेकिन पीठासीन अधिकारी ही दिल्ली नगर निगम में मेयर के चुनाव के दौरान कार्यवाही का संचालन करता है. इस लिहाज से बीजेपी के पार्षद को पीठासीन अधिकारी बनाना बेहद महत्वपूर्ण है. मेयर के चुनाव के बाद मेयर पीठासीन हो जाता है और फिर उसके बाद डिप्टी मेयर और स्टैंडिग कमेटी ( स्थायी समिति) के 6 सदस्यों का चुनाव करवाता है.
अनुभवी पार्षद को पीठासीन अधिकारी बनाने की परंपरा
पीठासीन अधिकारी को नामित करने के मकसद से एमसीडी की ओर से उपराज्यपाल कार्यालय को सभी 250 पार्षदों के नाम की सूची भेजी गई थी. पीठासीन अधिकारी वहीं बन सकता है जो मेयर या डिप्टी मेयर पद की लड़ाई में उम्मीदवार नहीं हो. इसके साथ ही उसे एमसीडी की कार्यप्रणाली की अच्छी जानकारी भी हो. इस लिहाज से अनुभवी पार्षद को पीठासीन अधिकारी (प्रोटेम स्पीकर) बनाने की परंपरा रही है.
सत्या शर्मा निभा चुकी हैं मेयर की जिम्मेदारी
बीजेपी पार्षद सत्या शर्मा तीसरी बार पार्षद बनीं हैं. वो पूर्वी दिल्ली नगर निगम की मेयर पद की जिम्मेदारी भी निभा चुकी हैं. वहीं मुकेश गोयल 1997 से पार्षद हैं. इस बार ने छठी बार पार्षद बनें हैं. इसी को आधार बनाकर आम आदमी पार्टी एलजी के फैसले नाखुश है. आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने एलजी के फैसले की निंदा करते हुए ट्विटर पर लिखा है कि सबसे सीनियर सदस्य को ही प्रोटेम स्पीकर या पीठासीन अधिकारी बनाने की परंपरा रही है. उन्होंने बीजेपी पर लोकतांत्रिक परंपराओं और संस्थाओं को बर्बाद करने का आरोप लगाया है. वहीं बीजेपी का कहना है कि सत्या शर्मा को एमसीडी कार्यप्रणाली की बेहतर समझ है क्योंकि वो पहले मेयर रह चुकी हैं और एलजी ऑफिस की ओर से कोई भी फैसला पक्षपातपूर्ण नहीं किया गया है.
एमसीडी मेयर चुनाव में वर्चस्व की लड़ाई
दिसंबर में हुए एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के 15 साल की सत्ता को खत्म करते हुए जीत दर्ज की थी. इसके बावजदू बीजेपी के कई नेताओं ने दावा किया था कि मेयर तो बीजेपी का ही पार्षद बनेगा. बीजेपी पार्षद को पीठासीन अधिकारी बनाए जाने से आम आदमी पार्टी की चिंता बढ़ गई है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि एलजी ऑफिस ने ओर से ये फैसला बीजेपी के इशारे पर लिया गया है.
मनोनीत पार्षदों को लेकर बढ़ा विवाद
दिल्ली नगर निगम के लिए 10 पार्षद मनोनीत करने का प्रावधान है. गृह मंत्रालय के आदेश के मुताबिक ये अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल के अधीन है. अनुभवी लोगों को इस पद के लिए मनोनीत किया जाता है. आम आदमी पार्टी आरोप लगा रही है कि उपराज्यपाल ने जिन 10 लोगों को पार्षद के तौर पर मनोनीत किया है, वे सभी बीजेपी के कार्यकर्ता हैं. ये मनोनीत पार्षद मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में वोट नहीं डाल सकते. लेकिन वार्ड समिति के चुनाव में मनोनीत पार्षदों को वोटिंग का अधिकार दिया गया है. दिल्ली हाईकोर्ट के 27 अप्रैल 2015 के आदेश के बाद इन्हें वार्ड समिति के चुनाव में वोटिंग का अधिकार मिला हुआ है. आम आदमी पार्टी को यही डर सता रहा है कि मनोनीत पार्षद वार्ड समिति और स्थायी समिति में बीजेपी का दखल बढ़ाने में मददगार साबित होंगे. इससे एमसीडी के रोजमर्रा के कामों में बाधा पैदा हो सकती है.
केजरीवाल ने एलजी को भेजी चिट्ठी
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एलजी विनय कुमार सक्सेना को चिट्ठी लिखी है. उनका कहना है एलजी की ओर से एल्डरमैन को मनोनीत करना गलत है. उन्होंने इसे असंवैधानिक बताया है. केजरीवाल ने इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बताते हुए कहा है कि एलजी की ओर से 10 पार्षदों को जानबूझकर मनोनीत किया गया है, ताकि एमसीडी के 12 में से 3 जोन में ये सदस्य प्रतिनिधित्व कर सकें. उनका कहना है कि ये फैसला एमसीडी के स्टैंडिंग कमेटी (स्थायी समिति) की संरचना बीजेपी के अनुकूल बनाने के लिए किया गया है. केजरीवाल का सीधे-सीधे आरोप है कि एल्डरमैन के जरिए स्टैंडिग कमेटी के कामकाज में बीजेपी दखल बढ़ाना चाहती है.